मेरा प्यार मेरी सौतेली मां और बहन Part 2




मेरा प्यार मेरी सौतेली मां और बहन  Part 2


समीर



नजीबा







नाज़िया





माई: चाचा जी आप किस हाथ की बात कर रहे हैं….


 बिल्लू: तेरी लुन की बात कर रहा हूं….पेंछोड़ अगर इस उमेर मैं तेरा लुन इतना बड़ा है तो 3-4 साल बाद तो और बड़ा जो जाना है इसने… तेरी तो ऐश है…  लग रहा था...इससे पहले मेरे दोस्त के बीच में ऐसी बात नहीं हुई थी...लेकिन कहते हैं ना..."आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है" जरूरत और ख्वाइश ही इजात की मां होती है...वैसे ही हाल उस वक्त मेरे  हो चुका था…. इसलिये मैं जिजकाते और शर्मते हुए भी बिल्लू से पूछने से रोक ना पाया….)


 माई: वो कैसे...


 बिल्लू: यार देख तेरा लुन तेरी उमर के बचाओ के हिसब से कहीं बड़ा है…..और जब कोई सेक्स की भुखी औरत ऐसे तगड़े लूं को देख ले तो, वो जलद ही उस शक पर आशिक।  फुदी मारवती है….


 माई: चाचा एक बात पूछ...?


 बिल्लू : हां पूछेंगे...


 माई: क्या सच में मेरा हाथ तगड़ा है…..


 बिल्लू: और नहीं तो क्या… मैं क्या झूठ बोल रहा हूं… मेरे जैसे आदमियों का लूं भी 5-6 इंच के बीच मैं होता है… तेरा तो अभी से 6 इंच लंबा लग रहा है….कभी नपा है ट्यून….


 माई: नहीं….


 बिल्लू: लेकिन है तेरा 6 इंच के करीब …… अच्छा जा अब तू खेल मुझे भी जरूरी काम याद आ गया है….


 मैंने वहा से ग्राउंड मैं चला गया… और वह अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलाने लगा… शाम को अब्बू के घर आने से पहले मैं वहा से दूर होकर घर वापस आ गया…  के रूम का नज़र घुमाता रहा...अगले दिन सुभे तक मेरे दिमाग मैं सनक बेथ चुकी थी...

 

 उस रात मैं अपने गुजरे हुए दिनो के याद में खोया कब सो गया पता नहीं चला... अगली सुहे मुझ बाहर से आवाज ऐ तो मेरे आंख खुल गए... मैने उस कर समय देखा तो सुभे के 5:30 बजे तुम...  का बल्ब जल रहा था..बहार अब्बू नजीबा से बात कर रहे थे... शायद वो और मेरी सौतेली अम्मी कहीं जा रहे थे... उनके बातों से मैं और नहीं लगा पाया की, वो इतने सुभे-2 कहा जा रहे हैं...  राजाई के अंदर लाता हुआ था...फिर थोड़ी देर बाद मुझे गेट खुलने और बंद होने की आवाज आए...इसका मतलब की मैं और नजीबा दोनो घर मैं अकेले थे...ऐसा नहीं था की, पहले कभी हम घर पर अकेले नहीं होते थे।  लेकिन पिचले कुछ दिनों के हदशो ने मेरे सोचा समाजे का राव्या और बदल दिया था…


 मैं बिस्तर से नीचे उतर और बहार आया...बहार बहुत थांड थे...हल्की-2 धुंढ चले हुए थे...बरमेड मैं एक लाइट जल रही थी...  ..नजीबा अपने रूम में जा चुकी थी...मुजे पता नहीं उस वक्त क्या सूजा..मैं नजीबा के कमरे की तरफ बढ़ने लगा... मैने नजीबा के कमरे के दूर के सामने जकर देखा तो, और लाइट ऑफ तुझे... मैंने दरवाजा  दस्तक किया तो, एंडर से नजीबा की आवाज ऐ..."कोन है..."


 माई: मैं हूं समीर…..


 फिर खामोशी चा गए….थोड़ी डेर बाद दूर खुला तो, नजीबा समाने खादी ते…उसे पीले का रंग का पाताल सा सलवार सूट पहचान हुआ था…”जी…कुछ चाहिए….”  नजीबा ने मेरी तरह देखते हुए पूछा..."वो अम्मी और अब्बू सुभे-2 कहा गए हैं...?'


 नजीबा : उनके एक दोस्त के शादी है… वही पर गए हैं…जा जाना था…वो जग दूर है…इसलिये सुहे-2 ही निकल गए…


 मैं सिर्फ टीशर्ट और पायजामा पहनने खड़ा था … और बहार मौसम भूत सर था…।  "मैं आपके लिए चाय बना दूं...।"  नजीबा ने मेरी तरह देखते हुए पूछा... "नहीं तुम सो जाओ... मेरे ख्याल से तुम्हारी जरूरत अभी पूरी नहीं हुई होगी... वैसा भी बहार भूत थंड है...।"  मैंने इधर उधर देखते हुए कहा तो, नजीबा ने सर झुकते हुए मुस्कान कर कहा... "हां थांड तो है... आप और आ जाने..."


 माई: नहीं तुम परशन हो जाओगे….


 मैं वहा से अपने रूम में आ गया... और बिस्तर पर चढ़ कर राजी के एंडर घुस गया... मेरी फिर से हल्की से आंख लग गए... फिर जब आंख खुल गई तो किचन से आवाज आ रही थी...  और चाय बना रही थी... मैं लाए-2 टाइम देखा तो, सुभे के 6:15 हो रहे थे... और लाइट बैंड थे...  जाने लगा तो देखा नजीबा चाई बना रही थी...मेरे कदमो की आवाज सुन कर उसे पीछे मिट्टी कर देखा...लेकिन मुझे जल्दी तुम बाथरूम जाने की, इस्लिए मैं बाथरूम मैं चला गया ... जब ताजा होकर बहार आया तो, सीधा किचन मैं चला गया  ...चाय बन चुकी तुम... मैंने देखा की, नजीबा के बाल खुले हुए थे तुम... और जिले तुम... शायद उसे आज सुभे-2 ही नहीं लिया...


 "चाय बन गए...?"  मैंने उसके पास खड़े होते हुए पूछा….”जी….”  जैसे ही नजीबा बोली तो मुझे एहसास हुआ की वो थांड के करन कानप रही थी...सरदी जायदा थी...इसलिये मैंने कोई खास गोर ना किया... नजीबा चाय कप मैं डाली और मैं वहा से कप उठा कर अपने कमरे में मैं आ गया  चाय पीने लगा….


 चाय पीटे हुए मेरे दिमाग मैं आया की, लाइट तो पता नहीं कब से कट है... तो फिर कहीं नजीबा ने सुभे-2 ठंडे पानी से तो नहीं नहीं लिया... जैसे ही मेरे मान में ये ख्याल आया... मैं चाय के कप को वही  रखा और नजीबा के कमरे की तरफ चला गया.. जब मैंने रूम के दरवाजे को दस्तक देने के लिए हाथ बढ़ाया तो, रूम का दरवाजा खुल गया... जब मैं और दखिल हुआ था...  कमरे के खिड़कियों के आगे से परदे हटे थे... जिस अब बहार की हल्की रोशनी और आ रही थी...उसने मेरी तरफ देखा और कनपटी हुई आवाज मैं बोली..." कुछ चाहे था, .... "उसकी आवाज सुन कर मुझे उसकी हलत  का अंदाज हुआ….


 मैं उसके पास जकार बिस्तर पर बेथा तोह, मैंने महसूस किया की वो बुरी तरह से कानप रही थी….”क्या हुआ तुम्हें… ऐसे कानप क्यों रही हो….?”  मैंने उसके माथे पर हाथ लगा कर चेक करते हुए कहा..."का कुछ नहीं वो सुभे-2 नहीं लिया इसलिय...।"


 माई: तो तुम्हें किसने कहा था सुभे-2 नहं के लिए ऊपर से लाइट भी नहीं है...


 क्योंकी जब मैं बाथरूम मैं गया था… तो मुझे टंकी के अंदर के पानी के ठंडे के नंगे मैं पता था… हमारी पानी की टंकी छत पर खुले मैं… तो जहीर से बात थी की, रात को बाहर सरदी मैं होने की वजे  से पानी कितना ठंडा होता है... "मजबूरी तुम...?"  नजीबा ने कनपटे हुए कहा….”


 माई: ऐसे भी क्या मजबूरी थे…..जो सुभे-2 ठंडे पानी से नहीं लिया वो भी इतनी सर्दी मैं…


 नजीबा: वो जब न जाने गए थे...तब रोशनी तुम... गीजर ऑन किया...थोड़ा सा पानी गरम हुआ तो नहना शुरू कर दिया...बीच मैं लाइट चली गई...बदन पर सबन लगा हुआ था...तो फिर मजबूरन ठंडे पानी से नाहना पढ़ा...  .


 माई: तुम्हारा भी कोई हाल नहीं है….


 मैं बात को बड़ी आसन से ली रहा था...मुजे उस वक्त तक नजीबा की हलात का कोई अंदाज नहीं था की, किस कादर सरदी लग रही है...उसने करवा बदली और मेरे तार पीठ कर ली...और आप  कासके पक्का लिया… मैंने राजी के ऊपर से जैसे ही उसके कांधे पर हाथ रखा तोह, उसके बदन को बुरी तरह कनपटे हुए महसूस करके मेरे होश एक दम से उध गए… ”नजीबा तुम्हारा बदन तो भूत गया…”  कांधे पर हाथ रखते हुए कहा... "आप फ़िकर ना करें थोड़ी देर मैं ठीक हो जाएगा...।"  मैं उसकी बात सुन कर चुप हो गया… और वही बैठा रहा…मजीद 5 मिनट गुजर चुके थे…लेकिन नजीबा का बनाना कम ना हुआ….वो पहले से ज्यादा कनप रही थी….


 मैं भुत दारा हुआ महसूस कर रहा था...इससे पहले आज तक मैंने कभी ऐसे हलात का सामना नहीं किया था..."नजीबा..." मैने सेहमे हुए लेहजे मैं कहा..."जी...।"  नजीबा ने बड़ी मुश्किल से जवाब दिया..."सरदी भुत जायदा लग रही है..."  इस बार नजीबा ने थोड़ी देर रुक कर जवाब दिया….”जी…आप फ़िकर ना करें…थोड़ी डेर मैं ठीक हो जाएगा….”


 माई: ऐसे कैसे ठीक हो जाएगा….कब से यहीं सुन रहा हूं….


 अब तो मेरे दिमाग ने भी काम बंद कर दिया था...मुजे और कुज तो न सुजा पर रिदा आप के साथ बिटे हुए एक सरद रात याद आ गए... जब मैं और रिदा आप उनके घर के छत पर खुले मैं  उस वक्त जोरो की सर्दी पढ़ रही थी... मैं और रिदा आप राजाई के एंडर होंगे एक दसरे से लिपटे हुए थे... और थंड का नमो निशान नहीं था... जैसे ही वो बात मुझे याद क्या मैंने एक पल सही के लिए  गलत कुछ ना सोचा … और एक तरफ से रजई उठा कर और ग़ुस्स गया… नजीबा की पीठ मेरी तारफ तुम… जैसे ही इस बात का एहसास हुआ तो, वो एक दम से चोंक गए…।  "ये ये ऐप क्या कर रहे हैं..."  लेकिन तब तक मैं उसके पीछे लाया चुक्का था…मेरा पूरा बदन सामने की तरफ से उसके पीछे की तरफ से चिपका हुआ था…


 मैंने नजीबा के बात की परवाह ना कराटे हुए, एक सही बाज़ू उसके कमर से गुजर कर उसके पैत पर रख लिया….और इस्तेमाल किए अपने से चिपका लिया….”ये आप क्या कर रहे हैं…?”  नजीबा के आवाज मैं अब कंपन के साथ-2 सरगोशी भी तुम... कुछ नहीं ऐसे तुम्हें गर्म मिलेंगे...मुजे गलत मत समाधान... लेकिन अभी मैं जो कर रहा हूं... वही ठीक है... मुज पर भरोसा है ना...।  .?  "मैंने नजीबा के बदन से पीछे से और अपने साथ और डबा लिया... नजीबा बोली तो कुछ ना लेकिन उसे मैं सर हिला दिया... हम दोनो के बदन एक दसरे से पूरी तरह चिपके हुए तुम...  तुम... तक्रीबन 6-7 मिनट बाद नजीबा का बनाना कम होने लगा...


 लेकिन अब एक और नई समस्या हो चुकी थी ... मेरा बदन की सामने की तरफ जो की नजीबा के पीछे से पूरी तरह टच हो रही थी...उससे उठाती गरमी के करन मेरा लूं जो नईजबा के गोल मतोल बंद पर दबा हुआ था।  -2 सखत होने लगा था….मुजे दर लगान लगा था की, कहीं नजीबा मेरे लुन को अपनी बंद पर महसूस ना कर ली।  और कहीं मुझे गलत न समाज बेथे… मैं वहा से उठने ही वाला था की, फिर कुछ सोच कर रुक गया… मैंने मान ही मान सोचा क्यों ना आज अपनी किस्मत को आजमा कर देखा…


 पहले जहां मैं नजीबा के बदन को गरमी देने के करन उससे चिपका हुआ था … और मेरे जहां मैं डर बेथा हुआ था की, कहीं नजीबा को कुछ हो ना जाए …  के बुंद के लाइन के बीच में था..वो अब पूरी तरह सखत हो चुका था...मेरे लुन और नजीबा के बीच नजीबा की पाटली से सलवार और मेरा भुगतान ही था... क्यों मैं अक्सर रात को अंडरवियर से पहले  देता हूं….उस समय नजीबा ना तो कुछ बोल रही थी और ना ही कानप रही थी…लेकिन जब मेरे लुन उसे बंद से रागद खाता हुआ, जैसे ही उसके बुंद के लाइन मैं घुस्सा तो, उसके बदन ने एक तेज...


 मैंने अपनी सांसों को रोक लिया… और नजीबा के रिएक्शन का इंतजार करने लगा… लेकिन नजीबा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई…मुजे अपने लून का तोप्पा मजीद गरम भट्टी मैं धंस्ता हुआ महसूस हूं... मैं साफ तो हूं  रहा था की, नजीबा भी मजीद मुझसे चिपकटी जा रही है...मेरा लुन पजामे को फड़ कर बहार आने वाला हो गया था..."नजीबा...?"  मैंने खोमशी तोते हुए कहा….”जी….”  नजीबा की आवाज़ मैं सरोग्शी साफ महसूस हो रही थी..."अब कैसा महसूस कर रही हो..." मैंने उसके पीछे को सहते हुए कहा... तो उसका जिस्म फिर से कानप गया...।


 नजीबा : जी पहले से बेहतर है….


 माई: अच्छा ठीक है….मैं तुम्हारे लिए चाय बना लाता हूं….फिर तुम और अच्छा लगेगा….


 नजीबा : मुझे चाय नहीं चाहिए….


 माई: तो फिर क्या चाहते हैं...


 नजीबा: कुछ नहीं मैं अब ठीक हूं….


 मुख्य: अच्छा ठीक है तो फिर मैं चलता हूं….


 नजीबा: (जब मैंने जाने का कहा तो, उसने मेरा हाथ और जोर से पक्का लिया….) रुक जाए प्लीज….थोड़ी डेर और….


 नजीबा की आवाज़ मैं वासना की खोमरी चले हुए थे… मैं भी वहा से जाना नहीं छठा था… इसलिये मैं भी अपनी कमर को नीचे से पुश किया तोह, मेरा लुन उसकी सलवार के ऊपर से उसके बुंद के मोरी पर जा लगा…उसका  पूरा बदन मस्ती मैं कनप गया..."उसके मुंह से हलकी से सिसकारी भी निकल गए...।"  तबी बहार दरवाजे की घंटी बाजी… हम दोनो हद बढ़ा गए… मैं जलादी से उठा और समय देखा तो 7 बज रहे थे…” दूध ले लो शाह जी….”  बहार से हमारे दूध वाले की आवाज ऐ… तो मुझे ख्याल आया की दूध वाला है… मैं किचन मैं गया… और वहा से बार्टन उठा कर बहार आकर गेट खोला… दूध वाले ने दूध बार्टन मैं डाला और चला गेट गया….  किया और दूध के बार्टन को किचन मैं रख कर फिर से नजीबा के रूम मैं चला गया… जब मैं वहा फुंचा तो नजीबा ड्रेसिंग टेबल के सामने खादी अपने बालो मैं कंघी कर रही थी……


 जैसे ही उसे मेरा आकाश आया में देखा तो, उसने शर्मा कर नजरे झुका ली..."अब कैसे हो...?"  मैंने दूर पर खड़े-2 पूछे..."जा अब बेहतर हूं..."


 माई: दूध किचन मैं रख दिया है...मैं दुकान से ब्रेड और एंडे ले आटा हूं...


 मैंने बहार का गेट खोला और दुकान की तरह चला गया….आज तो लग रहा था की, सरदी गरीब जोरो पर है… गली मैं इतनी धुंड चाहिए थे की, सामने कुछ भी नजर नहीं आ रहा था…

 गली मैं धुंड चले हुए थे...जिसके करन थोड़ी दूर तक ही नजर आ रहा था... मैं अभी दुकान से कुछ दूर था... और जैसे ही मैं सुमेरा चाची के घर के सामने से गुजरा तो, उसी वक्त सुमेरा चाची हाथ मैं बाल्टी  लिए बहार ऐ….  सुमेरा चाची भैंस का दूध निकलाने जा रही थी... उनके घर के ठीक सामने वह उनका एक छोटा सा प्लॉट था...जिसके चारो तरफ बड़ी-2 सीमाएं थीं... और समाने एक लकड़ी का दरवाजा था...  पढी….तो वो मुस्कराते हुए बोली….”सवेरे सवेरे किधर दे सैर हो रही है….?”  (सुबे सुभे कहा घुमने जा रहे हो….) मैं उसके पास रुक गया….”वो दुकान से ब्रेड और और लेने जा रहा था…”


 सुमेरा चाची ने गेट बंद किया और गली मैं आधार उधार नज़र मारी… सरदी के वझे से कोई दिखाई नहीं दे रहा था… अगर गली मैं कोई होता भी तो, धुंध के करन हम देख नहीं पाता… सुमेरा और मेरे पास से आ गया  बोली..."हवेली मैं चल..."  लेकिन मैंने साफ मन कर दिया...कह दिया की, नजीबा घर पर अकेली है... मैं दुकान पर गया...वह से दूध और और वह और घर के तारफ चल पढ़ा... जब मैं घर के पास फुंचा तो, मैंने देखा की हमारे घर  के बहार एक मोटर साइकिल खड़ा है... फिर जब और पास फुंचा तो मोटर साइकिल देख कर पता चला की, ये बाइक तो नजीबा के मामा की है...


 मैंने गेट को देखा तो, गेट खुल गया… सामने बरमदे मैं नजीबा के मामा और मामी जी बेथे हुए थे… मैं और गया तो नजीबा किचन से बहार आ गया.. मैने उसे ब्रेड और आंडे पकेडे… और फिर नजीबा के  मामा मामी के जोड़ी चुए... दुआ सलाम के बाद मैं उनके पास ही बेथ गया...नजीबा चाय बना कर ली ऐ..."आप इतनी सुभे-2 सब खड़ीत तो है ना...?"  मैंने नजीबा के मामा से पूछा….’ हां सब ठीक है… हम नजीबा को लेने आए थे… ऐसी मामी ने आज सहर मैं शॉपिंग के लिए जाना है… ये कह रही थी की, नजीबा को साथ लेकर जाउंगी..  पसंद भुत अच्छी है….


 माई: ओह अच्छा….जरूर ले जाए….


 मैंने नजीबा की और देखते हुए कहा… उसके लिए मानो मुजे धन्यवाद बोल रही थी… की मैंने खुशी-2 उसके मामी मामी के साथ जाने के लिए हां कह दी…


 ममी : चल बेटा तयार हो जा फटाफट...


 नजीबा: ममी से बस 15 मिनट बेथे….मैं नास्ता बना लूं…फिर चलते हैं….


 उसके बाद नजीबा बुरा केला लगा... मैं उसके मामी से इधर उधार के बातें करने लगा...  चली गई,…..मुजे ख्याल आया की, नजीबा भी जा रही है… और मैं घर पर अकेला हो जाउंगा… क्यों ना सुमेरा चाची यान रिदा को अपने घर पर अकेले होने के नंगे मैं बता दूं… आज घर बुला कर दोनो मैं  किस्सी एक की अच्छी तरह फुदी मारुंगा... अब मैं मान ही मान दुआ कर रहा था की, नजीबा के मामी नजीबा को जलादी से लेकर घर से चले जाएंगे...

 हिंदी सेक्स कहानी - अंतरवासना सेक्स कहानियां - बांग्ला छोटी कहिनी

 

 करीब 15 मिनट बाद नजीबा तयार होकर बहार ऐ… ..उसने महरून कलर का सलवार कमीज पेहन रखा था…आज तो वो गजब दा रही थी…उसके मामा मामी इस्तेमाल साथ लेकर चले गए….  गेट को ताला लगा कर सुमेरा चाची के घर की तरफ चल पढ़ा... लेकिन शायद आज मेरी किस्मत ही खराब थी... सुमेरा चाची रिदा और फारूक चाचा तीनो घर के बहार खादी टैक्सी मैं बेथ रहे तुम... शायद वो भी वही थे।  मैं पीछे से ही मिट्टी आया...घर फुंचा गेट का ताला खोल और गया...और नास्ता प्लेट मैं दाल कर खाने लगा...नस्ते के बाद मैंने बार्टन किचन में रखे...और अपने कमरे में मैं आकर टीवी पर किया और बिस्तर पर राजी ओध कर बेथ गया  ….


 मैं मान ही मान अपने आप को कोस रहा था...थोड़ी डेर पहले कितना अच्छा मोका था...सुमेरा चाची को चोदने का...जो मैंने गावा दिया था...बेड पर बेथे-2 एक बार फिर से वही याद ताजा होने लगे दिन...।  जब मैं स्कूल से आने के बाद सुमेरा चाची के घर गया तो रिदा आप उस दिन घर पर अकेली थी...  हुई बातें घुम रही थी... जब मैं रिदा आप के साथ आया तो हम उनके काम मैं चले गए...रिदा आप ने मुझसे मेरा स्कूल बैग खोला को कहा... मैने बैग खोला तो, उन्होन ने मेरी स्कूल डायरी केनिकल कर चेक किया  ..और फिर मुजे होम वर्क करने को कहा….मैं अपना होम वर्क करना लगा...।


 रिदा आप ने बचाओ को चेक किया... जब उन इतमीनान हो गया की, बचे सो रहे हैं तो, वो मुझसे बोली..."समीर मैं कपड़े धोने जा रही हूं...तुम घर का काम करो... और हां आवाज मत करना...नहीं तो बचे तुम  तो, मेरा काम बीच में ही रह जाएगा...आज अम्मी भी घर पर नहीं है..."


 मैंने रिदा आप की बात सुन कर हां में सर हिला दिया...रिदा आप बहार चली गई...और कपड़े धोने के लिए बाथरूम मैं चली गई...मैं अपनी किताबें निकल कर बेठ तो गया था...लेकिन मेरा मान पढ़ा मैं नहीं लगा रहा  ....बार-2 मेरा ध्यान बिल्लू चाचा की कहीं बाओं की तरफ जाता...मेरे जहां मैं यही चल रहा था कि क्या सच में फुदी माराने से इतना मजा आता है...मैं शुरू से ही दिलाएर किस का सकाश कुछ था...  से दाता नहीं था… बिल्लू की एक बात मेरे जहान में मैं बस छुकी थी…. की अगर कोई औरत जो चुडवाने के लिए तरास रही हो… अगर वो किसी का सच और तगाड़ा लूं देख ली तो, वो खुद उसे उसके आगे  ..


 इस बात ने मेरे जहान में तोफान उठा रखा था... जब मेरे जहां मैं कल सुमेरा चाची के कमरे का वक्त आया तो, मेरे लुन जो की उस समय 6 इंच के करीब हो चुक्का था...वो धीरे-2 मेरे सलवार मैं सर उठा  था… मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ ये सपना देख रहा था की, मैं और सुमेरा चाची दोनो एक दम नंगे बिस्तर पर लाए हुए हैं… और मैं सुमेरा चाची के ऊपर चड्ढा चाची के फुदी मैं अपने लुन को तेजी से और बाहर  हूं….ये ख्याल मेरे जहां मैं ऐसा समा चुक्का था.. की मुझे लग रहा था की, जैसे सब कुछ मेरे आंखों के सामने हो रहा हो….


 ये सब सोचते हुए मेरे लून पूरी तरह सखत हो चुक्का था... और मुझे पता नहीं चला कब मैंने अपने लुन को सलवार के ऊपर से पक्का कर दबाना शूरू कर दिया... मैं पता नहीं कब याही सब सोच रहा था...  वक्त धाराशाही हो गए… जब रिदा आपी का एक बेटा एक दम से उठा गया… मैंने चोंकते उहे उसे तारफ देखा तो, वो हलका सा रोया और फिर उसे अपने अच्छे यहां-2 बैंड कर ली… तब मैंने अपने लूं  किया…जो सलवार को ऊपर से उठे थे…लुन इतना सखत खड़ा था की, अब मुझे उसमे हल्की-2 दर्द होने शूरू हो गए थे…मुजे फील हो रहा था… जैसे मुझे तेज पेशा आ रहा हो….


 मैं बड़ी अहिस्ता से बिस्तर से नीचे उतरा...टंकी रिदा आप के बच्चे उठ ना जाए...बेड से उतरने के बाद माई रूम से बहार आया...और बाथरूम की तरफ गया...ऊपर जो बाथरूम था...उस्मी मैं एक साइड पर कमोड था...  .टॉयलेट के लिए अलग से बाथरूम नहीं था... मैं बाथरूम के दरवाजे पर खड़ा हुआ ... तो मेरे नज़र रिदा आपी पर पाढ़ी.. वो नीचे जोड़े के बाल बेटी हुई, कपड़ो को रागद रही थी ... रिदा आप के बड़े-2 मम्मे अगे  के तार झुकाने की वजे से बहार आने को उतारे हो रहे थे….  मैं उसके बड़े-2 सही मुमो को साफ देख सकता था...रिदा आपी की ब्लैक कलर की ब्रा की हलकी से झलक भी ओपेरा से साफ दिख रही दी रही थी...ये सब देख कर मेरा लुन और ज्यादा सखत हो गया।  ...."  मैंने दूर पर खड़े होकर रिदा आप को पुकारा...तो रिदा आप ने मेरे तारफ देखते हुए बोला..."क्या हुआ...?"


 माई: आपी वो मुझे बाथरूम जाना है….


 रिदा आप मेरे बात सुन कर खादी हो गए...उनने कपड़ों को एक तरफ किया और बहार आ गए..."जाओ..." वो बहार खादी हो गए ...  ऊपर उठाई...और अपनी सलवार का नाडा खोलाने लगा...लेकिन जैसे ही मैंने सलवार का नाडा खोलाना शुरू किया...तो उसमे गांठ पढ़ा गए...मैं सलवार का नाडा खोलाने की कितनी कोशिश करता...गंठ उतनी ही टाइट हो जाती...  मैं एंडर पसीनों हो रहा था..लेकिन गण खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी...मैं मजीद कोशिश कर रहा था...।  "समीर क्या हुआ...इतनी डेर एंडर सो तो नए गए हाहाहा...."  बहिर से रिदा आप के हसने की आवाज आ रही थी... मैं कुछ ना कह पाया... एक मिनट बाद फिर से फिर से आप ने कहा..."समीर...।"


 माई: जी आपी….


 रिदा : समीर मसाला क्या है...?  इतना समय क्यों लगा रहे हो….?


 माई: आपी वो नादे मैं गण पढ़ गए हैं… खुल नहीं रहा…


मेरे बात सुनते ही रिदा आप बाथरूम के अंदर आ गए… और हंसते हुए बोली… “सबाश ओए… सलवार का नादा नहीं खुल जाता तुझसे…अगे चल कर तेरा पता नहीं क्या बनाना है….?  "उस वक्त मेरी वापस रिदा आप की तरफ तुम..." अब इसमे गण पढ़ गए तो मेरा क्या कसूर... खुल ही नहीं रही...।"  मेरे बात सुन कर रिदा आपी कहका लगा कर हसने लगे..और मोह से चुचु की आवाज करते हुए बोली..."सड़क जवान तेरे... तेरे से एक नादा नहीं खुलता... शादी के बाद पता नहीं तेरा क्या बनाना है..."

  

  "अब इस्का मेरे शादी से क्या कनेक्शन..." मैंने खीजते हुए कहा...।  "चल हट ला मुझे दीखा ..." रिदा आपी ने एक दम से मेरे कंधा पका कर मुझे अपनी तरफ घुमा लिया ... एक पल के लिए तो मैं इस बात को लेकर सेहम गया की, अगर रिदा आप ने मेरे लुन खड़े को इस सलवार में रखा।  तंबू बनाये देख लिया तोह, पता नहीं किया जाएगा… पर अगले ही पल बिल्लू के बात जहां मैं घूम गए…. मैं भी रिदा आप के तारफ घूम गया… और जैसे ही वो सलवार का नाडा खोलाने के लिए जोड़े होंगे…  उसने मेरे कमीज को अगले से पका कर ऊपर उठे हुए कहा…”ले पके इससे…” मैंने जैसे ही कमीज ऊपर की..रिदा आप ने मेरे सलवार का नाडा पैकड लिया… तबी रिदा आप को जैसे शॉक लगा हो…  हरकत चांद पालो के लिए रुक गए...


  वो आंखे फड़े मेरे सलवार मैं बने हुए तंबू को देख रही थे ... जो उसके हाथो के ठीक 1 आधा इंच ही नीचे था ... मैंने गोर किया की, रिदा आप के हाथ बड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ो कर रही थी ... और उसके नजर मेरे सलवार मैं बने  तंबू पर थे...रिदा आप के आंखे चमक गए थे...उनके गोरे गाल लाल सुरख हो गए...मुजे आज भी याद है...की मेरे लुन को सलवार के ऊपर से देख किस कदर तक गरम हो चुकी थे... उन जाने  ठूक एंडर निगला….और फिर से मेरे सलवार मैं बने हुए तंबू को अंखे फटे देखने लगे… फिर मुझे पता नहीं आप ने जान बुज कर यां जाने मैं अपने हाथों से सलवार के मेरे लून को टच किया तो, मैंने जोर से  दार झटका मारा….जो आप के हाथी पर तकराया…मैंने आप के जिस्म को उस वक्त कनपटा हुआ महसूस किया…“आपी जलादी करें….भूत तेज आ रहा है….”  मैंने आप की तरफ देखते हुए कहा तो उन्होन में मैं सर हिला दिया… और मेरी सलवार का नादा खोल दिया… जैसे ही मेरे सलवार का नादा खुला मैंने सलवार के जबरन पकाड़ ली।  और आप की तरफ पीठ करके खड़ा हो गया….


  मैंने कमोड की तरफ फेस कर लिया…मुजे एहसास हुआ की, रिदा आप अभी भी वही खादी है…मैंने थोड़ा सा चेहरा घुमा कर देखा तो, रिदा आप मेरे पीछे एक तरफ मैं खादी तुम… और तिरछी नजरो ही से देखा…  मैंने अपने लुन को बहार निकला… जो उस वक्त फुल हार्ड हो चुका था… मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था… ये सोच कर की आप अभी भी मेरे पीछे खादी है…मुजे अपने लूं के सर टोपी पर हलकी  हो रही थी...ऐसा लग रहा था..जिस जिस्म का सारा खून मजीब लुन के कैप मैं इकथा होता जा रहा हो...मेरे लुन के नशे में एक दम फूली हुई थी...।


  मैं वहा खड़ा पेश करने के लिए कोशिश कर रहा था...पर पेशाब बहार नहीं निकला था..."अब क्या मसाला है..." रिदा आप ने पीछे खड़े कहा..." कुछ कुछ नहीं आप बहैर जाए...मुजे शर्म आ...  "अभी मैंने ये बोला ही था की, बहार दरवाजे की घंटी बाजी..."इस वक्त को आ गया… .." आप ऐसी खीज कर बोली ... जैसे किसी ने उनके हाथ से उनका घर चला गया हो ... आप बाथरूम से बाहर चली गई  ….उन बाहर बहार झंकार कर देखा… नीच सुमेरा चाची थी…वो नीचे चली गई…बड़ी मुश्किल से थोड़ा पेशाब निकला…मैंने सलवार का नाडा बंध और बहार आ गया….मैं उसके बाद रिदा आप के रूम मैं आ गया….थोड़ी  डेर बाद रिदा आप ऊपर ऐ...उन्होने अपने एक बेटे को भगवान मैं उठा और दशरे को मुझे उठा कर नीचे लाने को कहा... मैं उनके दुसरे बड़े को उठा कर उनके साथ नीचे आया...  के साथ उनकी बुआ घर ऐ हुई थी...मैंने उनके जोड़ी चुए...तो चाची ने मेरा तरौफ उनसे करवाए…..


  उस दिन और कुछ खास ना हुआ...मैं थोड़ी देर और वह रुका...शाम के 5 बजे मैं वहां से निकल कर मैदान की तरफ चला गया...वह दोस्तो के साथ क्रिकेट खेला रहा... और फिर फिर शाम को सुमेरा  घर से अपना बैग लिया और घर वापसी आ गया...उस दिन और कोई खास बात नहीं हुई...मैं अपने पुराने दिनों में याद किया मैं खोया हुआ था...  से उठा और टीवी स्विच ऑफ करके बाहर बरमाडे मैं आ गया ... दोफर के 12 बज रहे थे ... और मैं घर पर अकेला था ... घर मैं ऐसे बेथे-2 मुजे बोरियत से होने लगे थे ... तो सोचा क्यों ना अपने दोस्त फैज को  मिल कर औन….


  फैज और मैं दो बचपन से एक ही स्कूल मैं पढे थे... फैज का परिवार हमारे गांव में सबसे ज्यादा अमीर था ... फैज की कफी जमीन जायदा तुम ...  इलावा उन पैसे को खारच करने वाला और कोई ना था … जब फैज दो साल का हुआ था … तब उसके अब्बू के मौत हो गए थे …  ने फैज की अम्मी की दसरी शादी ना होने दी थी... फैज के अम्मी सबा के मयके वालो ना बड़ा जोर लगा था की, सब की दसरी शादी हो जाए...पर फैज के दादा दादी ने ऐसा होने ना दिया... फैज के अब्बू...  दो भाई और तुम.. जो कैफे अरसा पहले अपने उनसे के जमीन बेच कर सहो मैं जकर अपना बस्नीज करने लगे थे...


  अब फ़ैज़ अपने दादा दादी और अम्मी सब के साथ रहता था… फ़ैज़ ने मुझे कुछ दिन पहले कार चलाना सिखाया था… क्यों उसके पास दो-2 कारें तुम्हें… एक दिन मैं और रिदा आप ऐसी ही बातें कर रहे थे की,  फैज के बात चल निकली... उस दिन रिदा आप के मैंने जबर्दस्त तारीके से छुडाई की थी..."जब फैज के घर के बातो को जिकर शुरू हुआ तो, मैंने रिदा आप से ऐसे पूछ लिया...

  

  माई: रिदा एक बात बातें….ये फैज के अम्मी ने दुसरी शादी क्यों नहीं की….


  रिदा: कैसे कर्ता बेचारी…तुम्हे नहीं पता उसके सास ससुर कितने जलीम है….


  माई: कभी -2 तो मुझे आता है ऐसे लोगो पर हम 21 बड़ी मैं जी रहे हैं.. और हमारे ख्याल कितने पिचड़े हुए हैं….


  रिदा: हम्म ये गांव है… पहले ऐसे ही होता था….


  माई: रिदा आप आप तो औरत हो… आप मुझसे बेहतर जनता होगी…..फैज के अम्मी इतने सालो तक कैसे बिना साथ रहे होंगे….


  रिदा: हाहा सीधे जुड़े क्यों नहीं कहते की, उसे अम्मी इतने साल बिना लुन को अपनी फुदी मैं लिए कैसे रही हो गए...


  माई: क्या औरत को मर्द के जरूरत इसे लिए होती है….?


  रिदा: नहीं सिर्फ इस्लिये तो नहीं...पर समीर सेक्स ऐसे चीज है...जो इंसान को गलत सही मैं फरक करने के लिए नाकारा कर देता है...उसकी अम्मी भी कहा रे पाए तुम...।


  माई: मैटलैब मैं कुछ समझ नहीं….


  रिदा: अब ये तो **** ही जाने… की बात सच्ची है यान झूठ….लेकिन गोवा के लोग दबी जुबान में बात करते हैं की, फैज के अम्मी सब का अपने ससुर के साथ चक्कर था…


  माई: था matlab….


  रिदा: (हंसते हुए) हा हाहा तुमने जमील के उमर नहीं देखी अब...70 के ऊपर का हो गया है...आपर से दिन रात शरब के नशे में डूबा रहता है... पहले शायद होगा उनके बीच मैं चक्कर...  कहा अपनी बहू को छोड पता होगा….


  माई: हा कह तो तुम ठीक रही हो….


  ऐसे ही ख्यालों मैं डूबे हुए मैं घर को ताला किया और फैज के घर की तरफ चल पड़ा... जब मैं अपनी गली क्रॉस करके फैज के घर के करीब फुंचा तो, मैंने देखा बिल्लू चाचा फैज के घर के सामने पीपल के बने के  पर बेथा हुआ था ... और फैज के घर की तरफ देख रहा था ... जब मैंने बिल्लू चाचा की नजरो का पीचा किया तो, देखा की सामने छत पर चुब्बरे के पास फैज के अम्मी सबा खादी तुम...उसके बाल खुले हुए थे...  शायद वो नहीं कर बहार ऐ तुम... वो अपने हाथ से बालो को सेट कर रही थी... और नीचे बेथे बिल्लू की तरफ देख रही थी।


  बिल्लू चाचा जो की गरीब गांव में अपनी आशिक मिजाजी के लिए मशहूर था...वो सब को लाइन मार रहा था...और मुजे ये देख कर और भी जयदा हरत हुई की, सब भी इस्तेमाल लाइन दे रही थी...  ….औरत और धन के बिना तो रह शक्ति है….पर लुन के बिना नहीं रही शक्ति…सब जिसे मैं चाची कहता था…वो भी बिल्लू के तराफ देख कर मुस्कुरा रही थी….मैं सीधा बिल्लू के पास चला गया…”  और चाचा जी की हाल है...?  "मैंने बिल्लू के पास खड़े होते हुए पूछा..." ओए समीर तुम इधर कहा... मैं तो ठीक हूं... लेकिन तुम ईद का चांद हो गए हो...।"  मैंने एक बार मिट्टी कर छत पर खादी सबा की तरफ देखा...तो बिल्लू चाचा ने भी मेरे नजरो का पीचा किया...


  और फिर जैसे मैंने बिल्लू चाचा की तरफ देखा तो, वो मेरे तार देख कर मुस्कान लगा..."क्यों चाचा नया शिकार फांस लिया लगा है...।"  बिल्लू मेरे बात सुन कर मुस्कान लगा…” यही समाज ले जाएगी…… साली पर बड़े दिनों से कोशिशें मार रहा हूं… आज जकर स्माइल दे है… बिल्लू ने सलवार के ऊपर से अपने लुंड को मसले हुए हुए कहा…” मैटलैब अभी तक बात  आँखों से हो रही है… क्यों चाचा….”


  बिल्लू: हाहा भतीजे जी….पर लगता है अपना मामला सेट हो गया…. अब किसी तरह एक बार ऐसी फुदी मिल जाए बास… फिर तो खुद वही वही आ जाएगा….जहां पर इसे बुलाऊंगा…


  माई: तुम्हारी तो मोजाये हो गए चाचा…..क्या माल फंसाया है….


  बिल्लू: यार पुच कुछ ना… साली जब चलता है… तो इसकी बंद ऐसे हिलाती है… जैसे तरबूज हिल रहे हो…इसको तो खड़ा करके पीछे से अपना लुंड इस्की बुंद के बीच रागदान का बड़ा मान…  दे बड़ा गोशत चढ हुआ है…


  माई: चाचा माल तुम्हारा है... जैसे चाहो मरजी करना...


  मैंने मिट्टी कर देख तो सबा भी वही खादी तुम... और हम दो को देख रही थी..."और तुम सुनाओ...तुम इधर कहा घूम रहे हो...?"


  माई: चाचा मैं तो फैज से मिलाने आया था….


  बिल्लू : ओए ख्याल राखी... फ़ैज़ को गलत से कुछ बता ना दिन..


  माई: नहीं बताता चाचा…मैंने बता कर किया करना है…और सुनाओ सुमेरा चाची की तो रोज मरते होंगे…..


  बिल्लू: कहा यार… पता नहीं साली को क्या हो गया….दो साल हो गए उसकी फुदी मारे को… दर्दछोड़ अब तो हाथ भी नहीं रखने वाले अपने ऊपर….


  मैंने मान ही मान सोचा चाचा हाथ तुझे सब भी नहीं रखने देंगे... अब इस पर मेरे भी आंख आ गए हैं...  अच्छा चाचा मैं जरा फैज से मिल कर आटा हूं…..


  बिल्लू : अच्छा जा….

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