मेरा प्यार मेरी सौतेली मां और बहन Part 1
समीर
नजीबा
नाज़िया
मेरा प्यार मेरी सौतेली मां और बहन
दोस्तो ये कहानी तुषार ने लिखी है मैं सिर्फ इसे मंच पर पोस्ट कर रहा हूं
मेरा नाम समीर है… मैं अपने रूम में कुर्सी पर बेथा हुआ था… बहार सेहन में मेरी सौतेली बहन नजीबा चारपाई पर बेटी अपनी किताब पर पढ़ रही थी… उस वक्त मेरी उमर 17 साल थी… और मैं 12वीं क्लास मैं पढ़ रहा था ... नजीबा उस वक्त 9वीं क्लास मैं तुम...उस पर जवानी और हुसैन इस कदर चड्ढा था की, पूछो मत... एक दम गोरा रंग उसकी हाइट 5, 3 इंच तुम... सामने ऑरेंज कलर के कमीज और व्हाइट कलर के सलवार पहनने वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी...मैं अपने कमरे में मैं कुर्सी पर बेथा हुआ अपनी सौतली बहन के जिस्म को घोर रहा था... हदसा पेश आया…. मेरी अम्मी के बाइक एक्सीडेंट मैं फटे हो गए... वक्त के साथ-2 सब नॉर्मल होने लगा...
अब्बू गवर्नमेंट बैंक मेन जॉब करते हैं… जो पास की ही सिटी मैं था… मैं सुबे उनके साथ ही तयार होकर स्कूल जाटा….क्योंकी मेरा एडमिशन अबू ने गांव के सरकार स्कूल मैं ना करवा कर सिटी के प्राइवेट स्कूल मैं करवा था….स्कूल से छुट्टी के बाद मैं सीधा बैंक ही चला जया करता था... और उसके बाद शाम को अबू के साथ ही घर वापस आता था... जिंदगी इसी तरह गुजर रही थी... ...काई रिस्तेदार अबू को दुसरी शादी करने के लिए कफी वक्त से जोर लगा रहे थे ...
मैं थोड़ा बड़ा हो चुका था ... अब मैं खुद अकेला स्कूल आने जाने लगा था ... तो रिस्तदारो के बार -2 कहने पर अब्बू ने दुसरी शादी करने का फैसला कर लिया .. मुख्य स्कूल के बाद बैंक ना जाकर अकेला घर ….और खुद ही अकेला सुहे बस से स्कूल भी जाने लगा था….इससे अब्बू की सरदारी कफी में तक कम हो चुकी थी….क्योंकी पहले उन्हे भी मेरे साथ बैंक के समय से पहले ही घर से निकलन पढ़ाता था… स्टैण्डर्ड मैं हुआ तोह, अब्बू और उनके बैंक मैं ही काम करने वाली एक विधवा औरत के बीच अफेयर हो गया...रिस्तदार भी अब्बू को दसरे शादी करने के लिए बार बार कहते हैं... नाज़िया मेरी सौतेली अम्मी बैंक मैं ऊँची पोस्ट पर तुम… बाला की ख़ूबसूरत औरत तुम…उस समय उसे उमेर 30 साल तुम… जब उसकी और अब्बू की शादी हुई थी…। काई बार तो मुझे अब्बू की किस्मत से भी जाने थे…
खैर अब कहानी पर आते हैं…. मैं और नजीबा घर मैं अकेले थे…. हमारे घर में पीछे की तरफ दो कामरे थे…..एक तरफ मैं किचन था….रसोई और काम आगे से बरमाडे से कवर तुझे….आगे खुला सेहन था ... और फिर अगले दो रूम और तुम ... जिसमे से एक ड्राइंग रूम और दसरा रूम नजीबा का था ... गेट के दसरी तराफ बाथरूम था ... मैं अपनी हवा भारी नजरो से नजीबा की तरफ देख रहा था ... और नजीबा भी बीच -2 मुख्य सर उठा कर मेरे तारफ देखती... और जब हम दोनो की नजर आप में मिलाती तो वो शर्मा कर नजर झुका लेते...हल्की की अब्बू के शादी को 2 साल हो चुके थे... और नजीबा और नाजिया दोनो दोबारा शादी के लिए ….लेकिन पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था….जो पिचले चांद दिनो से हो रहा था…
नजीबा भी बनने से मेरे तारफ देख कर मुस्कान कर रही थी...उसकी नजरो मैं कुछ चुप्पा हुआ था...लेकिन हमारा रिस्ता ऐसा था की, मैं चाह कर भी आगे कदम नहीं बढ़ा सकता था। मुझे समाज नहीं तुम... समाज तो मुझे भुत पहले आ चुकी थी... की एक औरत और मर्द के बीच कैसा रिस्ता होता है..और मैं उसे नजरो को कुछ था तक समाज भी पा रहा था... लेकिन कुछ कुछ कुछ दिन क्या मैं गया था...जो नजीबा का मुझे देखने का नजरिया ही बदल गया था...ये मेरे समाज से बाहर था...वो मुझे पहले भाई कह कर बुलाते थे... लेकिन कुछ कुछ दिनों से मैंने अपने लिए उसके मुंह से भाई शब्द नहीं सुना था... जब भी मुझसे कुछ पूछने आती तो, सिर्फ आप कह कर ही बात करती है...
मसलन आप को खन्ना ला दूं… आप चले जाएंगे…..ऐसे ही बात कर रही थी…. लेकिन ऐसा क्या अलग हो गया था...जिससे नजीबा का राय बदल गया था...मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ था की, बहार दूर की घंटी बाजी... मैने देखा नजीबा ने अपनी किताब चारपाई पर राखी और जब वो चारपाई से उतरे, वो मेरे रूम के साइड की तरफ से...वैसे वो दुसरी तरह से भी उतर स्कती थी...चारपाई से उतरने के बाद उसे अपनी कमीज के पले को नीचे से पका कर अपनी कमीज को नीचे के तार से उसमें... और साफ आकार मैं नज़र आने लगी… ऐसी प्रतिक्रिया कर रही थी….मनो उसका मेरे तारफ ध्यान ही ना हो…
फिर उसे अपना दुपट्टा चारपाई से उठा और बहार जकार गेट खोला तो, मुझे बाहर से रिदा की आवाज ऐ… अब ये रिदा को है… उसके नंगे मैं और उसके परिवार के नंगे मैं आप लोगो को बता दूं… शादी से पहले की है... तब मैं स्कूल से घर आता और खन्ना खा कर अपनी गली के यारो दोस्तो के साथ सरकार स्कूल के ग्राउंड मैं क्रिकेट खेलाने फुंच जाता..और जब अब्बू के आने का वक्त होता तो उससे पहले ही …जिसका असर मेरे पढाई पर होने लगी थी…..सितंबर में जब आंतरिक परीक्षा हुई तो, मैं बुरी तरह फेल हो गया….वैसे तो मैं पढाई मैं शुरू से ही तेज था…लेकिन जब ये आजादी मिली थी… को उठा कर नहीं देखा था... जब अब्बू ने मार्कशीट देखी तो अब्बू मुझसे सखत नारज हुए, और गुस्सा भी किया….
अगले ही दिन जब मैं स्कूल जाने के लिए तयार हो रहा था...तो अब्बू ने मेरे लिए एक नया फरमान जारी कर दिया... और फारूक करीबी दोस्त तुम...फारूक के घर में उसके बीवी सुमेरा और फारूक की बेटी रिदा रहती थी...रिदा के शादी को 3 साल हो चुके थे...उसके दो बच्चे थे...जो की जुड़वां तुम...रिदा का पति खाड़ी मैं नौकरी करता हूं था … तकरीबन एक साल पहले रिदा का पति फारूक के बेटे को भी अपने साथ ले गया था… ..रिदा की शादी जिस घर में हुई थी….उनकी फैमिली भुत बड़ी थी… रिदा के पति के 4 भाई और आप….इस्लिए रिदा का भाई अपने जीजा के साथ विदेश गया तो, रिदा यहां आ गए...उसके ससुराल वालों ने भी कोई एतराज नहीं किया था...रिदा उस वक्त हमारे गांव में सबसे ज्यादा आपको पढ़ाया...उसने अंग्रेजी मैं स्नातक था... वजे से अब्बू ने मुजे ये फरमान सुनाया था...मनो जैसे किसी ने मेरे आजादी मुझसे चीन ली तुम...पर शायद अब्बू नहीं जाने तुम की, वो मुजे किस दलदल मैं दखेल रहे हैं… ऐसा दलदल जिसने मेरे जहां मैं सबी रिस्ते नातो को खतम कर दिया… मैं इस दुनिया मैं सिर्फ एक ही रिस्ते को सच माने लगा था… और वो था मरद और और...
सुमेरा फारूक की दसरी बीवी तुम…उसकी पहली बीवी का इंतकाल हो चुक्का था… जब रिदा 6 साल की हुई थी… तो बड़ी मस्कलियों के बाद रिदा की अम्मी दुसरी बार गर्भवती हुई। लेकिन गर्भावस्था मुख्य कुछ जटिलता होने के कारण से ना तो रिदा की अम्मी बच्चा साकी और ना ही बचा सकता है...रिस्तदेरो के बार-2 कहना और जोर देने पर फारूक ने अपनी ही साली सुमेरा से शादी कर ली... नहीं चाहते थे की, उनकी बच्ची के आखिरी निशानी को किसी तरह की पेशा पेश ऐ… मैं सुमेरा को चाची और फारूक को चाचा कहता था… और रिदा को रिदा आप कह कर बुलाता था… जब मैंने स्कूल से शुरू उनके घर में तोह, तब सुमेरा चाची 35 साल की होगी..
उसकी हाइट 5 फुट 4 इंच के करीब तुम….. सुमेरा के रंगत ऐसे तुम जैसे किसि ने दूध मैं केसर मिला दिया हो…..बिकुल गोरा रंग लाल सुरख गाल मम्मे तो ऐसे की, मानो रबर की बॉल्स हो….हमेशा कासे हुए लगे तुम…. सुमेरा की जो चीज सबसे ज्यादा कटैलाना तुम… तुम उसकी बहिर को निकली हुई गोल मटोल बंद… जब वो कभी घर से बहार निकल कर दुकान तक जाती थी… तो देखने वाले के लूनो पर बिजली थी हाल रिदा का भी था….उसकी उमर उस समय करीब 22 साल के करीब तुम….शादी और बचाओ के बाद उसका जिस्म भी सुमेरा की तरह भर चुक्का था.. कर लोगो का बुरा हाल हो जया करता था... और फारूक चाचा उस वक्त 48 से 50 के बीच के होंगे...
जब मैंने चाची सुमेरा के घर जाना शुरू किया तो, वहा मैं ऐसे दलदल मैं फंसा की फिर कभी बहार निकला नहीं पाया...मेरे अंदर आज जो शैतान है...वो सुमेरा चाची और रिदा आप की वज से ही है...उस दोरान क्या हुआ कैसे हुआ...वो बाद में आपके सामने आ जाएगा...फिलहाल तो रिदा आपी जिस मैं अब सिरफ रिदा कह कर बुलाता हूं जब हम अकेले होते हैं...वो घर आ चुकी थी...रिदा और नजीबा दोनो वही चारपाई पर बेथ गए... की नज़र जब मुज पर पाधी तो उसने इसे मुझसे सलाम कहा... मैंने भी जवाब मैं इशारा किया... और साथ ही नोटिस किया की, जब रिदा ने सलाम के बाद नजीबा की... समाज मैं नहीं आ रहा था की, ठीक हो क्या रहा है...जिस दिन से नजीबा के रंग धंग बदले थे...उस दिन भी रिदा घर पर ऐ हुई थी...
अब्बू और मेरी सौतेली अम्मी शाम को 7 बजे से पहले घर नहीं आते थे...इस्लिए मैं और नजीबा दोनो घर पर अकेले होते थे...वो दो चारपाई पर बेटी आप मैं बातें कर रही थी... बीच-2 मैं कभी रिदा तोह, तारफ देखती और फिर सर नीच कर मुस्काने लगती...मुजे उन दोनो के बातें सुननी नहीं दे रही थी...थोड़ी डेर बाद नजीबा उठी और अपने रूम में चली गई...जब वो रूम से बहार आए तो, उसके लिए अपने कपड़े ..."आप आप बैठे मैं अभी नहीं कर आती हूं...।" ये कह कर नजीबा बाथरूम में घुस गए….
जैसे ही नजीबा बाथरूम मैं घुस्सी तोह, रिदा चारपाई से खादी हुई...उसने मस्कराते हुए मेरे तारफ देखा...और फिर एक बार बाथरूम के तरफ देखा...और फिर वो कमरे की तरह आने लगी...और आता हुआ देख कर मैं भी से उठ कर खड़ा हो गया... जैसे ही रिदा मुझसे उमेर मैं 6 साल बड़ी थी... मैंने आगे बढ़ कर रिदा का हाथ पक्का और इस्तेमाल किया दूर के साथ दीवार से लगा दिया...टंकी अगर रिदा बहार ऐ तो उसकी नजर सीधा हम दोनो पर ना पढे... जैसे ही हम दूर के पीछे हुए, रिदा ने अपनी बाजों को मेरे गले मैं दलते हुए अपने होंतो को मेरे होते हैं। एक दिया … और अपनी बाजों को उसके कमर के गिर्द लैपटॉप लिया … मैंने रिदा के होंतो को चुने अपने हाथो को सरकार कर जैसे ही उसके बाहर की तरफ निकली हुई बंद पर रख चिप कर उसे बंद, फिर मसाला तो फिर मसाला तो... .
उसे अपना कमर को अगले की तरफ धक्का क्या तो, मेरा लुन उसे सलवार के ऊपर से उसके फुदी पर जा लगा... "समीर अब डर ना करो...तुम्हारा लूं भी तय है... और मेरे फुदी पानी चोर रही है...।" ये कहते हैं रिदा ने अपनी सालावर का नाडा खोला और बिस्तर के किनारे पर लाएते हुए, उसे अपनी सलवार को अपने घुटनो तक उतर दिया… फिर उसे अपना टैंगो को घुटनो से मोड कर ऊपर उठा लिया… चुक्का था ... मेरा लुन एक दम खत खड़ा था ... मैंने अपने लुन को हाथ से पकाड़ा और उसकी टैंगो के डरमायण आते हुए लुं के तोपे को जैसे ही उसकी फुदी के सुरख पर लगा... तो रिदा ने अपने ली ...।" siiiiii समीर जलादी करेन… प्लीज मुझसे सबर नहीं हो रहा….” मैंने रिदा की बात सुनाते वह एक जोरदार झटका मारा जिस मेरा लुन एक ही बार मैं पूरा का पूरा रिदा की फुदी के बीच मैं समा गया… ..
"हैई …… जान काद दी…" रिदा ने बिस्तर पर बिछी हुई बेडशीट को दोनो हाथों से कास्के पका लिया… मैंने बिना रुके तेजी से लूं को फुल स्पीड से और बहार करना शुरू कर दिया…उसके कमीज मैं उसके मम्मे मेरे झटके के करन ऊपर नीचे झूल रहे थे... हम दो खोमशी से छुडाई कर रहे थे...टंकी हमारी आवाज कामरे से बहार ना जाए...तकरीबन 6-7 मिनट बाद रिदा का जिस्म अकड़ने लगा...उसने आने देते हैं को अपने गांद पुश करना शुरू कर दिया… और फिर एक दम से मचाते हुए उसकी फुदी ने पानी चोराना शूरू कर दिया… और साथ ही मेरे लुन से भी पानी निकलने लगा… जैसे ही मैंने अपना लुन रिदा के फुदी से बहार निकला से बाहर खादी हो गए...उसने दूर से बहार देखते हुए अपनी सलवार का नारा बंधन शुरू कर दिया..."क्या बात है समीर...आज कल तुम हमारी तारफ नहीं आ रहे..." रिदा ने सलवार का नादा बंध और अपनी कमीज करते करते हई बोली…”
मुख्य: ऐसे ही तबायत कुछ ठीक नहीं तुम… ..
रिदा: अच्छा मैं बहार जकर बेथाती हूं... नजीबा बहार आने वाली होगी...।
रिदा के बहार जाने के बाद मैं सिर्फ अंडरवियर मैं ही बिस्तर पर लाया गया… अभी थोड़ी ही डर हुई थी की, मुझे बाहर से फिर और नजीबा दोनो की बातें करने के आवाज आने लगी… मैं ये तो नहीं सुन पा रहा, वो आप मैं क्या बात कर रहे हैं... लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था... जैसे रिदा और नजीबा मेरे नंगे मैं ही बात कर रही होगी... मैं उनकी बातें किसी तरह सुनू...मैं बिस्तर से उठा और दूर के पास जकर खड़ा हो गया...लेकिन वह से भी कुछ भी ठीक से सुन नहीं पा रहा था... मैंने थोड़ा सा सारा बहार निकला कर चोरी से देखा तो, दो एक दस तारफ फेस किए हुए बेठी तुम… दोनो की तरफ मेरे तारफ तुम…।
तबी मेरे नज़र किचन के दूर पर पाढ़ी… जो मेरे रूम के बिकुल साथ था….दूर खुला हुआ था…मुजे अपने रूम से निकल कर किचन के एंडर जाने मैं चांद सेकेंड का वक्त ही चाहता था….बस प्रॉब्लम तु की, कहीं दोनो मैं से कोई भी मुझे किचन के अंदर जाता हुआ ना देख ली… नहीं तो, दोनो मुजे किचन में देखता हूं बंद कर देता हूं…बिलाखिर मैंने हंसाला करके बहार की तरफ कदम रखा… बिना आवाज के किचन के एंडर चला गया… और लाइट ऑफ यू… किचन मैं बहार गेट की तरफ एक खिड़की थी… चारपाई पर बेटी हुई तुम….
माई धेरे-2 बिना शोर की खिड़की के पास जकर खड़ा हो गया ... अब मुजे उन दोनो के बाते सुनिए दी राही थे ... दिन सिटी मैं जकार शॉपिंग करने के बात कर रही थी..."आपी माई आपको पक्का नहीं कह सकती... अम्मी को आने दिन...मैं उनसे बात करके आपको बता दूंगा .... अगर अम्मी अब्बू रजी हो गए तो फिर फिर चलूंगी….मुजे भी शॉपिंग करनी है….”
रिदा: अच्छा ठीक है अम्मी से पूछ कर बताता देना… और अगर वो माना करे तो, तुम्हें जो चाहिए मुझे बताता देना… मैं वहा से खड़ी लूंगी….
नजीबा: जी आपी…..
मैं सोचा लगा की, जो मैं दो दिनों से सोच रहा था…. शायद वो मेरे मान का वेहम हो…..ये मुझे क्या होता जा रहा है… जो हर वक्त मेरा दिमाग सिरफ सेक्स के नंगे मैं सोचता रहता है…मुजे याद है ....जब शादी के बाद नजीबा अपनी अम्मी के साथ यहां रहने वाले थे तो, मैं इस बात से चुंबन था तक खफा था .... मैं कैसे सारा दिन अपने जहां मैं उसकी अम्मी और उसके लिए नफरत लिए हूं। ….जिसने मेरे गुसे और नफ़रत को सेहन किया…उसकी हर एक के साथ गुलमिल जाने वाली खास के करन ही… मैं अपने आप को अपनी सौतली बहन और सौतली मां के साथ इस घर में मैं एडजस्ट कर पाया था। कर वापसी अपने रूम में जाने ही वाला था की, रिदा ने कुछ ऐसा कहा...जिसके वजे से मैं वही रुक गया..."नजीबा...वैसे आज तूने जो तारीका अपनाना है वो है एक दम सेट...ऐसे ही आपी का... ख्याल रखना "फिर दो हसने लगे...फिर मुजे नजीबा के सरगोशी से भरी आवाज ऐ..."
नजीबा : आप आप से एक बात पूछ...?
रिदा: हां पूछो… तुम मुझसे जो चाहे पुछ लिया करो…।
नजीबा: आप आपको भाई के साथ वो सब करते हुए अजीब नहीं लगता….
रिदा: क्या अजीब... मैं समाधानजी नहीं खुल को बोला ना क्या पूछना चाहता है….
नजीबा: आपी मेरा मतलब भाई आप से उमेर मैं भूत कम है... और आप उनके साथ वो सब कुछ कर लेते हैं...तो आप को अजीब नहीं लगता उनके साथ...।
नजीबा की बात सुन कर रिदा जल्दबाजी हुई बोली…”अजीब क्यों लगेगा….देख इसमे उमेर का क्या लेना देना…उसके पास वो गाना है जो एक औरत को चाहा होता है..और मेरे पास रस निकलने वाली मशीन है…तो फिर अजीब क्यों लगेगा..." रिदा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा..."तोबा आप आप भी ना कैसे-2 मिसाले देती है...।"
रिदा: चल तुझे मेरे दी हुई मिसल पसंद नहीं आती तो, आगे से सीधी बात किया करुंगी...दरसल तेरे समीर भाई का लूं है ही इतना तगड़ा की, जब फुदी मैं जाता है तो उमर सुमेर सब भाई... ...वो मेरे तांगे उठा कर अपना लूं मेरे फुदी के और बाहर करता रहा...
नजीबा : ची **** का खोफ करे... कैसे गंदी बातें करती हैं आप...।
रिदा: ऐ बड़ी **** का खो देखने वाली… चल आगे से ऐसी बात नहीं करता तुझसे…
रिदा चुप हो गए...थोड़ी डर दोनो खामोश रही..."आपी नारज हो मुझसे...?" रिदा ने यहां से कहा….”नहीं तो मैंने क्यों नराज होना….” रिदा ने नॉर्मल से टोन में कहा…..तो फिर आप चुप क्यों हो गए….?”
रिदा: अब तुम ही कह रही थी की, ऐसे बातें न करें...
फिर थोड़ी देर के लिए खोमसी चले गए... "आपी एक बात पूछो..." रिदा ने नजीबा की बात का कोई जवाब ना दिया ... थोड़ी देर खोमशी के बाद रिदा बोली ... "हां बोल क्या पूछना है...?"
नजीबा: आप आप कह रही थी की, भाई वो आपकी…।
रिदा: अब बोल भी….
नजीबा: आप कह रही थी की, आप का दिल करता है की, भाई आपकी टांगे उठा कर करते रहेंगे...
रिदा: (नजीबा के बात सुन कर हंसते हुए...) हाहा पागल है तू भी मेरे भोली नादान बच्ची...वैसे वो सब करते हुए जरूरी नहीं है की, टांगे उठी जाए ... अभी ये सब नहीं मिलेंगे...लेकिन जब तेरी किसी से यारी लगेंगे कि और तब तेरा यार तेरी टांगे उठा कर तेरी लेगा तो, तुझे मेरे बात का याकेन होगा...।
नजीबा: क्या आप भी...
रिदा: (हंसते हुए) हाहा सच कह रही हूं….देखना वक्त मेरे बात की गवाह देगा… और तब तू कहेगा की रिदा आपी सच कहता था... कर ऐ तुम… अम्मी तो मेरे जान ही नहीं छोडेंगे आब…भूत डर हो रही है अब मैं चलाती हूं…।
रिदा चारपाई से उठी और गेट की तरफ जाने लगे... नजीबा भी गेट बंद करने के लिए उसके पीछे चली गई...मोका अच्छा था...मैं किचन से बहार निकला और अपने रूम में आ गया...और बिस्तर पर लाया गया...अब कुछ कुछ मेरे समाज में आ रहा था की, नजीबा का रवाये मैं जो बदला आया है...वो क्यों आया है...तो क्या नजीबा मेरे साथ वो सब नहीं... ..
शाम के 5:30 बज चुके थे...तब मेरे जग खुली...मेरे कामरे मैं रोशनी कम थे... बहार से हल्की रोशनी कामरे मैं आ रही थी... मैने आंखे खोल कर देखा तो, नजीबा मुझे पुकार रही थी..." हां बोलो क्या है..." मैंने उसके चेहरे के और देखते हुए कहा... जो की मुझे ठीक से दिखा नहीं दे रहा था..." मैं चले केला जा रही थी... आप के लिए भी बना दूं..." नजीबा ने सर झुके खड़ी थी...।" हां बना ही लो…” नजीबा मेरे बात सुन कर बहार जाने लगे तो, मैंने दीवर पर लगी घड़ी की तरफ देखा…मुजे समय सही से दिखी नहीं दे रहा था… "
नजीबा: जी….
माई: टाइम क्या हुआ...?
नजीबा: जी 5:30 हुए है...
माई: ओके….
नजीबा बहार चली गई...पटा नहीं क्यों पर मेरा मान उठने का बिकुल भी नहीं कर रहा था...मैं वैसा ही बिस्तर पर लाया रहा...10 मिनट बाद नजीबा चाय का कप लेकर और ऐ...उसने टेबल पर कप रखा..."फिर से सो गए क्या……?” नजीबा ने यहां से कहा... "नहीं जग रहा हूं..."
नजीबा: आपकी तबियत तो ठीक है ना….?
माई: हम्म ऐसे ही सर मैं हलका सा दर्द है….
नजीबा : टेबलेट ले लैं चाय के साथ ठीक हो जाएगा... मैं अभी टैबलेट लेकर आती हूं...।
माई: नहीं रहने दो...मुझसे टैबलेट नहीं खाई जाति...
नजीबा अभी वही खादी तुम... मैं बिस्तर से उठा और उठा कर जैसे ही लाइट ऑन की तो, नजीबा जो की मेरे तारफ देख रही थी...उसने अपने नजरे झुका ली...तब मुझे एहसास हुआ की, पर लाया सिरफहुआ मैं था….मेरा लुन जो के अंडर वियर मैं बड़ा सा तंबू बनाया हुआ था…उसकी शेप साफ नजर आ रही थी...मुजे जब अपनी गलत का अहसास हुआ तो, मैंने जलादी से तौलिया उठा कर अपनी कमर पर लापता लिया…” मुख्य…।" इस्से पहले की मैं कुछ बोल पाता….नजीबा बोल पाढ़ी…. "ठीक है…"
माई: नहीं नजीबा…..फिर भी मुझे इस बात का ध्यान रखना चाहिए था की, तुम रूम मैं हो….और मैं किस हलत मैं था….प्लीज मुझे माफ कर दो….
नजीबा : इट्स ओके… आप बहिर तो नहीं थे ना… अपने ही रूम मैं तुम… आप अपने रूम मैं जैसे चाहूं रह सकते हैं….
माई: फिर भी तुम्हारे समाने मुझे ऐसी हलत मैं नहीं होना चाहिए था…तुम्हे बुरा लगा होगा….
नजीबा; (अभी भी सर झुके हुए खादी तुझे… उसके गाल लाल सेब की तरह सुरख होकर देख रहे थे…उसके होंतो पर हल्की से मुस्कान फेली हुई थी…।) नहीं तो मुझे क्यों बुरा लगेगा…
माई: (नजीबा अपने साथ इतना खुला देख कर मेरी भी हिम्मत बढ़ाने लगे थे... मैंने भी और यहां मैं निशान लगा...) अच्छा अगर तुम्हे बुरा नहीं लगा तो, फिर सर क्यों झुका लिया मुझे देख कर….
नजीबा ने एक बार सर उठा कर मेरी तरह देखा और फिर नज़र झुका ली… और बिना कुछ बोले जाने लगे…. मैं दरवाजे के पास खड़ा था… जैसे ही वो मेरे पास से गुजराने लगा तो, मैंने उसका हाथ पकड़ा लिया… पहली दफ्फा था जब मैंने नजीबा को चुआ था...इससे पहले मैंने कभी नजीबा को टच तक नहीं किया था...और जब मैंने उसे हाथ पकाया तो, उसका पूरा जिस्म कनप गया...जिसे मैंने साफ महसूस कर पा। मेरे हाथ से अपना हाथ चुरवाने के कोशिश नहीं की…. उसे मेरे आंखें मैं झंका और लद्दाखी आवाज मैं बोली..."जी..."उसने फिर से नजरे झुके ली..."नजीबा मुझसे तुमसे जरूरी बात कहनी है..." मैने अपने और हिम्मत जूते हुए कहा..."जी कहा..."
माई: जाओ पहले चाय पी आओ….बाद मैं बात करते हैं….
मैंने नजीबा का हाथ चोर दिया… और अपनी टीशर्ट और आधा पेंट उठा कर लगाने लगा… नजीबा बहार जा छुकी थी… मैंने कपड़े पहनने और चाय पीने लगा….नोव का महिना शुरू हुआ था… नेहरे बेहती तुम… इसलिये सरदी अभी से बढ़ चुकी थी… चाय पीने के बाद मैंने खाली कप उठा और किचन मैं चला गया… वह खाली कप रख कर ऊपर छत पर चला गया… और छत पर जहां से वहां से नजर आता है… के पास खड़ा हो गया...थोड़ी डेर बाद मुझे नजीबा अपने रूम से बहार निकलती हुई दिखाई दी...जैसी ही वो बहार आए तो, उसकी नजर के लिए तोर पर ऊपरी पाधी...और जब हमारे नजरे मिली तो, मैंने याद किया, मैंने याद किया को बात करने के लिए कामरे मैं बुलाया था…
मैं सोच रहा था की, मैंने नजीबा को बुला तो लिया था… लेकिन अब उससे बात किया करुण… कैसे बात शुरू करुं… क्या कहूं….कैसे शब्दों का इस्तेमाल करें…. रहा हूं… ऐसा कुछ भी उसके जहां मैं ही ना… और वो सब मेरा वेहम हो… कहीं नजीबा मुझसे नरज ना हो जाए… अब्बू तो इस मामले में मैं शुरू से भूत जालिम रहे हैं…… अगर नजीबा ने कुछ अब्बू यान अपनी अम्मी को बोल दिया…. मैं मान ही मान सोच रहा था की, देखता हूं की नजीबा मुझसे बात करने के लिए ऊपर छत पर आती है... से कम 10% चांस तो बनता है की, मैं जो सोच रहा हूं…वो ठीक है….लेकिन उससे बात किया करेंगे….भूत सोचने वाले हैं के बाद मुझे बिलाखिर एक रास्ता मिल ही गया….
वो रास्ता भले ही लंबा था… लेकिन उस रास्ते पर सफर करके मुझे अपनी मंजिल तक फुंचने मैं मदद जरूर मिल सकती थी… अभी मैं यही सब सोच रहा था की, मुझे नजीबा नजर ऐ….इससे पहले देखा की पीछे हट गया... और चारपाई पर बेठ गया...हमारा घर की छत पडोश के घर से कोई 3-4 फुट ऊंची थी... और चारो तार अब्बू ने 5-5 फुट ऊंची बाउंड्री बना रही थी... तुम… क्यों की हमारे घर के सामने खेत थे… इसलिये खेतो से किसी को भी हमारी छत नजर नहीं आती थी…
उसके ऊपर की तरफ आते हुए कदमो की आहट भी मैं साफ सुन पा रहा था... और फिर जैसे ही वो ऊपर ऐ तो, मैं उसका हुस्न देख कर एक दम धंग रे गया... नजीबा ने अपने बालो को हुआ था ऊपर अब अँधेरा चाने लगा था… लेकिन फिर भी मैं साफ देख पा रहा था… वो अभी भी ऑरेंज कलर के कमीज और व्हाइट कलर के सलवार पहनने वाले थे...वो मेरे सामने खादी हो गए…” आप को मुझसे कोई बात करनी तुम… ”उसने नज़र झुकते हुए कहा…” हान बेथो…” मैंने चारपाई की तरफ इशारा करते हुए कहा...तो वो मेरे बिकुल पास मैं बेथ गए...वो भी मेरी तरह थोड़ा नर्वस फील कर रही थी...उसने अपने हाथों को अपने जांघों (रानो) के ऊपर घुटनो के पास रखा हुआ था... हाथो के उन लोगों को आप मैं मसाला रही तुम…।
मैंने हिम्मत करके जैसे ही उसके हाथ के ऊपर अपना हाथ रखा तो, उसे चोंकते हुए एक बार मेरी तरह देखा और फिर से नजर झुका ली...उसने अपने हाथों की उन लोगों को अलग किया...जो थोड़े उलजी पहले थे था की, नजीबा ने इस्लिये अपने हाथों को अलग किया था...टंकी मैं उसके हाथ को अपने हाथ में ले सकुन... मैंने उसके नारम हाथ को अपने हाथ में लिया और उसे देखते हुए हुए बोला...।" आई एम रियली सॉरी नजीबा… मैं भूत बुरा इंसान हूं…” मैं अब नजीबा का रिएक्शन जना छठा था..इसलिये चुप हो गया…” किस लिए… और आपको किसने कहा की आप बुरे इंसान है….”
माई: तुमाने….
नजीबा: क्या मैंने...?
माई: हां तुमने कहा….
नजीबा: मुज पर इतना बड़ा गुना का इल्जाम तो ना लगान... मैने कब कहा... ….)
माई: मेरा मतलब है की तुमने भले ही ना कहा हो…. लेकिन तुम्हारे अच्छे ने मुझे इस बात का याकीन दिया दिया है की, मैं कितना बुरा इंसान हूं… और तुम कितना नेक दिल हो… मेरा ध्यान रखती है था...तब भी तुमने मुझसे नरजगी नहीं दिखाई...तुम सच में भूत अच्छी हो...
मैंने देखा की नजीबा बड़े गोरे से मेरी तरह देख रही थी... ऐसे जैसे याकेन ना हो रहा की, जो वो सुन रही है..वो सारे अल्फाज मैं खुद बोल रहा हूं... यान कोई और। "आप को क्या हो गया... आज आप ऐसी बात क्यों कर रहे हैं...?" नज़ीबा के चेहरे की रंगत अभी भी उड़ी हुई थी... कुछ नहीं... आज जब मैं तुम्हारे सामने अंडरवियर मैं खड़ा था... तो मुझे लगा की, तुम मुझसे सखती से नराज हो जाओगे। लेकिन जैसे तुमने रिएक्ट किया और मामले को संभला...मुजे याकेन हो गया की, मैं आज तक तुम्हारे साथ जयदाती करता आ रहा हूं...।"
नजीबा : अब बस करें... मैं ना कभी आपसे पहले नरज हुई थी... और ना आगे कभी होना है... अब ऐसे उदास मूड मैं ना रहा... मूड ठीक कर लिए...
माई: ओके मिस नजीबा….(मैंने नजीबा का हाथ छोटे हुए कहा…) लेकिन मेरी बात एक दम सच है…तुम सच मैं भूत अच्छी हो….और…..
मुझे एहसास हुआ की, मैं कुछ ज्यादा ही बोलाने वाला था… लेकिन अब नजीबा को भी इस बात का अंदाज हो गया था… ”और क्या मिस्टर। समीर..." नजीबा ने चारपाई से खड़े होते हुए कहा... और मेरे सामने खादी हो गए...मैं भी चारपाई से खड़ा हो गया..."और खूबसूरत भी...।" मेरे बात सुनाते ही नजीबा ने शर्मा कर नज़रे झुके ली...वो बोली तो कुछ ना... लेकिन उसके होने पर ऐ हुई मुस्कान भूत कुछ बयान कर रही थी...
रात हो चुकी थी...अब्बू और मेरी सौतेली अम्मी घर आ चुके थे...मैं अपनी सौतेली मां नाजिया से कम ही बात करता था... जब तक जरूरत काम ना होता, मैं उनसे बात करने से परहेज करता... कर रहा था… की नजीबा मुझे खाने के लिए बुलाने ऐ… तो मैंने इस्तेमाल किया ये कह कर मन कर दिया की, मुझे अभी बुक नहीं है… जब भुख होगी मैं खुद किचन से खन्ना लेकर खा लूंगा…। नजीबा वापस चली गई...मैं फिर से मैं लग गया...कल संडे था...इस्लिए सोने की जलादी नहीं थी...अब्बू खन्ना खा कर एक बार मेरे कमरे में ऐ...।
अब्बू: तुम्हारी पढाई कैसे चल रही है….?
माई: जी ठीक चल रही है….
अब्बू: देखो समीर इस बार तुम्हारे बोर्ड की परीक्षा है….अगले साल तुम्हारा एडमिशन कोलाज मैं होगा… और मैं छठा हूं की, तुम्हारा एडमिशन किसी अच्छे कोलाज मैं हो….
माई: जी अब्बू कोशिश तो मेरे भी यही है...
अब्बू: अच्छा ये बातो की 12वीं के बाद तुम करने का क्या सोचा है...
माई: अब्बू मैं सोच रहा हूं की, मैं 12वीं के बाद से सरकारी नौकरी के लिए कोशिश करना शुरू कर दूं... अगर मिली तो ठीक नहीं मिली तो पढ़ाई जारी रखूंगा.. और अगर मिल गया तो, साथ मैं प्राइवेट ग्रेजुएशन कर लुंगा...
अब्बू: अच्छा सोच रहे... चलो ठीक है...तुम पढाई करो...
ये कह कर अब्बू बहार चले गए… अब्बू अपने रूम मैं जा चुके तुम… नजीबा और अपनी अम्मी के साथ किचन मैं बार्टन वहीगराहा साफ कर रही थी… अपनी किताबें बैंड के और उठा कर किचन में चला गया... अपने लिए थाली मैं खन्ना डाला और पानी के बोतल और एक ग्लास लेकर अपने रूम में आ गया... खन्ना खाने के बाद मैं बिस्तर पर लाया गया...दोफर को भी आज सो गया था….इसलिय नींद का कोई अतापता नहीं था…मैंने ऐसे ही ख्यालों में लाया था की, मुजे वो दिन याद आ गए… जब अब्बू के कहने पर मैंने फारूक चाचा के घर जाना शुरू किया था…
मुझे फारूक चाचा के घर जाते हुए कुछ दिन गुजर चुके थे... तब मैं 7वीं क्लास मैं था... ना सेक्स की कुछ समाज तुम... और ना औरत और मर्द के बीच के रिश्ते की, मेरे लिए स्कूल मेरे दोस्त पढाई और क्रिकेट ही मेरी दुनया तुम...रिदा आप और सुमेरा चाचा दोनो ही मुझसे अच्छी तरह पेश आते थे... भले ही हमारी करीबी रिस्तेदार नहीं थे... परशानी पेश आ रही हो...रिदा आप भी यहां-2 मेरे मजूदगी से खुश होने लगी थी...अब वो बिना किसी परशानी यान शर्म के ही अपने बचाओ को मेरे सामने दूध पिला दिया कार्ति थे...
एक दिन मैं ऐसे ही रिदा आप के कमरे में बड़ा हुआ पढ़ रहा था... मैं उसके साथ ही बिस्तर पर था... के पीछे उसके दोनो बड़े तो रहे तुम...उसका फेस मेरी तरह था...और वो अपने सर को हाथ से सहारा दिए...मेरे काम की किताब मैं देख रही थी...तभी दूर घंटी सुनई दी...हम पहली मंजिल पर तुम... चाची नीचे ग्राउंड फ्लोर पर तुम…बेल की आवाज सुन कर रिदा आपी बेड से उतर गए… और गली वाली साइड जकार नीचे झंकार लगी….वो थोड़ी देर वहा खड़ी रही… और फिर वापसी आ गए….
तकरीबन 15 मिनट बाद रिदा आपी बिस्तर से उठी... और मुझसे बोली..."समीर तुम अपना काम पूरा करो...मैं 15 मिनट मैं नीचे से होकर आती हूं..." रिदा आप के बात सुन कर मैंने हां में सर हिला दिया...वो उथ कर नीचे चली गई... आप के दोनो बेटे सो रहे थे...मैं कुछ डर तो वही बैठा पढ़ाता रहा..फिर मुझे पेशब आने लगा तो, मैं उठ कर बाथरूम जाने लगा तो, मैं काम से बाहर आया... और गली वाली... मैं छत पर बाथरूम बना हुआ था ... जब मैं बाथरूम के तार जाने लगा ... तो छत के बीच बीच लगे हुए जंगल के ऊपर से गुजरा ... हुआ था…. टंकी नीचे रोशनी और ताजी हवा जा खातिर….) जब मैं उसके ऊपर से गुजरा तो, मेरे नजर रिदा आपी पर पाढ़ी…
वो उस समय सुमेरा चाची के कमरे की खिड़की के पास खादी थी... सुमेरा चाची का कमरा पीछे की तरफ था...रिदा आपी झुक कर खादी और खिड़की से अंदर झंक रही थी...मुजे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ की, रिदा आप इस तरह क्यों अपनी अम्मी के रूम में झंकार रही है... और ऐसा क्या है...जो रिदा आपी इस तरह चोरो की तरह खादी एंडर देख रही है...उस समय आने क्यों मुजे ये खविश होने लगे की, मैंने देखा हो की, ऐसा क्या किया एंडर जो रिदा आपी इस तरह छोरो के जैसे और झंकार रही थी...तभी मुझे ख्याल आया की, जब मैं बीजियां चढ कर ऊपर आटा हूं...
मैं बिना कुछ सोचे लोगों के तारफ गया… और जब दो तीन सेधयों को उतर कर उस घुमाव पर फुंचा… याह से बीजन मुदती थे… वह रोशनन था.. और फिर जैसे ही मैंने और झंका तो, मुझसे अबा का नजर दीखाई दीया….क्योंकी मैं रोशनदान से देख रहा था… इसलिय मुजे नीचे बिस्तर पर किसी अदामी के नंगी पीठ दिखाई दे रही थी… और उस अदामी के कांधे के थोड़े सा ऊपर सुमेरा चाची का चेहरा दिखी दे रहा था।
मैं सुमेरा चाची ने अपनी टैंगो को उठा कर उस सकाश के कमर पर लापता रखा था … और वो सकाश पूरी रफ़्तार से अपनी कमर को हिलाये जा रहा था… चुक्का था ... लेकिन जो मेरे सामने हो रहा था ... उस समय नहीं जनता था की, छोडना कहते हैं का उपयोग करें ..वो सकाश और सुमेरा चाची दोनो पासने से तरबतर थे ... सुमेरा चाची ने अपने बाजों को हमें ..."ओह्ह्ह्ह बिल्लू आज पूरी कसार निकल दी... बड़े दिनो बाद मौका मिला है..." बिल्लू नाम सुनाते ही मुझे पता चल चुक्का था की वो सकाश और कोई नहीं फारूक का छोटा भाई ही था ... जिसे गांव वाले से बिल्लू के नाम आपको पुकारते…
"आह्ह्ह भाभी जोर तो पूरा लगा रहा हूं...लेकिन जैसे-2 तेरी उमर बढ़ रही है... साली तेरी फुदी और टाइट और गरम होती जा रही है... ओह देख मेरा लूं कैसे चरण- 2 के और जा रहा।" बिल्लू ने और रफ्तार से झटके लगाने शुरू कर दिए… अब तक कुछ कुछ समाज आ चुका था की, और क्या चल रहा था… वो दो जो भी कर रहे हैं,….दोनो को मजा भुत आ रहा है….मुजे इस बात का डर था की, कही आप भी आने के लिए आगे की तरफ आ गई तो, उसकी नजर सीधा मुझ पर पढा है... मैने वहा मुनासिब नहीं समजा….और वहा से ऊपर आ गया….और बिस्तर पर बेथ कर फिर से किताब को पढने लगा….
15 मिनट बाद आप ऊपर आए...उसने दूर पर खड़े होते हैं मुझे देखा और फिर अपने बचाते हैं बोली..."बछो मैं से कोई उठा तो नहीं..." मैने ना मैं सर हिला दिया.." ठीक है मैं बाथरूम जकार आति हुन…” आप फिर बाथरूम मैं चली गए… फिर वो थोड़ी देर बाद वापस आ तोह, उसके चेहरे पर अजीब सा सकून नज़र आ रहा था… आप ने बिस्तर पर लाए हुए कहा..."पर मेरा मान नहीं कर रहा था की, मैं वहा लातून...मैं बेमन से लाए गया...आप तो लाए तो गए...पर मेरे आंखों से नींद भूत दूर तुम...बार - 2 सुमेरा चाची के कमरे का नज़र मेरी आँखों के सामने आ जाता,…
शाम के 5 बज चुके थे... जब रिदा आप का बेटा उठा कर रोने लगा...तो वो भी उठा कर बे गए...आपी को जगा देख कर मैं भी उठा कर बेठ गया...आप मेरी तरह देख कर मस्करी..." तो लिया ..."मैंने हां में सर हिला दिया..और बिस्तर से नीचे उतर कर बाहर जाने लगा..."समीर कहा जा रहा हो...?"
माई: जी आप बहार जा रहा खेलने…..
रिदा : अच्छा जाते जाते अम्मी को कहना की फीडर मैं दूध दाल कर ऊपर दे जैन….
माई: जी के दूंगा...
मैं वहा से नीचे आने लगा… जब मैं नीचे फुंचा तो, देखा की सुमेरा चाची के कमरे का दरवाजा खुला था… मैं और गया तो, वहा कोई ना था… मैंने बहार निकल कर किचन में देखा तो, वह भी कोई नजर नहीं आया। .तब मुजे बहार गेट की तराफ जो कामरा था...उढेर से सुमेरा चाची की आवाज ऐ...मैं उस कामरे के तारफ गया... और जैसे ही मैं उस कामरे के और फुंचा तो, देखा सुमेरा चाची और बिल्लू दोनो सोफे पर साथ -2 तुम… बिल्लू ने अपना एक बाज़ू सुमेरा चाची के पीछे दाल कर कांधे पर रखा हुआ था… और उसका दशहरा हाथ चाची के बाएं कमीज के ऊपर से बाएं मम्मे पर थे…मुजे इस तरह एक दम से और देख कर दो हड़बाड़। चाची तो ऐसे उचचल कर खादी हो गए... जैसी उसकी बंद पर किस्सी ने बिजली की नंगी तारों को टच करवा दिया हो….
चाची: अरे समीर पुत्तर तुम नीचे क्यों ऐ…. कुछ चाहे क्या…?
माई: नहीं वो आप कह रही थी कि आप को बोल दूं की फीडर मैं दूध दाल कर उन्हे दे आए….
चाची: अच्छा मैं दे आती हूं….तुन यहां बेठ….
माई: नहीं चाची मैं खेले जा रहा हूं….
मैं वहा से बहार निकला ही था की, पीछे बिल्लू की आवाज ऐ….”अच्छा भाभी जान मैं भी चलता हूं….” मेन गेट खोल कर बहार निकला आया… और मैदान की तरफ जाने लगा… तो पीछे से बिल्लू ने मुझे आवाज दी… मैंने पीछे कीचड़ कर देखा तो, वो मेरी तरह से आ रहा था… बिल्लू मेरे पास आया और मेरे कांधे पर हाथ रखते हुए बोला..."कह जा रहे हैं..."
माई: ग्राउंड मैं जा रहा हूं….
बिल्लू: अच्छा मुझे भी उधार ही जाना था...
वो मेरे साथ चलने लगा... जैसे ही हम ग्राउंड के पास फुंचे तोह, बिल्लू ने मेरा हाथ पक्का और मुजे रोड पर हलवाई के दुकान पर ले गया..."चल आ भतीज तुझसे समोशे खिलावत हूं..."
माई: नहीं मुझे किताब नहीं है... मैने नहीं खाने...
बिल्लू : चल आजा यार….एक दो खा ले….
माई: नहीं सच मैं चाचा जी…..मेरा खाने का मान नहीं है…..
बिल्लू: अच्छा भतीज आज तूने जो भी देखा यार देख उस नंगे मैं किसी से बात नहीं करना... नहीं तो मेरे और भाई जान के बीच झगड़ा हो जाना है...
माई: नहीं कर्ता….
बिल्लू: पक्का ना…..
माई: हां नहीं करता….
बिल्लू: यार तूने मेरे दिमाग से भूत बड़ी टेंशन निकल दी…. अगर तू थोड़ा बड़ा होता.. तो तुझे भी भाभी जान के फुदी दिलावा देता… लेकिन अभी तेरी उमर भुत कम है…
माई बिल्लू के बात पर चुप ना रहा...।" अच्छा देख अगर तुन ये बात किसी को नहीं बताएगा तो, कल मैंने तुमसे सहर से नया बट ला दूंगा... लेकिन मुझसे वादा करो की, ये बात तुम किसी से नहीं कहोगे...
माई: मैं नहीं करता…लेकिन मुझे बता भी नहीं चाहिए….
बिल्लू: अब तुम मेरा इतना बाद राज छुपा रहे हो तो, मेरा भी फ़र्ज़ बनता है ना अपने राजदार को कुछ तो तोफ़ा दूं….
माई बिल्लू के बात सुन कर मुस्कान लगा… लेकिन बोला कुछ ना… मैं वहा से स्कूल के दिवार की तरफ गया….मुजे दोफर से ही पेशब लगा था….जो सुमेरा चाची के कमरे के नजर के चक्कर मैं करना भूल गया था… .अब मुजे भुत तेज दबाव लगा था..मैंने जैसे ही सलवार का नाडा खोल कर अपने लुन को बहार जो की दबाव से पूरी तरह सखत खड़ा था…. जैसे ही मैं पेशा करने लगा… तो मैंने नोटिस क्या लूं, बिल्लू मेरे की तरह बड़े गोर से देख रहा है...मैंने पेशाब किया और फिर अपनी सलवार का नाडा बैंड करके जैसे ही ग्राउंड मैं जाने लगा...तो बिल्लू मेरे पास आ गया..."
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