कांता - सेक्स की देवी Part 5

 


      कांता - सेक्स की देवी Part 5



कांता ने हमी में सर हिलाते हुए अंगोछा उठा लिया और स्वामी जी के शरीर को अपने कोमल हाथो से पोछने लगी।  स्वामी जी की पीठ पोछते हुए कांता ने एक नज़र विशाल पिछवाड़े पर डाली जिसपर धोती गीली होने की वजह से छिपी हुई थी।  कांता ने जब उनकी विशाल गान का जायजा लिया तो पाया की वैसा तो उनके कुल्हे बहुत बडे द मगर काफ़ी पुस्ट द कुलके के दोनो तराफ बहाए के साइड कुल्हे और की तरह कुछ ढसे हुए थे।  (ऐसे कुल्हे वाले लोग जब चुदाई करते हैं तो काफ़ी जोर लगाते हैं, ये एक वास्तु सत्य है) फिर कांता ने उनके कांधे पोछे।  उनके मंसल और मजबूती को देख कांता का दिल उन पर रीझ गया।  अब कांता स्वामी जी के ठीक उसी खादी होकर उनके देखने को पोछ रही थी।  स्वामी जी के देखने पर बहुत घने बाल थे जो की कांता के उनगलियो से तकरा रहे थे।  जब कांता ने स्वामी जी के मर्दाने चाटे पर हाथ फिराया तो स्वामी जी का अपने पे संयम रखना मुशिल हो गया।  लेकिन स्वामी जी भी पाहुचे हुए खिलाड़ी द उनोने अपने अंदर के रोमाच को चेहरे पर नहीं आने दिया।  अब कांता स्वामी जी का बदन पोच्छ चुकी थी।


 अब स्वामी जी ने कांता को उसके स्थान पर खड़े होने की लिया कहा और स्वामीजी उसके ऊपर जल का छिडकाव करने लगे।  जब वो कांता के पीछे जल छिडक रहे थे तब उहोने एक बार फिर उनो कांता के विशाल गांद पर नजर डाली और हल्के से मुस्कान दिए।  उनोने पानी की अंजुली भरकर पहले कांता के पीठ पर पानी डाला उसके बाद दसरी अंजुली भरकर उनोहोने ने कांता की विशाल चुततो के दरर पर फेक दिया।  इस्के बाद उन्होन एक बार और जान बुझ कर एक अंजुली पानी और उसी जग दोबारा फेक दिया, जिस से कांता को पूरा पिचवाड़ा गिला हो गया और उसका पेटीकोट उसके दोनो निंबंतो पर चिपक गया और उसकी गांद का क्रैक लगा लगा।

 स्वामी जी का मन हुआ की वो उसकी मस्त गांद को सहलाये।  मगर उनोने अपनी भावनाओ पर कबू रखा।  काँटा भी त्रिची नज़र से देख रही थी की स्वामी जी उसके विशाल हांडी को देख रहे थे।  कांता भी स्वामी जी की इस शरत से बहुत खुश थी।



 अब स्वामी जी कांता के आ गए।  और उने अपने अंजुली में पानी भरकर उसके देखे पर चिड़का।  पानी उसके दोनो बड़े सतनो के बीच में से हल्की बुंदे छोडता हुआ नीचे की या बह निकला।  आप उसके दोनो अधखुले स्तनो पर पानी की बुंदे किसी सबनाम की तरह प्रतित हो रही थी।  स्वामी जी ने दोबारा अंजुली भरकर उसी जग पानी के चीते मार दिए।  और कांता का अधखुला ब्लाउज लगभाग पूरा गीला हो चुका था, और उसका ब्लाउज उसके बदन से बिलकुल चिपक गया था।  स्वामी जी की लंबी कांता से लगभाग 6"7" लंबी थी जिस के करन स्वामी जी को कांता की मोती मोती चुछिया उसके खुले हुए गले और गहरे ब्लाउज से लगभाग स्पास्ट नजर आ रही थी।  कांता का मंगल सूत्र उसके दोनो चूचियो की घाटी में लटका हुआ था जो उसके स्तान को और मदद बना रहा था।



 स्वामी जी ने जी भरकर कांता के मदमस्त जोबन का दीदार किया।  उसके बाद स्वामी जी ने कांता के नाभि में एक अंजुली पानी लेकर फेका।  एक छ्ह्हाअप्पप्पप्प की आवाज के साथ पाने कांता के पेट से तकया और उसका पूरा पेट गिला गो गया।  अब स्वामी जी ने अपने हाथ में वही रखा हुआ अपना अंगोचा (तौलिया टाइप कपड़ा) लिया और फिर कांता के आए हाथ को हमसे पूछेंगे।  उस्का हाथ पोछते हुए कांता के पीछे आ गए और उन्होन कांता की पीठ पर अंगोचा है तराफ रखा की उनकी हाथी कांट की अधखुली पीठ को भी टच कर खातिर।  और फिर वो अंगोछे से पीठ पोछने के साथ साथ ही हलके अपने हाथों से स्पर्श भी करने लगे।  उनके हाथो को स्पर्श कांता को बड़ा ही मीठा एहसास दिला रहा था।  स्वामी जी लगभाग 2 मिनट तक काँटा की अधखुली पीठ को अपने हाथो से स्पर्श करते रहे।  फिर उन्होन एक नज़र काँटा की भीगी हुई गंद पे डाली।


 और कांटे से बोले:

 स्वामी जी: माफ़ करना कर्ण बेटी मैंने तो तुम्हारा पिछवाड़ा पुरा ही भीगा दिया... लेकिन तुम घबराओ मत बेटी मैं अभी इसे पोछकर सुका देता हूं।

 ये कहकर स्वामी जी ने अपने दो हाथेलियो पर अपना अंगोछा रखा और कांता की दोनो मोटे मोटे कुल्हो पर रख दिया का उपयोग करें।  कांता अपनी गांद पर स्वामी जी के हाथो का स्पर्श पाकर चिहुक उठी।  ये बात स्वामी जी को भी महसूस हो गई।


 स्वामी जी बात ना बड़े हैं गराज से बोले:

 स्वामी जी: बेटी अगर तुम कोई आपट्टी हो तो मैं तुम्हें छू नहीं करुंगा (स्वामी जी ये जाने द की कांता के बस में ना करना नहीं था)

 कांता : नहीं स्वामी जी ऐसी कोई बात नहीं है ......... दरसाल आपके हाथ का स्पर्श मेरे हमारे जग होने पर मैं थोड़े सहज हू गई... लेकिन अब ठीक हूं आप अपना काम जारी रखिए।

 स्वामी जी के चेहरे पर के कुटिल मुस्कान खेल गई।  अब उन अपने दो हाथियों को कांता के विशाल चुटाडो पर फिराने लगे।  कांता भी बड़े ही मजे से अपनी गांद को स्वामी जी से डबवा रही यह।  स्वामी जी ने काँटा के कुछ और करीब हो गए, और काँटा के कान में फुसफुसाए:

 स्वामी जी: बेटी काँटा आ... आगर बुरा ना मानो तो एक बात कहू?

 कांता: (थोड़ी नशीली आवाज़ में) हा स्वामी जी बोलिए।

 स्वामी जी: बेटी तुम्हारे कुल्हे तो बहुत विशाल है।  विशाल कुल्हे मर्दो को आकर्षित करते हैं।  तुम्हारे कुल्हे सचमुच बड़े ही मोहक है।  इन पर कोई भी फिदा हो सकता है।



 ये सुनकर कांता थोडी से जेप गई मगर उसे कोई उत्तर नहीं दिया।  अब स्वामी जी ने कांता की गांद पर से अपना हाथ हटा और अपने दोनो हाथो को कांता के सपात पेट पर रख दिया और उसके पेट पर लगे पानी को बुंदो को पोछने लगे।  कुछ डेर कांता के पेट पर हाथ फिराने के बाद स्वामी अपना हाथ ऊपर की या सरकाने लगे।  क्या क्रिया में उनका हाथ कांता के स्टानो से तकरा गया, स्वामी जी ने हल्के हाथो से उसके स्टानो का जाए और कपड़े से उसके दो स्टानो के बीच के उनसे को पोछने लगे।  एक उना दोनो हाथ काँटा की चुचियो के गिर्द था, स्वामी जी उस्का शारिर सुखाने की बजाय अपना हाथ सेक रही।  कांता भी इसी बहाने स्वामी जी के हाथो का स्पर्श का पूरा मजा लूट रही थी।  लगभाग 3-4 मिनट तक काँटा के दोनो चूचियो के सहलाने के बाद स्वामी जी ने काँटा को अपनी बाजू में से आज़ाद कर दिया।  अब स्वामी जी ने कांता को अपने स्थान पर बैठने को कहा।  कांता अपने स्थान पर बैठ गई।  स्वामी जी भी अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे।   स्वामी जी कांता की ओर देखकर बोले:

 स्वामी जी: बेटी कांता... भगवान शिव बड़े ही रसिया है।  उन्को सुंदर और स्वच्छता देह की नारी बहुत पसंद है।  तुम तो जनता हो भगवान कभी भी पूजा में स्वयं नहीं आते हैं, अगर तुम भगवान को कुछ देना है तो तुम किसी ब्राह्मण को देते हो।  और उसके द्वारा दिया हुआ आशीर्वाद तुम भगवान का आशीर्वाद समाज कर ले लेटी हो... क्यो ऐसा ही होता है ना।

 कांता: (सहमती से सर हिलाते हुए) जी महाराज आप सही कह रहे हैं।

 स्वामी जी: तो अब इस बाद को समझ लो की तुम जो भी मेरे साथ कर रही हो ये सब मैं तुमसे नहीं करवा रहा हूं।  आप तो सब भगवान करवा रहे हैं।  हम लोग तो केवल उनके लिए पर चलने वाले एक TUCHCHHHH मानव होते हैं।  इसलिये तुम अपने मन से किसी भी प्रसार की शंका हो तो निकला दो का इस्तेमाल करें।  और शुद्ध तन मन से भवन की सेवा करो।  भगवान तुमसे अवसर प्रसन्न होंगे।


 (अब कांता समाज गई थी की स्वामी जी ने अपना इरादा और आगे बढ़ने का बना लिया है। कांता मन ही मन स्वामी जी के दिमाग की दाद दे रही थी की उन कैसे भूमिका बनाकर अपने असली हवान की तरह बढ़ रहे थे। अब कांता भी  जल्दी से जल्दी अपने असली हवान शुरू करना चाहती थी। तबी उसे देखा की स्वामी जी ने वहा रखे झोले में से एक इत्रा की शीशी निकली और कांता को ओर बढ़ते हुए बोले)

 स्वामी जी: लो बेटी इसे मेरे शरीर पर चिदक दो।

 कांता ने वो शीश लेकर जैसे ही स्वामी जी के ऊपर चिड़का पुरा हॉल में बहुत सुगंधित खुशबू आने लगी।  इतरा की खुशबू बड़ी ही मनमोहक थी।  उसके बाद स्वामी जी ने कांता से वो शिशि ले ली और उसे कांता का तन पर चिल्लाने लगे।  उसके बाद स्वामी जी ने दोसरी शीशी निकली और कांटे को देते हुए बोले।


 स्वामी जी: ये लो बेटी ये सुगंधित तेल है।  इसे तुम अपने हाथो से मेरे शुद्ध हिस्से पर मल दो।

 कांता ने वो शीश अपने हाथो में ले लिया।  तब तक स्वामी जी ने अपनी एक बाह कांता के आगे कर दिया।  कांता ने शीश से कुछ तेल निकला और अपने दोनो हाथो को स्वामी जी के बाह पर रख दिया और अपने कोमल हाथो से स्वामी जी की बलिष्ठ भुजाओ पर आशिता आहिस्ता तेल लगाने लगी।


 कांता के मुलायम हाथो का स्पर्श स्वामी जी को बहुत ही आनंदित कर रहा था।  कांता भी बड़े ही प्यार से उन्हे तेल लगा रही थी।  कुछ डर तक हमें हाथ का मालिक करने के बाद कांता स्वामी जी के दूसरे हाथ पर भी मलिश करने लगी।  क्या बीच स्वामी जी कांता को प्यारी नजरों से देख रहे हैं।  काँता की नज़र कभी-कभी स्वामी जी से मिलते हैं तो हल्के से शर्माकर अपनी नज़र झुका लेते हैं।  दोनो के जुबान बैंड द लेकिन बात फिर भी हो रही थी।  जब कांता स्वामी जी के दूसरे हाथ पर भी तेल से मालिश कर चुकी तो स्वामी जी ने अपनी पीठ पर मालिश करने का इशारा किया का उपयोग करें।  लेकिन सहसा कुछ सोच कर बोले।

 स्वामी जी: बेटी कांता मैं जाता हूं ताकी तुम्हें तेल लगाने में ज्यादा परशानी का सामना न करना पड़े।

 कांता: जैसा आप उचित समझे स्वामी जी:

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