कांता - सेक्स की देवी Part 8

 




        कांता - सेक्स की देवी  Part 8


जैसे ही कांता को जोबन को स्वामी जी ने अपने मुह में लिया तो कांता की खुमारी और बढ़ गई।  वो स्वामी जी का सर पदक कर अपनी चूचियो पर दाबने लगे।  अब स्वामी जी अपने मोह को खोलकर उसमे कांता के बड़े बड़े संत्रो को लेकर बड़े ही मजे से चूस रहे थे।  क्या समय कांता की मनो स्थिति बड़ी ही अजीब थी।  उसके मुह से एक घिरी हुई से आवाज निकल रही थी।  स्वामी जी दोनो हाथ कांता की कमर फिसाल रहे थे।  दोनो प्रेम में डूबे हुए थे।  स्वामी जी कुछ डर तक उसके चूची को चुने रहे फिर उनो अपना मुह कांता की दोस्री गोलाई से लगा दिया।  स्वामी जी अपने काम में पूरी लगान से जूट हुए थे।  लगभाग 12-15 मिनट तक स्वामी जी कांता के बड़े बड़े गुब्बारों के साथ खेलते रहे।



 स्वामी जी: लाओ बेटी अब मैं तुम्हारी तांगो की मालिक कर देता हूं।  कांता स्वामी जी के भगवान में से उठा गई और वहा बीच हुए गद्दे पर पीठ के बाल ले गए।  स्वामी जी उसके जोड़ी के पंजे की तराफ घुटनो के बाल बैठे गए।  और एक नज़र उनो काँता के जिस्म पर डाली।  स्वामी जी ने डेका की कांता के निप्पल काडे होकर हाल की छत को घुर रहे थे।  उसे छूइयो पर अभी भी स्वामी जी मुह की लार लगी थी।  स्वामी जी ने कांता के पैरो को उठावया और उसके तलवे पर तेल मालते हुए बोले:

 स्वामी जी: तुम्हारे संतरे तो बड़े रसील है।  सैंट्रो के रस में एक अलग ही जादू है।  जितना भी पियो कम ही लगता है।


 कांता ने स्वामी जी की ये बात सुनी तो लेकिन बोली कुछ नहीं।  उसकी आंखें मुंडी हुई थी।  लेकिन आखो में खुमारी भी थी।  ऐसा लग रहा था जियासे वो नशे में हो।  कांता अपनी आंखें बंद किए हुए चुपके लेती रही।  अचानक कांता के बदले हुए एटीट्यूड ने स्वामी जी को विचित्र कर दिया।  उनके मन में काई शंकाओ ने घर कर लिया।  लेकिन स्वामी जी एक समाजदार खिलाड़ी द।  वो जाने द की कांता जिस मोड़ पर कड़ी है वहा से वो जाना नहीं जाना चाहिए।  इसे विचार स्वामी जी को प्रतीक्षा करें और देखें वाला आइडिया दीया।



 स्वामी जी बड़े प्यार से उसके तलवे और पंजे पर तेल लगा रहे थे।  चिकनाई के करन उनका हाथ बड़े आराम से मालिक कर रहे थे।  कुछ डर बाद उन्होन कांता का दूसरा पंजा भी अपने हाथ में लिया और इस्तेमाल बड़े प्यार से मसलने लगे।  उनके मसलने से कांता को गुडगुडी हो रही थी जिस्का असर कांता के चेहरे पर साफ देखा जा सकता था।  कांता के दो तलवो को मालिक करने के बाद बाद स्वामी जे ने काटा के एक जोड़ी को घुटनो की तारफ मोड दिया, इससे उसके घुटनो पर आ रहा पेटीकोट सरक कर उसे जांघो के ऊपर भागे पर चले गए जिस से कांता की पैंटी नजर एक बाद  आने लगी थी।  साथ ही साथ कांता के मंसल जाएंगे भी नजर आने लगी थी।  स्वामी जी ने अपने दो हाथो को तेल से सरोबार किया और कांता के जोड़े को उसके जांघ से लेकर जोड़ी तक मालिक करने लगे।  स्वामी जी हाथ जब काँटा के जांगो पर जाता तो उनके हाथों का दबाव बढ़ जाता था, स्वामी जी की ये हरकत कांता को सिसकने पर मजबूर कर रही थी।  स्वामी जी बड़े ही प्यार से कांता की पोस्ट पैरो को सहला रहे थे।  कांटे के चिकन चिकने जोड़ी किसी के मोटे तने जैसे प्रीत हो रहे थे।  अब स्वामीजी अपने हाथ को कांता के पेटीकोट के अंदर तक लेकर जाने लगे।  जब स्वामी जी का हाथ मलिश करने हुए कांता के पेटीकोट ने जाता से कांता उत्तेजना के मारे दोहरे हो जाती थी।  स्वामी जी के हाथ मालिश करते करते कांता की पैंटी को भी स्पर्श कर रहे।  तबी मालिक करते करते स्वामी जी ने कांता से पक्का।


 स्वामी जी: अगर तुम कहो तो मैं पेटीकोट खोल दू... इस से और अच्छे से तुम्हारी मेल्स हो जाएगी।

 कांता समझ गई थी की स्वामी जी अब कहा कहा मलिश करेंगे।  वो मन ही मन इस बात से रोमांस भी हो रही थी।  स्वामी जी के हाथो का स्पर्श से उसके नीचे वाली गली में आने आने लग गए थे।  वो अपनी नीचे की गली में चिकनाहट को महसूस कर रही थी।  तबी स्वामी जी ने दोबारा आपीन बात दोहराई।  काँटा उनकी बात का जवाब देते हुए बोली:

 कांता: जब ये हवन यहां तक ​​आ गया है तो इसे मैं कैसे रोक सकता हूं स्वामी जी, ऐप हवन में आ रहा हूं हर बाधा को बिना पक्का हटा सकता है।


 कांता की बात सुनकर उन्होन ने अपने हाथ कांता के मंसल और गदराई हुई चिकन कमर के कटाव पर रख दिया और पेटीकोट के नादे में अपनी उनगलियो को उल्जा दिया।  जब स्वामी जी काँटा के नादे को खोल रहे थे तब काँटा आने के बार में सोच सोच कर बड़ी ही रामनचित हो रही थी।  उसके चेहरे पे कामवासना साफ झलक रही थी।  कुछ ही पालो के बाद स्वामी जी ने कांता के पेटीकोट के नादे को खोल दिए।  और नीचे की तरफ सरकाने लगे का उपयोग करें।  लेकिन पेटीकोट के पीछे की हिसा कांता की गांद से डबा हुआ था जिस से स्वामी जी कांता के पेटीकोट को नहीं निकला पाए।  टैब उन्होन कांता से कहा:

 स्वामी जी: क्या बेटी जरा अपने विशाल कुल्हो को उठाओ तकी मैं पेटीकोट को निकला साकू हैं।


 स्वामी जी के बात सुनकर कांता ने लेटे ही अपने गांद को ऊंचा किया जिस से की नीहसे डबा हुआ पेटीकोट आराम से निकल खातिर।  जैसा ही कांता ने अपना गान और उचकाई स्वामी जी ने तुरंत उसके कुल्हो को नीचे से पेटीकोट निकला और उसे दोनो तन्हो से निकलाकर एक तरफ रख दिया।  अब स्वामी जी के समान कांता केवल एक मटर पेंटी मी द।  कांता की पेंटी इंटी टाइट थी की वो उसकी कमर और जाहघो में धस सी गई थी।  पेंटी के आगरा भाग फूल कर आए ऊपर गए थे, जो इस बात के सूचक थे की पेंटी के अंदर की चीज किनती मजबूर और मंसल है।



 स्वामी जी की नज़र जब काँटा के गीली हुई जग पर पड़ी तो स्वामी जी ने उसे छेड़ते हुए कहा:

 स्वामी जी: अरे बेटी तुम्हारी नीच के भाग में तो अभी से आने गए हैं।  लगता है की तुम्हारी नीच की गली अभी से लार तपका रही है।

 कांता ने उनी इस बात का कुछ जवाब नहीं दिया और उसे लेने ही करवा बड़ा ली।  अब स्वामी जी के सामने कांता की भारी भरकम गांद पेंटी के अंदर रहने का असल प्रयास कर रही थी।

 स्वामी जी कांता की इस हरकत से समझ गए की कांता अपने पीछेवाले पर मालिश करना चाहती थी।  स्वामी जी ने अपने हाथो ने तेल लगाया और कांता के दोनो मसाला जांगो पर अपने हाथ से मालिश करने लगे।  कांता की जाएंगे इंति सुडोल और मोती थी की स्वामी जी के हाथ से एक जाग पर धंग से मालिस नहीं हो पार रही थी।  स्वामी जी कांता की भारी भरकम गांद को दक्कर ये सोच रहे थे कि क्या इस्का प्रवेश द्वार भी इसकी गांद के आकार के ही अनूरूप होगा।


 और इस बात की शनाका को दूर करने के लिए स्वामी जी कांता से बोले:

 स्वामी जी: कांता मैं सोच रहा हूं की जब तुम्हारे कुल्हे इतने बड़े हैं तो इस्का प्रवेश द्वार भी बड़ा ही होगा?

 कांता स्वामी जी का मतलब समझ गई की स्वामी जी के कहने का मतलब उसकी गांद की भीत्री चौदै से है की ये भी चौदी हो गई होगी।  क्या प्रश्न पर काँटा चुप नहीं रह साकी और स्वामी जी से बोली:

 कांता: अरे स्वामी जी घर चाहते कितने भी बड़ा क्यों ना हो दरवाजा छोटे ही होते हैं...

 स्वामी जी: हाआआ…… तुम बात तो बिलकुल ठीक कह रही हो।

 और अपने हाथो के नीचे सरकाते हुए कांता के रानो तक हाथ लेकर उसे रानो के मालिक करने लगे।  जैसे ही स्वामी जी का हाथ कांता की रानो को स्पर्श किया तो उसे मेरे उत्तेजना के अपने दांतो से अपने होठो को काट लिया स्वामी जी को भी कांता की उत्तेजना महसूस हो रही थी।  स्वामी जी ने अपने हाथो का दबाव कांता की चिकनी रानो पर बढने लगे।  अपनी रानो पर स्वामी जी के हाथो का स्पर्श की अभी तक कांता के चेहरे पर साफ साफ झलक रही थी।  अब स्वामी जी धीर अपने उन लोगों को कांता के पेंटी में गुहसाने की कोशिश करने लगे।  लेकिन पेंटी ज्यादा टाइट होने के करन स्वामी जी की उनगली अंदर की तरफ नहीं सरक पा रही थी।  तबी स्वामी जी ने अपना हाथ कांता की गांड पर रख दिया और इस्तेमाल पेंटी के ऊपर से ही मसाला लगे।  कांता समाज गई की स्वामी जी अपना हाथ उसकी टाइट पेंटी में नहीं घुसा पा रहे थे।  इसलिये वो समझ गई की मालिक को और आगे बढ़ने के लिए इस्तेमाल करें स्वामी जी को इशारा देना होगा...


 कांता: क्या स्वामी जी आप कहा घुसने का प्रयास कर रहे हैं?

 स्वामी जी: हैं बेटी जब मैंने तुम्हारे सारो अंगो को इस पवित्रा तेल से मलिश कर के पवित्रा कर दिया है तो मैं ये सोच रहा था कि तुम्हारे इस भाग को भी पवित्र कर डू।

 कांता: हा स्वामी जी ये बात तो आप कह रहे हैं अगर कोई भी अंग अपित्र रह गया तो हवा कैसे पूरा हो जाएगा।

 स्वामी जी: हा बेटी यही तो बात है।  तबी तो मैं अपना हाथ और डालने की कोषिश कर रहा था मगर ये पेंटी बहुत तंग है।  अगर तुम ये पेंटी उतर दो तो मैं तुम्हारी है भाग को बी शुद्धा तेल से मलिश कर के पवित्रा कर दूंगा।  तुम तो जनता हो की भगवान शिव को पवित्रता कितनी पसंद है।

 स्वामी जी ने अपनी बातो को घुमाते हुए कहा।

 कांता जो की समझ गई थी की स्वामी जी उसके हम भाग को कैसे पवित्र करेंगे, लेकिन मन ही मन वो खुद भी यही चाहते थे।  इसलिये उसे स्वामी जी की हा में हा मिलाते हुए कहा

 कांता: तो ठीक है स्वामी जी आप मेरी पेंटी उतर कर अच्छी तरह से मालिश कर मेरे इस अंग को पवित्रा कर दे।

 इंता सुनकर स्वामी जी अपने दो हाथो से कांता की कमर में कैसी हुई पेंटी में उनगली दाल दिए और नीचे सरकाने का प्रयास करने लगे।  लेकिन कांता के छोटा बहुत विशाल होने के करन पेंटी कुछ ही इंच सरक पाई।  जब कांता ने ये देखा की स्वामी जी पेंटी नहीं उतर पा रहे हैं तो उसने स्वामी जी को रुकने का इशारा किया और अपने घुमने को आगे की तरफ मोड़ कर अपनी गांद को हवा में उठा दिया, और स्वामी जी से बोली

 कांता: अब मेरी पेंटी को सरकारिए।

 स्वामी जी: (उसके पेंटी को सरकांते हुए) क्या बेटी तुम्हारी गांद इतनी सुंदर है की तुम्हारी पेंटी भी इसे नहीं छोड़ा चाहती है।

 अब स्वामी जी ने थोडी सी कोशिश में ही कांता की पेंटी को निकला दिया।  पेंटी निकलते ही कांता के दोनो बड़े तारबूज स्वामी जी के सामने निवास्त्र हो उठते।  पेंटी खुलने के बाद उसके गांद की चौदाई और बड़ी लगने लगी थी।  उसकी गांद इतनी गुडाज थी की घुटनो के मूड हुए होने के बावजूद कांता का गुडा द्वार नहीं दिख रहा था।  कांता की गांद बिलकुल चिकनी और लाल रंग की नज़र आ रही थी।  स्वामी जी कांता के गांद की सुदुलता देखकर बिलकुल डांग रह गए।  वैसा स्वामी जी क्या कोई भी कांता की नंगा गांद को देखा था उसमे खो ही जाता।  आखिर कांता की ग़ंद थी इतने पुस्ट और सुडौल।


 

 अब स्वामी जी अपने दो हाथो से कांता के विशाल पीछवाड़े को मसाला लगे।  बीच बीच वो कांता के कुल्हो पर थाप बी मार रहे थे जिस्की वजाह से कांता की कुल्हे बड़ी ही मदद के साथ थिरकने लगते थे।  हर थाप पर कांता की गांद की थिरकान देखने में एक अलग ही सुख अनुभव हो रहा था स्वामी जी को।  कांता की गांद पर तेल होने के करने में उनमें चमक आ गई थी।  स्वामी जी उसकी चमकते गंद को अपने दो हाथो में लेकर कभी कभी एक दूसरे से रागद देते और थिरकते हुए कुल्हो को देख रहे थे।  स्वामी जी आपने हाथ में तेल लगाकर कांता की मोती गांद के दर में लगाते और उसके गाने में ऊपर से नीचे की या रागदते।  कांता को स्वामी जी के इस गांद मलिश ने इंता उत्तेजित कर दिया था की उसकी छुट के दो होठ गीले होने लगे थे।  तबी स्वामी जे कांता कांता की गढ़ की दर में हाथ फिरते हुए बोले।


 स्वामी जी: काँटे बेटी गद्दे पर चलो जाऊ... और अपनी तांगो को और चौदी कर लो ताकी मैं तुम्हारी गांद को अंदर तक इस पवित्रा तेल को लगाना चाहता हूं।  कांता तो खुद ही तेल क्या सब कुछ लगवाने के लिए तयार थी।  लेकिन वो चाहती थी की जो भी करे स्वामी जी खुद ही करे।  स्वामी जी की बात सुनकर कांता गद्दे पर चलो कर अपनी तांगे चौदी कर ली जिस से की।  अब स्वामी जी बड़े आराम से उसके मानसल गान की मालिक करने लगे।



 स्वामी जी कभी कभी आप उन्गली को उसकी गुडा द्वार पर भी दबाते हैं।  स्वामी जी जब ऐसा करते थे तो कांता को बड़ा मजा आता था।  इस मजा को उसे और बढ़ाने के लिए अपनी तांगे थोड़े सी और खोल दी।  अब स्वामी जी का हाथ उसकी गांद की दर से लेकर उसकी छुट की होथो तक आराम से पाहुच रहा था।  स्वामी जी बड़े ही मजे से उसकी मंसल गांद और हल्के से छुट की भी मालिश कर रहे थे।  जब कांता स्वामी जी की हाथो की रागदान अपने

 जब कांता स्वामी जी की हाथो की रागदान अपनी मोती गांद की दरर पर महसूस करता हूं तो उसे छोटू में चुनचुनी देखें होने लगती थी।  स्वामी जी बहे बड़े मजे से उसकी गांद को डबा दबा मलिश कर रहे थे।


 अब स्वामी जी अपने हाथो को कांता की कुछ जयदा ही फिराने लगे।  अब वो कांता के मुख्य द्वार को मलिश करना चाहते थे।  कांटे भी उनके हाथों की हरकत से समाज गई की अब उसके छूत की मालिक होने वाली है।  तबी स्वामी जी का स्वर कांता के कानो में पड़ा:

 स्वामी जी: बेटी कांता...... मैंने तुम्हारे पीछे दूर की तो मलिश कर दी है अब तुम पीठ का बल चलो जाओ ताकी तुम्हारे मुख्य द्वार को भी पवित्र कर सकू।  कांता स्वामी जी की बात सुनकर धीरे से करवा बादल ली।  अब उसकी नंगी छुट स्वामी जी के आंखों के सामने थी।  स्वामी जी ने छूत को बड़े ध्यान से देखा।



 कांता की छूत गद्देदार थी।  और उसकी छूत पर एक भी बाल नहीं था।  असीसा लग रहा था जैसे आज कल में ही कांता ने शेव की हो अपनी छुट की।  स्वामी जी समाज गए की कांता पुरी तयारी के साथ हवा करने आई थी।  स्वामी जी ने कांता की जान को थोड़ा सा फेलाना चाहा।  कांता स्वामी जी के हाथो का इसरा समाज गई और प्रयोग अपनी टांगे थोड़ी और खोल दी।  टांगे चौदी करते ही कांता के छूत के होठ भी थोड़े से खुल गए।  कांता की छूत की फाके अंदर से गुलाबी रंग की थी और देखने में किसी बड़े संतरे की फाक की तरह लग रही थी।  स्वामी जी अपनी हथेलियो में तेल लगाकर कांगा की छुट के फाको में हल्के हल्के मलिश करने लगे।  स्वामी जी की हाथियों का स्पर्श अपनी छूत पर पदते ही कांता की सिसकारी निकल गई।  अब स्वामी जी उसके धीरे धीरे अपने हातो का डबाव कांता को छुट पर बड़े ही जा रहे थे।  कांता का उत्तेजना के करन बुरा हाल था।  उसके लिए अपने आप कुछ और खुल गई थी।  अब स्वामी जी काँटा की छुट के भीत्री भाग को भी अपने हाथ से रागदने लगे थे।  जब स्वामी जी अपने तेल में डूबी उनग्लियो को कांता की चिकने छूत पर मालते से कांता की छूत का क्लिटर्स स्वामी जे के उनगलियो से स्पर्श हो जाता और कांता को अपने शरीर में एक करंट का झटका सा होता था।


 स्वामी जी की इस तेल मालिश के करन कांता की चूट फूल कर पाव रोटी बन गई थी।  और उसके छूत ने भी अपना मुह खोल कर बड़ा कर लिया था जिसके करन छू छोडे हो गए इस और में अंदर की मानपेशिया साफ नजर आने लगी थी।  स्वामी जी अपनी उनगलियो से कांता की छूत को चौदी करके उसकी छूत की गहराई को नाप रहे थे स्वामी जी कांता के फूलू हुई चूची को अपने हाथेलियो में भरकर बड़े ही मजे सा मसाला रहे थे।  अब तक कांता की छुट से पानी लेने लग गया था जो है बात का सूचक था की कांता को अपने छुट की मालिश में बहुत मजा आ गया था।  तबी स्वामी जी ने कांता से कहा।

 स्वामी जी: बेटी कांता मैं तुम्हारे आगे पीछे दोनो तराफ मालिश कर के शुद्ध कर दिया है।  लेकिन तुम तो जाती ही हो की ये दोनो जग न जाने कितनी बार, और न जाने किस किस तरह से शुद्ध होती है।  इसलिये अगर तुम कोई ऐतराज ना हो तो मैं इसे और तक तेल लगाकर शुद्ध करना चाहता हूं।  (स्वामी जी की बात सुनकर कांता बोली)

 कांता: स्वामी जी अब हवन को तो पूरा करना ही है।  आप तो मेरे अंदर उंगली दलकर और के भाग में तेल लगागर इसे शुद्ध कर दिजिये।

 स्वामी जी : अरर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईीीडीआडी .... बेटी तुम मेरी बात नहीं समजी।  (फिर कांता को समझौताे हुए बोले) देखो कांता तुम्हारी गांद और छू दोनो ही बड़े विशाल है।  और जिन्की गांद और चूत बड़ी होती है उनकी छूत और गांड की गहराई भी जयदा होती है।  और तुम्हारी गहराई के लिए मेरी अनगली छोटी मिलेगी।  क्या लिए मुझे कुछ और डालकर इन्हें शुद्ध कर ना होगा।  कांता स्वामी जी के कुछ और डालकर का मतलब अच्छी तरह समाज रही थी।  वो समाज गई थी की अब उसके हवन कुंड में स्वामी जी अपना घी जल्द ही डालने वाले हैं


 कांता तो हवन के लिए शारिक और मानसिक रूप से तयार थी ही, बस स्वामी जे के पहले की जरूरत थी।  कांता सोच ही रही थी की स्वामी जी कैसे खेल को आगे बढ़ेंगे।  तबी स्वामी जी ने कांता से कहा:

 स्वामी जी: बेटी कांता लेकिन इस से पहले तुम्हारे भी हमें चीज को शुद्ध करना होगा

 क्योकी वो चीज शुद्ध होगी तबी मेन यूज तुम्हारी गांद और चूट में डालकर उन्हे और तक शुद्ध कर पाउंगा।  इसलिये पहले तुमे यूएस चीज को शुद्ध करना होगा।

 कांता स्वामी जी की बात समझ गई थी मगर फिर भी ना समझने का नाटक करते हुए बोली

 कांता : लाए स्वामी जे पहले मैं उस चीज को शुद्ध कर डू।

 स्वामी जी: बेटी कांता तुम उड़दू होकर घुटनो के बाल बैठ जाऊ और अपनी आंखे बंद कल लो।

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