कांता - सेक्स की देवी Part 2
सासु मां: अरे बेटी तुम तैयर हो गई ......... बहुत अच्छा ......... चलना तो मैं भी चाह रही थी मगर अब हलत में मेरा वहा जाना ऊंचा नहीं होगा। इस्लिये बेटी तुम चली जाओ। मेरी चिंता मत करना ......... फूलवा है ना यह मेरी देखभाल के लिया।
कांता: जी माँ जी।
सासु मां: और हा ध्यान रहे स्वामी जी को कोई शिकायत का मौका मत देना...... बेटी आज जो कुछ भी उन्हीं के आशीर्वाद की वजह से है... ठीक है ना बेटी।
कांता : जी माँ जी.....
ससु मां: हा बेटी तुम जाऊंऊ... जितनी जल्दी तुम जाऊंगी उतनी जल्दी ही वापस आओगी। जाऊऊऊ... बेटी... जाओ...
कांता फूलवा को बुलाई और उस से कहा की वो मां जी का ध्यान राखे... और खुद बहार की ओर बढ़ चली... मेन गेट पर ड्राइवर गाड़ी के साथ कांता का इंतजार कर रहा था। कांता को देखते ही वो दौड़कर पीछे वाले गेट खोला और अदब से खड़ा हो गया। कांता बिना कुछ कहे कार में बैठ गई। उसके बाद ड्राइवर ने कार का गेट बंद किया और ड्राइवर सीट पर आकार गाड़ी स्टार्ट कर दी और गदे को बहार की तारा बढ़ा दिया। कुछ ही देर बाद कार के सुनसान सड़क पर दौड़ रही थी। बैक मिरर पर ड्राइवर को कांता का चेहरा दिखाई दे रहा था। ड्राइवर नज़र बचा कर काँटा के कामुक होता का अपनी नज़रो से रासपां कर रहा था। उसकी नज़र चुपके चुपके उसकी गदराए जिस्म का जायज़ा ले रही थी। शायद कांता को भी इस्का अहसास हो गया था की वो बैक मिरर से उसे देख रहा था लेकिन कांता ने इसे इगोन करना ऊंचा समझौता।
ड्राइवर: मल्किन आप बैठिए मैं बात करके आता हूं। (और ये कहकर ड्राइवर मेन गेट के पास चला गए, कुछ डर बाद वहा पर के साधु नुमा आदमी आया जिसकी उमर लगभाग 40 साल थी, बलिष्ठ शारिर का मलिक, ड्राइवर यूज हाथ जोड़ कर प्रणाम कर के कुछ बड़ा करने लगा। कुछ डर करने के बाद वो आदमी वापस और चूड़ी में चला गया, कोई 10 मिनट के बाद वो आया और उसे ड्राइवर से कुछ कहा।
ड्राइवर: मालकिन स्वामी जी ने आपको अंदर बुलाया है।
काँटा उसकी बात सुनकर कार से नीचे उतरी और मैं गेट की तरफ बढ़ चल। ड्राइवर व्हाई बने हाल की तरह बदल गया। मैं गेट पर पहले से ही अंदर वाले आदमी ने गेट खोल दिया, और कांता को अपने पीछे आने का इशारा किया। कांता उसके पीछे पीछे चल पड़ी। उसे चलते हुए एक नज़र चूड़ी की ओर दौड़ाई, बांग्ला काफ़ी बड़ा था, और तीन मंजिला था। चूड़ी के अंदर छोटा सा लॉन भी था। एक तराफ एक मदिर भी बना हुआ था जो की चूड़ी से बिलकुल हट के था। शायर ये मंदिर भी शिवजी का ही था। कांता ने ऐसा अंदाज लगाये। कांता उस साधु के पीछे चल रही थी... वो हमें लेकर चूड़ी में प्रवेश कर गया। चूड़ी का हॉल बहुत ही विशाल था। उसमे चारो तारफ गड़िया बिछी हुई थी, जिसपर मसंद लगे हुए थे। और उन सब पर सफेद रंद की चादर बीची हुई थी। हाल के बीच के बहुत बड़ी शिव जी की एक बहुत बड़ी पीठ की मूर्ति लगी हुई थी। हॉल के दिवारो पर अलग अलग भगवान की बड़ी बड़ी फोटो तंग हुई थी। सब चीजो के देख रही थी तबी साधु की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया में कांता:
साधु: आप यहाँ बैठ जाये। स्वामी जी अभी आते ही होंगे।
ये कहकर वो वापस बहार की तरफ चला गया। कुछ डर बाद ही प्रयोग किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। पलट पर उसने देका के सामने से स्वामी जी आ रहे हैं। उनके शरिर पर केवल कमर के नीच धोती लापेटी ही थी। ऊपर के अंग पर उने कुछ नहीं पहचान रखा था। एक जनेऊ था जो कि उनके देखने पर क्रॉस बनाया हुआ उन से शरिर से लिपटा हुआ था। उनके देखने पर काफ़ी बाल थे जो की लगभाग सफ़ेद हो चुके थे। उनटकी चाय कफी चौउदी थी। उनको पेट हलका सा आया की तरफ निकल गया था। कांता उनके आते ही उस खड़ी हुई और आगे बढ़कर उसे स्वामी जी के जोड़ी चुए। स्वामी जी ने उसे अपने हातो से पकार का उठा और बोले
स्वामी जी: बैठो बेटी... कानाता वही उन्हीं के साथ गई स्वामी जी भी उसके सामने दूसरी गढ़ी पर बैठे गए। अब स्वामी जी की नज़र कांता के चेहरे पर गई। और सबसे पहले स्वामी जी को कांता के रासीले और कमुक होठ नजर आए। लाल रंग के उसके होठ ऐसे लग रहे थे जैसे उनमे से रस तप रहा हो..
स्वामी जी: बेटी तुम हवन के लिए अकेली आई हो... जानकी लाल और तुम्हारी सास नहीं आई बेटी?
कांता: नहीं ... वो क्या है की अचानक बाबूजी को किसी जरूरी काम से दिल्ली जाना पड़ा, और कल मां जी सीधी से फिसाल गई जिस से उनके जोड़े में मोच आ गई। डॉ. ने उन्को कम्प्लीट बेड रेस्ट बता रखा है। इसी वजह से मुझे हवन के लिया अकेले आना पड़ा।
स्वामी जी: कोई बात नहीं बेटी... वैसा भी हवन में तो बस तुम्हें ही बैठना था। (और स्वामी जी उसकी आंखों के तारफ देखने लगे। उसकी आंखे कफी बड़ी बड़ी और मोती थी। उसमे लगा काजल उसमें आंखें को और भी खूबसूरत बना रहा था। उसकी आंखों में एक आजीब सी ख्वाइश नजर आ रही थी कांता रही उस बैठी थी। कोई जवाब नहीं दिया। अब स्वामी जी ने किसी भोला नाम के आदमी को आवाज दी। कुछ ही डर में एक साधु जिस्की उमर लगभाग 50 साल की होगी, आया और एक तरह खड़ा हो गया। स्वामी जी ने उसकी या देखा और आदेश दिया:
स्वामी जी: भोला, तुम जाकर हवन की तैय्यारी करो। सभी हवन का समान मंदिर में पाहुचा दो, तत्काल प्रभाव से।
स्वामी जी की बात पूरी होते ही भोला नाम को वह साधु वापस चूड़ी के अंदर चला गया।
स्वामी जी (काँटा से मुखातिब होते हुए बोले) क्या बेटी तुमने कुछ खाया तो नहीं है ना......
कांता: नहीं स्वामी जी ........ हवन जो कर्ण था।
स्वामी जी: बहुत अच्छे बेटी.... बड़ी समस्या हो तुम... अच्छे एक बात बताऊं ये बिजनेस तुम क्यों संभल रही हो तुम्हारा पति विजय क्यो नहीं संभल रहा....
कांता: आप ने जाते हैं उन्हे अपने आम के बागानों में कोई इंट्रेस्ट ही नहीं है। वो तो बस अपने जॉब में ही लगे रहते हैं। सैलरी पैकेज तो बहुत अच्छा है मगर प्राइवेट जॉब सिक्योर नहीं होती, और अगर वो चाहे अपने बिजनेस में भी बहुत अच्छा पैसा कमा सकता है, मगर कहते हैं कि ये बिजनेस मुझे पसंद ही नहीं है।
स्वामी जी: वो तो ठीक है मगर तुम इतने बड़े बिजनेस को कैसे हैंडल करोगी?
कांता: स्वामी मैंने एमबीए किया हुआ है, और पापा के बिजनेस में ज्यादा तो नहीं मगर थोड़ा बहुत हाथ बताता थी। इस्ली थोड़ी तो समझ है बिजनेस की। और अगर आपका आशीर्वाद रहा तो मैं इसे जरूर संभल लुंगी और बहुत अच्छी तरह से संभल लूंगी।
स्वामी जी: काफ़ी विश्वास है तुम्हारे अपने ऊपर.. हम्म्मम्मम्म... अच्छी बात है, इस्का मतलब तुम्हारे अपने बिजनेस को संभालेन का ज़ज़्बा है।
कांता जी बिलकुल स्वामी जी,
स्वामी जी: देखो बेटी……… पूजा पाठ, मंत्र, साधना ये सब ऐसी चीज है कि इसे किसी से बताया नहीं जाता है। बताना इस्का असर नहीं रहता है। इस्लिये हवन कैसे हुआ इस्का जिकरा किसी से नहीं करना है तुम्हें। आगर ये बात तुम्हें मंजूर हो तो ही हवन करना, वरना ...... रहने डू। ......
कांता: नहीं स्वामी जी मैं ये बात समाजी हूं.......
स्वामी जी: बेटी केवल रिश्तों से कुछ नहीं होगा... ये हवन कुछ अलग प्रसार का होगा, जिसके लिए तुम्हें मानसिक और शाररिक दोनो से ही तयार होना मिलेगा... समझौता।
कांता : स्वामी जी मैं बिलकुल तैय्यर हू...
स्वामी जी: देखो बेटी... तुम तो खुद ही समझौता हो... फिर भी तुम्हें बता दू की पूजा, हवन, साधना आदि करने के काई तारिके होते हैं। जो तारिका जीता सिंपल होता है उसका महाना उतना ही कम होता है, और जो तारिका कहीं और कुछ प्रतिकुल होता है उसे महान उतना ही ज्यादा होता है... ये सब बात वेदो में भी लिखी है। तुमने भी सुना ही हो गया।
कांता : जी स्वामी जी सुना है...
स्वामी जी: इस्लिये बता रहा हूं बेटी की मैं भी तुम्हारी सफल के लिए कुछ अलग सा हवन कर रहा हूं। क्या हवन में केवल हम दो ही मिलेंगे....तुम कोई ऐतराज़ तो नहीं है ना बेटी .........?
कांता: नहीं स्वामी जी आप जो करेंगे मेरे भले के लिए ही करेंगे...
स्वामी जी: हा बेटी बिलकुल थीक समाज रही हो तुम... ये हवन थोड़ा सा अजीब जरूर लगेगा तुम्हे मगर यहां करो मेरा अगर तुम ते हवन मेरे कहे अनसार कर लिया तो तुम्हारे बिजनेस के आ गए दूर हो साड़ी बढ़ाए . और फिर तुम अपने बिजनेस को एकाधिकार के साथ आगे बढ़ोगे। घर में तुम्हारी बात कोई नहीं तालेगा... वैसा ही होगा जैसा तुम चाहोगे हमें आंखें)
कांता: आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी इस हवन की सफल के लिए।
स्वामी जी: ठीक है बेटी... अगर अब तुम तयार हो तो हम हवन शुरू कर सकते हैं। मेरी तराफ से कोई डबाव नहीं है। अगर तुम्हें हवन के दौरा ऐसा लगे की ये नहीं होना चाहिए तो मुझे रोक देना। मैं हम विधि को नहीं करुंगा.... लेकिन जैसा वैसा की मैंने तुम्हें पहले ही कहा है जो विधि जितनी होती है उतनी होती है उतनी ही असरदार भी होती है। और हवन के दौर हम जो कुछ भी अर्पित करते हैं, जैसे की फल, पैसा, फूल, कपड़े ये हम भगवान को अर्पित करते हैं.. समझी बेटी
कांता ने सहमति सी सर हिलाया। तबी भोला वह आ गया और बड़े ही विनंरा भाव में बोला:
भोला: महाराज हवन की सारी तयारी हो चुकी है। मंदिर में मैंने सारा समान पाहुचा दिया है।
स्वामी जी: ठीक है तुम बाहर खड़े रहो.... अभी बिटिया बहार जाएगी तो इसे मंदिर में ले जाना। इतना सुंकर भोला बहार चला गया। तब पंडित जी ने कांता से कहा।
स्वामी जी: बेटी... तुम बहार जो मंदिर बना है उसमे भोला के साथ चलो। हम वही आते हैं ......... और हा बेटी वैसे तो तुम नहीं कर आई हो फिर भी अपने हाथ जोड़ी दो लेना और अगर तुमने अपने कपडो में कोई लोहे की वास्तु जैसे पिन या क्लिप लगा रहकी हो तो निकल का इस्तेमाल करने के लिए देना... क्योकिन ये सब हवन में वारजीत होता है... अब जाओ बेटी बहार भोला खड़ा है वो तुम मंदिर तक छोड़ दूंगा....
कांता हाथ जोड़ बाहर की तरफ चली गई। पीछे से स्वामी जी उसके बड़े बड़े बड़े चुतदो को थिरकते हुए देख रहे हैं। ऐसा लग रहा था जैसे दो बड़ी बड़ी रबर की बोल आप में तकरा रही थी।
भोला: आप यहीं पर बैठे, स्वामी जी अभी तैयर होकर आते हैं। तब तक आप भी हाथ मूह धो लिजिये। कांता पास के ही एक छोटे से कृतिम जलाश्या की तरफ बढ़ चली। तालाब का पानी बिलस्कुल साफ था। तालाब की सिद्धियों को उतराने से पहले कांटे ने अपने ऊंचे हिल की संदेल निकले और वही रख दिया। फिर उसे कमर के पास सारी में लगी हुई आलपिन भी निकला दिया। फिर उसे अपने कांधे पर ब्लाउज में लगे आलपिन जिससे उसे अपने पल्लू को पंच कर रखा था उसका भी निकल दिया। और भी अपना हाथ मुह धोने को लिए सीधियो से नीचे उतरी। कांता झुक कर अपने अंजुली में पानी भरकर अपने मोह को धो रही थी जिस करन उसका आंचल खिसक कर नीचे गिर गया था। और उसके दो बड़े सामने बाहर आते आते रहते थे। उसके ब्लाउज का गला गहरे होने के करन उसके विशाल जोबन के दो नुकीले पहाड़ियो के बीच के घाटी साफ नजर आ रही थी। उसकी घाटी ऐसी लग रही थी जैसे दो पहाड़ो के बीच कोई सकरी गहरी गली हो। उसके बड़े बड़े स्टेन उसके हाथो के हरकत के साथ हिल रहे थे। मुह धोए के बाद कांटा तालाब की तराफ मुह के खादी थी। उसका आँचल अभी भी नीचे ही गिरा हुआ था। तबी उसके कानो में एक आवाज आई... बेटी। कानान्नंताआआआ ...................
आवाज सुनकर कांता पीछे मिट्टी गई.... पीछे स्वामी जी खड़े थे। कांता के दो उठे मानो स्वामी जी से ऊंचा के मामले में ऊंचा हूं। स्वामी जी की आंखों के आगे कांता के दोदो बड़े स्तान लगभाग नांगे द।
स्वामी जी ने जीतना अनुमन लगा द यूज बड़े जोबन द कांता के। स्वामी जैसे कांता की चूचिया देख कर मधोश हो गए हो। इस समय कांता की दोदो चूचिया स्वामी जी को दो जहान से भी केमती लग रही थी। कांता समाज गई की स्वामी जी क्या देख रहे हैं। कांता ने बड़ी ही समाजदारी के साथ अपना पल्लू उठा और अपने अपने दोनो कबूतरो को छुपा लिया। तब जाकर स्वामी जी को होश आया। स्वामी जी अपनी गल्ती पेकड़े जाने से थोड़े परेशान हो गए और हड़बड़ाकर बोले।
स्वामी जी: वो... मैंने सोचा तुम्हें बुला क्योकी हवन का समय हो रहा है बेटी। तुम हाथ मुह धोकर तैयर हो ना?
कांता: हा स्वामी जी चले, मैं बिलकुल तैय्यार हूं।
स्वामी जी के पीछे पीठ कांता मंदिर के साइड में बने एक बारमदे रूप्पू हाल में आ गई। वहा पर कांता ने देखा की पूजा का सारा समान वह रखा है। फल में केला, अंगूर, और संतरे। वही पर हवन के लिए कुंड भी बना हुआ था, हवन सामरी भी वही पर राखी हुई थी। हवन कुंड के पास दो साइड में दो बड़े बड़े और गद्देदार कंबल बिछे हुए थे। जो की शायद भोला बेचागर गया था। एक कलश भी राखा हुआ था। एक मिट्टी का दिया, अगरबत्ती और वो सारे सामान जो पूजा में होने चाहिए वो वही रखे हुए थे। स्वामी ने कांता से कहा:
स्वामी जी: बेटी ये सारा सामना तुम्हारा है, जो की तुम्हारी तारीख से हवन में भगवान शिव को अर्पित किया जाएगा। अब तुम अपने हैं कलश को जल से भर लो। (उसके हाथ में कलश देते हुए)
कांता: लेकिन यह तो जल है ही नहीं...
स्वामी जी: (मजकिया लहजे में) तो मेरे कुंड से भर लो पानी अपने ही कलश में है। मेरा मतलब है की तालाब से भर लाओ इसे। (कांटा कलश लेकर हॉल के बहार निकल गई और कोई 5 मिनट बाद वापस कलश को अपने कमर पर टीका भर कर ले आई। ऐसा लग रहा था वो से कफी ठक गई हो। अनादर कलश रख कर खड़ा हो गया।
स्वामी जी: क्या हुआ बेटी... ठक गई क्या... मैंने तो पहले ही कहा था के हवन-कथिन होगा।
कांता: वो पानी ज्यादा था कलश में इसलिय भारी हो गया।
स्वामी जी: जब तुम्हारा कलश ही बड़ा है तो भारी तो होगा ही ना
(ये द्विर्थी संवाद सुन कांता अंदर से चौक गई, वो समाज गई की आगर मैं कुछ बोलुंगी तो भी स्वामी जी याही कहेंगे की मैं गलत मतलब निकल रही हूं, इस्ली वो कुछ ना बोली)
अब स्वामी जी एक कंबल पर तैर बैठे और पूजा की तय्यारी करने लगे। उन आते से जमीन पर आदी तिरची रेखाएं खिची। और फिर उसपर सिंदूर, रोली, आदि पदार्थ भी गिराया। उसके बाद एक अंजुली जो उसके बीच दाल कर उस पर मिट्टी का दिया रख दिया। और फिर काँटा से बोले:
स्वामी जी: लाओू बेटी तुम्हारे दिए में मैं तेल दाल देता हूं। और उसमे वो तेल डालने लगे। दिया थोडे बड़े साइज का था इसलिय उसमे तेल ज्यादा आया, स्वामी जी फिर कांता रुई के दीपक बनते हुए बोले:
स्वामी जी: एक बात तो है बेटी....... तुम्हारे सारे सामने बड़े बड़े हैं... (कांटा सामना का मतलब समाज रही थी, पर स्वामी जी के कहने का अंदाज ही ऐसा द उसपर आपत्ति नहीं किया जा सकता था)... ये कलश भी कितना पाने पी गया... और इसे देखो जैसे ये दीपक नहीं तेल का कुवा हो... हा... हाहाहाहाहा है ना बेटी।
कांता के भी क्या शक्ति थी, बस सहमती में सर हिला दिया। स्वामी जी ने दीपक जालाया और फिर कांता को पास बिच्छे हुए कंबल पर बैठने का इशारा किया। जब कांता उनके पास बैठे तो स्वामी जी ने कहा:
स्वामी जी: बेटी कांता... हम जो ये हवन करने जा रहे हैं बिलकुल विशुद्ध हवन है। वैसा तो इसमे भी तुम्हे बदला चाहिए मगर मैं तुम्हें इसके लिए फोर्स नहीं करुंगा। हा लेकिन मेरे तुम्हारे हाथ पाव को शुद्ध जल से धोना होगा। तबी तुम हवन कर पाओगी। ठीक है।
कांता ने हम भारी। तब स्वामी जी ने एक पत्ते पर कांता के जोड़ी रखवे और एक पत्ते उसके जोड़े पर जल गिराने लगे। फिर कुछ डर बाद वो कांता के पैरो को अपने हाथ से धोने लगे। कांता उनकी चुवां से सिहर सी गई, मगल बोली कुछ नहीं, कुछ डर बाद उन कांता के जोड़े के तलवे को धोने के लिए लगे। कांता को अपने जोड़े में एक मीठी गुडगुडी महसुस होने लगी। कुछ डर बाद वो खड़े हो गए और कांता के पीछे आ गए। और कांता को अपने दोनो हाथ आगे करने के लिए बोले। और फिर काँटा के पीछे झुक कर वो उसके हाथ पर पानी गिराने लगे। जब उसका हाथ पुरा गिला गो गया तो स्वामी जी अपने पैरो के पंजो के बाल बैठे थे अपने दोनो घुटनो को इस्तराफ फेलया की कांता उनके दोनो पैरो के बीच आ गए और फिर पीछे से हाथ आगे ले जाकर वो कांता का हाथ हलके मसलाने लगे। उन्होन कांता की दो हाथो की हथेलिया अपने दो हाथो में लेकर इस्तेमाल करें। हाथ रगते वक्त स्वामी जी की विशाल जाएंगे कांता की विशाल पुट्टे से सारे के ऊपर से ही रागर खा रही थी। इसे रागदा रागदे में कांता का आंचल फिसाल कर गिर गए और उसके दो कबूतर ब्लाउज नुमा जाल में फिरफरादे लगे।
पीछे से स्वामी जी को यूके ब्लाउज के कबूतरों के दर्शन हो रहे थे। कांता के दो हाथ स्वामी जी के हाथ में इस्ली वो पल्लू को उठा भी नहीं शक्ति थी। स्वामी जी कांता के जोबन का रासपान करते हुए कानाता के कान के पास अपने कान को ले जाकर फुसफुसा कर बोले
स्वामी जी: कांता बेटी... भगवान ने तुमे बहुत सुंदर बनाया है। (कांटा समाज गई की स्वामी जी अभी कहा की सुंदरता देख रहे हैं।)
फिर स्वामी जी ने बात ना बिगडे ये सोच कर बोले:
स्वामीजी: लेकिन एक बात है बेटी भगवान ने तुमे ज्यादा ज्यादा सुंदर बनाया है इतना ज्यादा ही दीमाग भी दिया है। तुम जितनी सुंदर हो उतनी ही समजदार भी हो। तुम एक गुडवां स्त्री हो। इतनी सारी विशिष्ट बहुत ही कम स्त्रियो में दिखी देती है। (ये कहकर स्वामी जी ने कांता का हाथ छोड़ दिया और पानी लेकर कांता के हाथ पर गिराने लगे। हाथ धोने के बाद कांता ने भी बड़ी ही सहजता के साथ अपना पल्लू उत्थान और अपने दोनो अनमोल रतन पर दाल अपने। स्वामी जी भी पूजा के कार्य में वास्तविक हो गया। स्वामी जी ने कुछ अगरबतिया निकली और उन्हे जलाई और फिर कांता को देकर बोले को वो इस्तेमाल करें वहा बीच में गाद दे। कांता ने ऐसा ही किया। फिर स्वामी जी कुछ मंतर बुदबुदा कर अपने और कांता के चारो तारफ के पानी की रेखा खिच दी। फिर कुछ जल अपने ऊपर छिपाक लिए और कुछ जल कांता के ऊपर। फिर कांता को हाथ जोड़ने के लिए बोले और कुछ मंत्रों का ऊंचाचरण किया। फिर उन्होन रोली लेकर वहा पर रखा कलसे पर टीका किया। फिर उन्होने ने कांता से कहा:
स्वामी जी: बेटी कांता... हवन में केवल हम दो ही लोग है। हवन की प्रकृति कुछ अलग सी होती है। इसमे मैं अपने आपको तिलक नहीं लगा सकता इसलिय बेटी मेरे माथे पर तुम ही तिलक लगाना होगा। और मैं तुम्हारे तिलक लगाऊंगा।
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