कांता - सेक्स की देवी Part 7


कांता - सेक्स की देवी  Part 7


 स्वामी जी कांता के इस उत्तर से समझ गए के अब कांता की शर्म दूर हो गई है और अब वो धीरे-धीरे बेशर्मी या बढ़ रही थी।  स्वामी जी तुरंत उठे और एक निगाह लेति हुई कांता की अदनंगी पीठ पर डाली जिसने अपनी आंखें मूंद राखी थी।


 फिर अपनी दो तांगो को कांता के दो तारफ करते हुए कांता की गांड पर जरा सा नीचे होकर बैठे जी देखें की कांता की गांद पर स्वामी जी के बड़ा जमीन दस्तक देने लगा।  अब स्वामी जी ने अपने हाथो में तेल लिया और कांता का दया हाथ मसलन लगे।  कांता को अपनी गांद पे स्वामी जी के जमीन का दस्तक बड़ा ही मजा दे रहा था।  स्वामी जी ने जब हाथ पर मैलिश कर दिया तो उसके बाद काँटा की अधनगी पीठ पर तेल की बूंद गिराने लगे।  तेल गिराने के बाद स्वामी जी ने उसके पीठ पर अपनी दोनो हथेलिया राखी और बड़े ही सेक्सी स्टाइल में मालिक करने लगे।  जब स्वामी जी मालिश करते हुए अपना हाथ आगे पीछे करते तो उनका हाथ कांता के ब्लाउज से बार बार उल्झा जाता।  इस से स्वामी जी के मालिक करने का रिदम टूट जाता था।

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 स्वामी जी : अरे बेटी मलिश करने पर तुम्हारा ब्लाउज मेरे हाथो में उल्टा जा रहा है और मलिश थेक से नहीं हो पा रही है अगर तुम कहो तो...

 तबी कांता स्वामी जी की बात को बीच में से काट कर बोल

 कांता: अरेर्र्र्र्रीईई तोूओउउउउउउ... खूउओल्ललल्लल... दिजिये ना मेरे ब्लाउज़एसएसएसएस को....... और खुल्लल्लल नहीं पा रहा है तो इसे फैद दिजिये मगर मलिश धन से किजिये।

 स्वामी जी कांता के बात सुनकर ये समझ गए की अब धीरे-धीरे आग बढ़ रही है)

 स्वामी जी मंड मंड मस्कुराते हुए कांता के ब्लाउज की डोरी को खोलने लगे।  अब उनका लैंड भी नींद से जाग चुका था और वो भी बहार निकलने के लिए बेटाब हो रहा था।  स्वामी जी का हाथ काँटा के ब्लाउज की डोरी पर रेंग रहे थे।

 स्वामी जी के कुछ ही पालो के प्रयास में कांटे के ब्लाउज की डोरी खुल गई और कांता की मानसल पीठ पूरी तरह निवास्त्र हो गई।  अब स्वामी जी ने और तेल लेकर कांता के शुद्ध पीठ पर लगा और अपने दोनो हाथो से उसके लिए हुए जिस्म पर मालिश करने लगे।  कांता ने ब्लाउज के नीचे कुछ नहीं कहना था इसलिय ब्लाउज खुलने के बाद दोनो साइड से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां झलकने लगी थी।



 स्वामी जी के मालिक से कांता के चेहरे पर एक अजीब सा भाव आ गया था जैसे प्रयोग किसी चीज की सखत जरूरी हो,

 स्वामी जी उसके कांधे से लेकर उसके बगीचे तक पूरा मालिक कर रहे थे।  तबी कांता ने स्वामी जी से कहा

 कांता: क्या स्वामी जी जरा डबा कर मलिश किजिये तबी तो मालिश का मजा आएगा।  ये सुनकर स्वामी जी ने अपने हाथो का दबाव कांता के पीठ पर और बढ़ा दिया और उसके मानसल पीठ को अपने हाथों में भर कर दबाने लगे।  स्वामी जी जब कांता की मालिक करते हुए हुई नीचे से ऊपर की या जाते थे तो उनका लैंड कांता की विशाल गुफा में जाने के लिए बेचेन हो जाता था।  कांता को भी स्वामी जी का जमीन अपनी गढ़ पर महसूस कर के बड़ा ही अच्छा लग रहा था।  कांता ज्यादा से ज्यादा स्वामी जी के जमीन का घर अपने गांद पर चाहती थी।  इसी गराज से उसे अपने दोनो तांगो को और खोल दिया।


 कांता के तांगो को और चौदा करते देख स्वामी जी समझ गए की अब जल्‍द ही कांता के पीछे में प्रवेश करने का प्रवेश कार्ड उन्‍हें मिलने वाला है।  स्वामी जी ने भी अपने दोनो तांगो को साताकार कांता के खुले हुए दोनो तांगो के बीच में कर लिया।  और अपनी कमर को कांता के पिचवाड़े से सात दिया।  अब स्वामी जी कांता के ऊपर चलो चुक द।  उनकी चाय के बाल कांटे के पीठ को स्पर्श कर रहे थे जिन्हे कांता साफ महसूस कर सकती थी।  अब स्वामी जी कांता के दो बगलो को ऊपर से नीच की तारफ और नीचे से ऊपर की तारस सहलाने लगे।  क्या प्रकृति में स्वामी जी का हाथ कांता के स्टैनो से तकरा जाते हैं जिस से स्वामी जी और कांता दोनो को ही मस्ती का एहसास हो रहा था।  स्वामी जी ने बेशरम हो चुकी कांता को और बेशरम बनाने के इराके से उसके कान में फुसफुसा कर कहा।

 स्वामी जी: कांता ............

 कांता जी: (मलीश का आनंद लेते हुए) हा स्वामी जी बोलिए.......

 स्वामी जी: बुरा तो नहीं मानोगी ना

 (ये प्रशन सुंकर कांता को स्वामी जी पर थोडा गुस्सा आ गए और उसे मन ही मन अपने आ से कहा। अबे थरकी तेरे बात का बुरा मानी से अपने तांगे चौदी कर के तेरे लौड़े को अपने गांद पर क्यो टिकवाटी? फिर भी वो अपने चेहरे?  पर मुस्कान लाकर बोली)

 कांता: अब क्या बुरा मान न स्वामी जी, आप खुल कर कहिए जो भी कहा है।

 स्वामी जी: बेटी तुम्हारी गांड के स्पर्श से मेरा जमीन खड़ा हो रहा है।

 अभी तक के दौरा पहले बार स्वामी जी ने खुल कर अशलील शब्द का प्रयोग किया था।  पहले बार स्वामी जी के मोह से गांद और जमीन जैसा शब्द सुनकर कांता को और जोश आ गया और इस्तेमाल ने आप पाएंगे और चौदी कर जिस से की स्वामी जी का जमीन का स्पर्श अपनी गांद की दर में ज्यादा से ज्यादा महसूस कर सके।


 आप सभी पाठक कांता की गांड की चौदै और विशालता का अनुपमा इसी बात से लगा सकता है की स्वामी जी उसकी गांद के ऊपर अपनी गांद ऊंची किया हुआ ले जाते हैं मगर फिर भी उसकी गांद स्वामी जी से पूरी तरह नहीं ढके हुए थे।  बाल्की ऊपर से देखने पर काँटा की गाँड स्वामी जी के गाँड से काफ़ी बड़ी प्रतित हो रही थी।  स्वामी जी को भी कांता की हरकत से और जोस आ गया और वो कांता के बगलो से हाथ हटा कर उसके दो हाथ पर अपने हाथ रखे दिए।  औ अपने कमर का बाल कांता के गुडा द्वार पर बढ़ा दिया और कांटे के कान के पास अपना मुह ले जाकर फुसफुसा कर बोले।

 स्वामी जी: मेरे जोर लगाने से तुम्हारी गांद में दर्द तो नहीं हो रहा है न कांटा?

 कांता ने बेशरमी की हद को पार करते हुए कहा।

 कांता: मेरी गांड को दर्द सहने का काफ़ी अनुभव है आप तो जितने जोर से रगड़ते हैं उतने जोर से।  मेरा गांद के नहीं अपने जमीन के बारे में सोचिए।

 स्वामी जी: लगता है तुम्हारी गांड को काफ़ी अनुभव है वजान झेलने का।

 कांता: वजान झेल कर ही तो ये गांद इतनी चौदी और मोती हुई है स्वामी जी।

 काना की बात सुनकर स्वामी जी समाज गए की कांता के शेयर में काम ज्वाला लग चुकी थी।  अब स्वामी जी ने अपने हाथो को सरकार कर धीरे-धीरे कांता के स्टैन तक ले गए और साइड से ही उसके दो स्टानो को अपने दो हाथो से सहलाने लगे और सोचने लगे की कांता अब क्या करेंगे?  काँटा ने देखा की स्वामी जी केवल साइड से ही उसके चूचियो को सहला रहे हैं तो वो स्वामी जी से बोली

 कांता: स्वामी जी............ जरा मेरे जोबन का भी तो ख्याल किजे।  इनके भी तो मालिश कर दिजिये और इंता कहकर कांता ने स्वामी जी को उठने का इशारा किया।  स्वामी जी के उठते ही कांता उठा कर बैठे और अपने हिस्सेदार से अपने खुले हुए ब्लाउज को अलग करने लगे।  कपड़े उतारते हुए वो जिस तरह से मुस्कान रही थी उसे देखकर स्वामी जी समझ गई की कांता आज बेशरमी की हद को पार कर एक नया रिकॉर्ड बनने वाली है।  जैसे ही काँटे ने अपना ब्लाउज अलग किया उसमे क़ैद दोनो बडे संत्रे अपना चूचक रूपी सर उठाकर खुले हवा का आनंद लेने लगे।  सामी जी कांता के बड़े बड़े सफेद रंग की मुलायम चूचियो को बड़े गौर से देखा।



 काँता की चूचियो के निप्पल 1 इंच से भी बड़े भूरे रेंज के थे।  इतने बड़े छोची और चूचक उन पहले कभी नहीं देखे थे। स्वामी जी को अपनी नंगी चूहचियो को घुरते हुए देख कांता ने बड़ी ही बेशरमी से कहा:

 कांता: क्या सोच रहे हैं स्वामी जी?

 स्वामी जी: लगता है तुम्हारी छुइचियो को भी काफ़ी अनुभव है दबने का।

 कांता : तो आपको किसने रोका है आप भी खुल कर दबये इनहे।


 काँता की बात सुनकर स्वामी जी अपने हाथ में तेल लगाते हुए काँता के पीछे से ही अपना हाथ बढ़ाकर उसके विशाल जोबन पर रख दिया।  कांता भी चिहुक कर अपनी गांद को स्वामी जी के जमीन पर रागद दिया।  अब स्वामी जी अपने दो हाथो से कांता के दो जोबन को मसाला रहे।



 तबी कांता ने मदभरी आवाज में कहा:

 कांता: स्वामीजी... जरा ठीक से पकाड़ का जोर से दबाईं ना इनको, ये प्यार से सहलाने वाली नहीं जोर से दबने वाली चीज है स्वामी जी।

 कांता की बात सुनकेर एक बार तो स्वामी जी भी हटप्रभा रह गए।  लेकिन आगे ही पल अपने आपको सम्भालते हुए अपने दो हाथो में और तेल लगाकर कांता के चूचियो को जोर से मसाला लगे।  स्वामी जी ने काँटा की चूचियो को इतनी तेज़ रागदने लगे की काँटा के मोह से सिसकारी निकले लगे।  कांता पर अब हवा हैवी हो चुका था।  वो अपने इस खेल को और उत्तेजक बनाना के इरादे से बोली।

 कांता: स्वामी जी …………… आपको संतरे चुनने का शौक है ना… जरा मेरे भी संतरो का रस पी कर देखिये और बताता की इस्का रस कैसा है?  ये कहकर स्वामी जी को बैठने का इशारा किया।


 जब स्वामी जी गद्दे पर बैठे गए।  आब कांता अपने दोनो तांगो को चुड़े करते हुए अपने पेटीकोट की इतना ऊपर उठाया की इसकी लाल रंग की पेंटी भी नजर आने लगी।  फिर कांता अपने जोबन को स्वामी जी के सामने करते हुए उनके जमीन पर अपनी चौदी गांद टीका कर उनके भगवान में बैठे और बोले

 कांता: लिजिये स्वामी जी, मैं अपने दोदो संतरे मैं आपको अर्पित करता हूं।  आप इन्हे चूस इस्का रासपन करे और इसे पवित्र करे।

 स्वामी जी : आज मैं तुम्हें है जोबन का सारा रस पी लूंगा कांता...

 ये कहकर स्वामी जी ने कांता के बड़े चूचक को अपने मोह में ले लिया और इस्तेमाल करने लगे।

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