कांता - सेक्स की देवी Part 6
अब स्वामी जी अस गादे रुपया कंबल पर पेट के बाल गए, अब कांता स्वामी जी के पास बैठे कर उनके पीठ पर तेल डाला और फिर अपने नर्म हाथो से हल्के हल्के मालिश करने लगी। धीरे धीरे कांता की झिझक दूर होती जा रही थी। अब वो अपने हाथो को पूरी तल्लीनता के साथ स्वामी जी के चौदे पीठ पर घुमा रही थी। और स्वामी जी का बलिश्त शेयरर को निहार रही थी। तब्बी स्वामी जी ने कांता से कहा:
स्वामी जी: तुम मेरे ऊपर आ जाओ और जरा सा दम लगा कर मालिश करो। केवल ऊपर से ही मत सेहलाओ।
स्वाजी जी की बात सुकर कांता स्वामी जी के पैरो के ऊपर अपने दोदो तांगे चौदी कर के बैठे गए, जिस उसके विशाल गांद का स्पर्श स्वामी जी अपने पैरो पर महसूस कर रहे थे। कांटे उनके कांधे तक मालिश करने के लिए आगे को ओर झुकी तो उस्का अदनंगे अनार स्वामी जी के पीठ से बस कुछ ही दूर रहते थे।
अब कांता ने अपने हाथो का डबाव बढ़ा दिया। अब उसके हाथ स्वामी जी के कमर से स्वामी जी के वशाल कांधो तक चल रहे थे। कांता रे रेक कर स्वामी जी के विशाल कुल्हो को भी निहार रही थी। स्वामी जी भी बड़े आनंद विभोर हो रहे थे। लगभाग 4-5 मिनट तक मसाज करने के बाद स्वामी जी ने कांका को अपने पैरो पर मसाज करने को कहा। कांता अब कांता जिसे ही स्वामी जी के तांगो से बढ़ने लगे। स्वामी जी ने हम से कहा:
स्वामी जी : अरे बेटी उतरने की क्या जरूरी है। तुम मेरी कमर पर मेरी तांगो की तराफ अपना मुह कर के बैठ जाऊ इस से अच्छी तरह मालिश हो जाएगी।
ये सुनकर कांता उनकी तांगो मार से ही अपने मुह को उनकी जोड़ी की तरफ करके उनकी कमर पर बैठ गई तो स्वामी जी ने उससे कहा।
स्वामी जी: बेटी... जरा सा और नीच होकर बैठा जाऊ (उनका इशारा अपनी गंद की ओर था)
स्वामी जी की बात मन कांता ने अपने विशाल और मोटे कुल्हे स्वामी जी के कुल्हो पर टीका दिया। देखने में तो स्वामी जी के कुल्हे बड़े दिखते हैं मगर अब जब दोनो के कुले एक दुसरसे से भिड़े थे तक कांता की कुल्हे बाजी मार गए। दोनो के विशाल कुल्हे के दसरे में दबे हुए थे।
अब कांता ने तेल लेकर स्वामी जी की जोड़ी के तलवे को हाथ में लेकर बड़े प्यार से उसे मालिक करने लगी। तलवे पर उनगिलियो की छुवन स्वामी जी के अंदर एक हलकी सी गुडगुड़ी पाया कर रही थी। कांता उनके पैरो के तलवान तक पाहुचाने के लिए उनकी बालिश्त तांगो पर अदलेती हुई सी मुद्रा में थी। कुछ डर तक तलवे का मालिश करने के बाद कांटे ने हाथो में थोड़ा तेल लेकर घुटनो के नीचे से तख्तो तक अपने मुलायम और नारम हाथो से मालिश करने लगे। कांता को मसाज करने के लिए आगे पीछे होना पदता था इसी करन कांता की गांद स्वामी जी की गांद से रागद खा रही थी। स्वामी जी ने कांता को और उत्तेजित करने की गराज से हम से कहा:
स्वामी जी: बेटीइइइइइ......... आगर बुरा ना मानो तो एक बात कहू?
अब काँटा के लिए बुरा माने का कोई स्वाल ही कह रहा था।
कांता: हुउउउउउ स्वामी जी कहिये...
स्वामी जी: बेटी सच कह रहा हो। तुम्हारे कुल्हे बहुत ही विशाल है। मैं सच कह रहा हूं मैंने आज तक इंते मोटे और चौदे कुल्हे नहीं देखे।
कांता: एक कहावत तो आपके सुनी होगी स्वामी जी।
स्वामी जी: कौन सी कहावत बेटीiiiiii...?
कांता: याही की वो भैस (भैंस) हाय क्या झिझके थान (बूब्स) बड़े न हो, और वो औरत ही क्या जिसके कुल्हे चूड़े ना हो।
स्वामी जी: वाह बेटी वाह... क्या बात कहीं है। लेकिन एक बात कहू?
कांता: हा बोलिए स्वामी जी।
स्वामी जी: तुम्हारे तो कुल्हे और थान दोनो ही बड़े हैं। क्यो सही कहा ना मैंने।
वैसा स्वामी जी की ये बात बिलकुल सही थे, उसकी छूहियो का आकार भी सामान्य से जायदा ही था।
स्वामी जी के उतर से कांता स्वामी जी को कुछ बोल ही नहीं पाई। अब तक कांता स्वामी जी के पांव के नीचले हिसे का मालिश कर चुकी थी। इस्लिये अब अपने अपने भारी भरकम कुल्हो को स्वामी जी के कुल्हो पर से उठा लिया। और उनके घुटने के पास बैठा और उनकी धोती को उनके जांघो तक हटा दिया। और अपने दोनो हाथो को तेल से भीगोकर स्वामी जी के गुड़िया जोड़े की मालिश करने लगी। स्वामी जी के पैरो पर बहुत बाल। उन बालो की छूवां कांता को बहुत ही मस्त लग रही थी। उसके हाथों का नारम स्पर्श स्वामी जी को एक नए सुख की अनुभूति दे रहा था। स्वामी जी ने देखा की कांता उनकी जांघ से ऊपर की तरफ नहीं बढ़ रही है तो कांता से बोले:
स्वामी जी: बेटी... अपनी सारी झिझक को त्याग दो। बेटी तुम मेरी सेवा नहीं बाल्की भगवानी की सेवा कर रही हो। और भगवान की सेवा में कैसी शर्म। अपनी झिझक को अपने पर हवी ना होने दो, और मेरे जांघो के ऊपर उसके भी मालिक करो।
कांता स्वामी जी के इस कथा को सुनकर दो पल के लिए थार गई। फिर कांता ने सोचा की आगर वो आगे नहीं बढ़ेगी तो उस्का ये हवन भी बढ़े नहीं बढ़ेका ये सोच कर उसके हाथ एक बार फिर स्वामी जी की धोती को पर की ओर उठाएंगे। जब स्वामी जी की धोती कांता जांघो से ऊपर करने की कोशी कर रही थी तबी स्वामी जी का स्वर उसके कानो पे पड़ा।
स्वामी जी: बेटी... धोती से थोड़ी उलझन हो रही होगी। इस्लिये माई खोल देता हूं।
और ये कहकर स्वामी जी उठ खड़े हुए और कांता की तरफ अपनी गांद कर के उन्होनें धोती खोलकर एक तरफ रख दी। धोती के खुलते स्वामी जी का विशाल पिछवाड़ा कांता के सामने उजागर हो गया। स्वामी जी ने एक लंगोट बड़ी हुई थी।
स्वामी जी ने लाल रंग के लंगोट मानने वाली थी। जिसमे उनके विशाल कुल्हे बड़ी मुश्किल से आधे ढके हुए थे। उनके अंदर की जांघों में काफ़ी मातृ में बालू उगे हुए थे। उनकी जांघे काफ़ी हस्ट पोस्ट थी। उनकी जाएंगे ऐसे लग रही यह जैसे कोई लकड़ी त मोटा तना हो। स्वामी जी अपनी धोती खोलने के बाद बिना कुछ कहे फिर उसी मुद्रा में जाने जिस मुद्रा में वो पहले ले गए थे। कांता भी चुपचाप बैठा कर उनके जांघो के ऊपर तेल गिराकर अपने सुंदर हाथो से उनकी मोती जांगो पा मालिश करने लगी। कांता के हाथ स्वामी जी के अधनंगे गांद पर फिरने लगे। अब स्वामी जी का कंट्रोल अपने ऊपर से हटे लगा था। नीच दबा हुआ उनका लिंग अब बगवत करने पर उतर रहा था। कांता के हाथ जब स्वामी जी के आंत्रिक जाहघो में जाता था तो स्वामी जी के साथ साथ कांता भी सिहार उठाती थी वो दो हाथो से स्वामी जी के मोटे कुल्हो को सहला रही थी। अब काँटा के नीचे भाग में भी कुछ हरकत सी होने लगी थी। अब उसकी योनि द्वार भी थोड़ी छोटी मधोश होने लगी थी। कांता और स्वामी जी के मस्ती का आलम अभी बहुत ही जा रहा था। अब कांता मस्त होकर अपने होथो को अपने दांतो से काटने लगी थी। अब कांता पुरी तार से स्वामीजी जी के साथ हवा करना चाहती थी।
लेकिन स्वामी जी पहले कांता की शारी झिझक, और शर्म को दूर करना चाहते थे। क्योकी वो जाते द जब कांता खुल कर साथ देगी तबी है हवन का असली मजा आएगा।
स्वामी जी: बेटी काँटा... अब तांगो की तो मालिश हो चुकी है। अब तुम ऐसा करो मेरे पेट और देखे पर ही तेल लगा दो। तुम मेरे कमर के ऊपर बैठा जाओ इस स्थिति में तुम तेल अच्छी तरह से लगा सकोगी।
कांता समाज गई के स्वामी जी के कमर पर बैठने का मतलब है की उनके जमीन पे बैठना। कांता थोडी सी झिझकती हुई अपने तांगो के स्वामी जी की कमर के दोनो तराफ फैलाया और स्वामी जी के केले की जग से थोड़ा नीचे की ओर बैठी। लेकिन कांता पेटीकोट पहचानने हुई थी इसलिया उसके घुटने थेक से नहीं मिट्टी पा रहे थे जिसके करन वो ठीक स्थिति में नहीं बैठ पा रही थी। ये देख स्वामी जी ने कहा।
स्वामी जी: अरे बेटी... तुम अपने पेटीकोट को घुटनो से ऊपर तक सरकार के थोड़ा सा ऊपर होकर बैठा जाऊ।
कांता स्वामी जे के थोड़ा ऊपर होने के कारण समझ रही
थी। स्वामी जी का इशारा भूमि पर बैठने से था। कांता ने स्वामीजी के
बात को समजते हुए खड़े होकर अपने पेटीकोट को अपने घुटनो से ऊपर तक उठा दिया। नेहसे लेटे होने के करन स्वामी जी को उसकी जांघ का आंतरिक हिसा भी नजर आ रहा था। कांता की जाएंगे काफ़ी..
स्वामी जी कांता के बड़े बड़े संतरे बड़े गौर से देख रहे थे। उसके बड़े बड़े जोबन देख कर स्वामी जी का नियंत्रण अपने आप पर से खो रहा था। उसके कासे हुए ब्लाउज में कांता की चूचिया किसी का भी लैंड खड़ा करने के लिए काफी थी। स्वामी जी उसके दो आनारो को देखते हुए कांता की शर्म को दूर करने के गराज से अपनी बात में कुछ और खुला पान लाए हुए बोले।
स्वामी जी: बेटी कांटा तुम्हारे संतरे तो बहुत बड़े बड़े और मस्त है। ऐसे संतरे के रस पीने वाले की तो जिंदगी सवार जाती होगी।
कांता स्वामी जी की बात सुनकर जरा जेप देखें गई। स्वामी जी कांता को बिलकुल बेशरम बनाना चाहते थे इस्लिये उन्होन फिर कहा
स्वामी जी: कांता तुमने कभी घोडे की स्वारी की है।
कांता स्वामी जी के इस स्वाल को समझ नहीं पाई। और उसे एक प्रशन भारी निगाहो से स्वामी जी की या देखा।
स्वामी जी उसके आंखों के भावो को संवाद बोले:
स्वमज जी: अभी तुम मेरे गोधे की ही तो स्वारी कर रहे हो।
कांता अब स्वामी जी का मतलब समाज गई की वो घोड़ा किस के रहे है। अब कांता भी धीरे धीरे स्वामी जी के रंग में रंगने लगी थी।
कांता: क्या स्वामी जी मैंने तो काई (कई) घोड़ो की स्वर की है।
स्वामी जी: कांता बेटी को... कभी मेरे भी घोडे पर स्वरे कर के देहो। मजा आ जाएगा।
कांता उनकी बात सुनकर मन ही मन अपने आप से बोली तेरे घोड़े पर क्या तेरे लाउडे पर भी स्वरंगी। लेकिन अपने मनोभावों को दबती हुई बोली।
कांता: अरे स्वामी जे आपका घोड़ा बड़ा जरूर है मगर अब बुद्धा हो चुका है। अगर मैं आपके घोड़े पर बैठा गया तो आपके घोड़ा तो ठक कर मुह से झगड़ देगा।
स्वामी जी: क्या बेटी कांता मौका दे कर तो देखो ये बुद्धा घोड़ा भी तुम्हारे अच्छे स्वस्थ करवाएगा।
कांता : मुझे तो उसे घोडे पर बैठने में मजा आता है जो लंबी दूर तक मुझे अपने ऊपर बैठा सके। ऐसा नहीं की मुझे आधे रास्ते में ही नीचे उतर दे।
(अब कांता का हाथ अपने आप ही स्वामी जी के मर्दाने चूचक पर चला गया था और वो अपने दोनो हाथों से उन दोनो चुचको को मसाला रही थी। कांता के इस हरकत से स्वामी जी का जमीन में कड़कपन आने लगा था, जो की कांता अपने गंद पर साफ महसूस कर रही थी स्वामी जी कांता के बात सुनकर बोले)
स्वामी जी: अरे बेटी... मेरे घोड़ा तो ऐसा है की उसपर बैठने वाले स्वरे ठक जाते हैं मगर मेरा घोड़ा नहीं थकता।
कांता अब खुल कर स्वामी जी से डबल मीनिंग में बात कर रही थी।
कांता: अच्छा....... ऐसी बात है क्या? कभी आपके गोधे पर किसी ने स्वरी की है या ये महज आपका अंदाज है। (कांटा ने बड़ी बेबकी से स्वामी जी से मुस्कान कर पुचा)
स्वामी जी: अरे कांता बेटी...... तुम्हारे जैसे न जाने कितनी औरतो को मेरा घोड़ा स्वरी कारा कर थाका चूका है...
कांता: वो औरते मेरे जैसे होंगे लेकिन मेरी बात और है। मैंने तो अच्छे अच्छे घोड़ो को गढ़ा बना दिया है।
स्वामी जी : अच्छे……… तो अपने आप पर बहुत गमंद है।
कांता: अरे स्वामी जी...... मुझे घमण्ड नहीं है बाल्की अपने आप पर याकीन है।
स्वामी जी: अरे बेटा जब तुम मेरे घोडे पर बैठोगे तब तुम्हारे मेरे घोडे की तकत का अंदाज लगेगा।
कांता: क्या स्वामी जी मैं तो आपके घोडे पर ही बैठी हूं मगर आपका घोड़ा तो अभी भी सो रहा है, ये स्वरे क्या मुझे खाक करवाएगा।
स्वामी जी: अभी मैंने अपने घोड़े के लगाम खिच राखी है इस्लीये ये खड़ा नहीं हो रहा है।
दोनो डबल अर्थ बातो का पोरा माजा ले रहे थे। कांता के हाथ अब स्वामी जी चाते से लेकर उनके मोटे पेट पर बड़ी ही सहजता से चल रहे थे। कुछ देर बाद स्वामी जी ने कांता से कहा।
स्वामी जी: बेटी अब रहने दो... मलिश हो गई है। अब मैं तुम्हारी मालिश करुंगा।
कांता भी अपने जिस्म पर स्वामी जी के हाथो के स्पर्श को महसूस करने की लिए बेटाब थी। स्वामी जी उठ कर खड़े हो गए और कांता को आने का इशारा किया। कांता उसे गादे पर पेट के बाल गई।
स्वामीजी ने देखा की कांता अपने जोड़ी को थोड़ा चूड़ा कर के लेटी हुई थी जिस से उसकी गांद की दर पेटीकोट के ऊपर से साफ झलक रही थी। कांता के कुल्हे ऐसे लग रहे थे जैसे दो बड़ी हांडी एक साथ राखी हुई हो। स्वामी जी कांता के बाई साइड बैठे और उसके लिए मुलायम बा को अपने हाथ में लेकर सहलाने लगे। फिर उन्होन कांता के हाथो पर तेल लगा और फिर उससे हाथ को बड़े ही प्यार से मसलने लगे।
स्वामीजी धीरे-धीरे अपने हाथ मलिश करते हुए कांता के गुडाज बागलो तक ले जाते और फिर वहा से धीरे-धीरे मालिश करते हुए हुए कांते की हाथी तक ले जाते। तेल की चिकनाहट से कांता की बाह और भी चिकने हो गई थी। जिसपर स्वामी जी का हाथ बड़े आराम से वित्तीय रहा था। कांता को अपने नंगे हाथो पर स्वामी जी के नांगे हाथो का स्पर्श बड़ा ही रोमांचित कर रहा था। लगभाग 4-5 मिनट तक उसके हाथों को मालिक करने के बाद स्वामी जी उसके लिए हाथ को छोड दिया। और अपने हाथो में तेल लगा कर स्वामी जी उसके दिए हाथ की तरफ अपने हाथ बढ़ा दिया। छुकी स्वामी जी कांता के बाई तारफ बैठे थे इसलिये उन्हे कांता के आए हाथ पर मालिश करने में थोड़ी दीकत हो रही थी। तो स्वामी जी ने अपनी दाई तांग को हल्के से कांता के बाई जाग पर रख दिया और कांता की बाह को मालिक करने लगे। कांता समाज गई की स्वामी जी को बैठने में थोड़ी आशाजता महसूस हो रही है तो वो स्वामी जी से बोली:
कांता: स्वामी जी आप मेरे ऊपर बैठ जाए इस से मालिक करने में परशानी नहीं होगी। (अब तक कांता की साड़ी शर्म दूर हो चुकी थी। स्वामी जी उसकी बात सुनकर बोले)
स्वामी जी: अरे नहीं बेटी रह ने दो....... आगर मैं तुम्हारी तांगो के ऊपर बैठा गया तो तुम तुम्हारी तांगे टूट ही जाएंगे। इतने भी मजबूर नहीं है तुम्हारी तांगे।
(ये सुनकर कांता ने अपनी बेशरमी की हद की शुरुआत करते हुए कहा।)
कांता: क्या स्वामी जी मेरे कुल्हे तो बड़े और मजबूर हैं ना। आप इनपर तो बैठ ही सकेे हो।
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