कांता - सेक्स की देवी Part 1
रामू कार को स्पीड से चला लगा, अब गाड़ी मैं सड़क पर आ गई थी, गाड़ी की एसी की थंडक की वजह से कांता को नींद आने लगी थी। और कुछ ही डर में उसकी आंख लग गई, पास ही बैठे विजय को भी नींद आने लगी थी। जानकी लाल खिडकी से बहार की या देख रहे थे। याही कोई 25 मिनट बाद गाड़ी हवेली की पोर्च में रुकी। सभी लोग गाड़ी से अच्छे उतरे। नीचे उतरने पर कांता ने देखा की उसकी सास दरवाजे पर हाथो में आरती की थाली लेकर खड़ी थी। विजय और कांता की आरती उतारने के बाद वो लेकर और आई का इस्तेमाल करें। कांता लगभाग दो साल बाद हवेली में आई थी। इस्लिये हवेली चारो तारफ सजी हुई थी। कांता की सास ने अपने बेटे और बहू से कहा "तुम लोग बहुत थाक गए होंगे, नहीं कर थोड़ा आराम कर लो।
और बहू और बेटे को उनका काम देखा। विजय अपने कामरे में जाकर थेके होने के करन बिस्तर पर गया और कांटा बाथरूम की या बढ़ गई।
बाथरूम काफ़ी सुसाजित और बड़ा था। किसी अलीशान होटल के बाथरूम की तरह, पानी का बड़ा टब। फ़ौआहारा आदि सब कुछ था बाथरूम में। काँटा काच के सामने जाकर अपने आपको कांच में देखने लगी, अपने आपको निहारते हुए बड़ी खुशी हो रही थी अपनी खूबसुरती देखकर। फिर उसे ब्लाउज और सारी में लगे हुए पिन को धीरे से निकला और अपना आंचल लुधका दिया। जैस ही उसके नारंगी रंग का आंचल लुढ़का उसका बड़ा बड़ा स्तान नुमाया हो गया। उसके ब्लाउज का दीप काफ़ी गहरा होने के लिए उसके स्टेन ब्लाउज़ आधे से अधिक बहार नुमाया हो रहे थे। उसके स्टैनो का आकार दो बड़े नारियाल के आकार जीता था।
फिर कांता ने अपने सारी को अपने कमर में से खोलकर अलग कर दिया। अब वो ब्लूज़ पेटीकॉट में अपने शेयर के शीशे में निहारने लगी। सतनो के नीचे का हिसा कफी सपत था उसमे उसमें गहरी से नाभि गजब धा रही थी नाभि के नीचे हल्के लाल रंग का पेटीकोट था जिस्का कपडा पताला होने को वजाह से उसके नीचे के सुडोल तांको दे को देखकर। उसके धीरे से अपने बालो को समते हुए अपने सेर को फिल्मी अंदाज में पोज देकर देखे में देखकर मुस्कान लगी, फिर उसके हाथ अपने ब्लाउज पर आ गए और आपके बड़े बड़े चूचियो को सहलाने लगे। फिर बड़ी ही नज़ाकत से उसे अपने ब्लाउज का एक हुक खुला। उसके छोचोचिया आधी से अधिक बहार को या झलकाने लगी। ऐसा लग रहा था की छोटे से पिंजरे में दो बड़े कबूरो को क़ैद कर दिया गया है। और अब आजादी की उम्मेद देखकर उनकी फड़फड़ाहट बढ़ गई थी। फिर उसे देने से दूसरा हुक भी खोल दिया। अब नीचे लाल रंग की ब्रा का हिसा नज़र आने लगा था जो उसकी दुधिया गोलियों से ऐसी लिपटे हुए थे जैसा चंदन के पेड़ पर साप लिपता रहता है। उसके चूचिया बिलकुल सफेद रंग की थी। फिर उसे अपने ब्लाउज का तीसरा हुक भी खोल दिया। उफ़ा क्या नज़रा था। ऐसा लग रहा था की जैसा जानात का दरवाजा खुल गया हो। फिर उसे चौथा और फिर पांचवा और आखिरी हुक भी खोल दिया और अपने तन से ब्लाउज को अलग कर दिया। अब वो ब्रा में थी, उसके स्टेन उसके ब्रा को फड़कर बहार निकलने के लिया बेटाब हो रहे थे। लाल रंग के ब्रा में उसका गोरा बदन ऐसा लग रहा जैसा लाल रंग में कोई कयामत लिपटी हुई हो। कांता ने फिर अपने आपको कुछ डर कांच में निहारा और के रहस्यमयी मुस्कान के साथ मुस्कान दिया। अब उसका हाथ उसके कमर पेट हा जिस्म लाल रंग का पेटीकोट उसके अंदर के समय को छुपाने का आसफल प्रयास कर रहा था। फिर उसे धीरे से दूसरे पेटीकोट का नादा भी खोल दिया। और पेटियट बाथरूम के फ़र्श पर गिर गया। जैसे ही पेटीकोट ने उसके तन से अलग हुआ दो सुडोल तांगे नुमाया हो गए।
उसके जाएंगे काफ़ी मानसल थी। ऐसा लग रहा था जैसे दो मोटे मोटे केले के पेड़ा होना। इतनी चिकनी टांगे थी कांता की। और उसके पाट की छोडाई देख कर देखने वाली के आंखों की चौडाई भी बढ़ जाए। काफ़ी हस्ट पस्ट द उसके मानसल पाट। और फिर पाट के साइड में उसके दो कुल्हे। उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ क्या कुल्हे द उसके, ऐसा लगता था की जैस किसी किसान ने अपने आस पास के खेतो में से सबसे बड़े दो तारबूजो को एक साथ रख दिया हो। और उसपर लाल रंग चढडी ऐसे लग रही थी जैसे की किसी खानार्नक चीज की संकेत करने के लिए लोग लाल रंग का कपड़ा लगा देते हो। वकाई में उसके गांद द ही खतरोंक अगर कोई उसे एक बार देख ले तो वो इस्की गहराही में उतरने के लिए कुछ भी कर गुजरा। ऐसे गंद थी कांता की। फिर उसे अपने दोतो कुल्हो पर ऐसे हाथ फिरया जैसी कोई शिकारी अपने सबसे तेज कटे पर प्यार से हाथ फिरता हो। कुछ डर अपने दोनो कुल्हो पर हाथ फिराने के बाद अब वो अपना हाथ पीछे की तरफ अपने ब्रा के हुक की या लेजाकर उन्हे तत्काल लगे। औ कुछ डर बाद एक झटके से उसे बार की हुक को खोल दिया। ब्रा का हुक खुलते ही उसमे क़ैद दो बड़े कबूतर जैसे आजादी पाकर झूम उठे और ब्रा से उचचलकर दोनो खुला हया में लंबी लंबी सांस लेने लगे। उसके चूचियो का रंग सफेद था और उसपे खड़े उसके 1 इंच लम्बे निप्पल जिन्का रंग भूरे रंग का था ऐसा लग रहे थे जैसे किसी बड़े बम में लगे हुए पिन हो जिन्हे निकलते ही तबाही मच जाएंगे। और ये बात सच भी उसके दोनो स्टेन थे ही ऐसे जो एक बार देख ले बस चुनें का सपना देखता रहे जिंदगी भर। ब्रा निकालने के बाद कांटा ने बाथरूम का फौहारा चालू किया और अपने शेयर पर पानी के थंडी बुंदों को महसूस करने लगे। कुछ डर बाद फुहारे में नहने के बाद उसके हाथ में साबुन आ गया और अपने चिकने बदन पर वो चिकना साबुन मलने लगी। उसके अपने हरेक अंग पर साबुन मालने के बाद उसके हाथ अपने पुस्ट कुल्हो पर गया और वहा भी उसे खुशबुदार सबुन लगा। सबुन के झगड़ में उसका बदन और आकर्षक लग रहा था। फिर उसकी अंगलिय अपने चढी की किन्नर पर रंगने लगी। उसके कुल्हे काफ़ी बड़े होने के करन उसकी चढी नाम मटर की थी वो भी उसकी मंसल कमर में धासी हुई थी। उसे कमर की तरफ से उनगले को जोर देकर उन्हे अपनी चढी में घुसरे और फिर चढी के अंदर ही हाथ डाले अपने हाथ को अपने विशाल पिचवाड़े की ओर लेकर गई। और फिर बड़े ही नजाकत से अपने शरीर का एक मातृ वस्त्रा भी अपने तन से अलग कर दिया। अब सामे दिस एक नंग अवस्थ में पाने से भीगी हुई एक शोला बदन, जिस्का नाम था कांता - सेक्स के देवी।
लगभाग शहर का हर अंगा नॉर्मल से बड़ा था उसका। बड़ी ऊंचाई 5'8'' बड़े काले बाल, बड़ी बड़ी काली आंखे, बड़े बड़े दूध से भरे हुए स्तान, बड़े कुल्हे और दोनो मानसल जांगो के भीच की एक दर जिस्की गहरी दिखाई भले ही ना दे रही हो लेकिन महसूस हो रही है दरर के अंदर थी एक हल्की सी लालीमा जिस से ये पता चल रहा था की उस दरर के भीतर कितनी आग है। और इस आग को बुझाने के लिए पानी चाहिए बड़ी मटर में पानी और अलग अलग नल का पानी, ये है कांता की कहानी।
सासु: चलो बेटी बहार स्वामी जी आ गए हैं।
कांता की सास आगे आए और कांटे उसके पीछे-2 चलते हुए स्वामी जी की तरह बढ़ते हैं, स्वामी जी लॉन में लगे हुए के बड़े से तख्त पर (लाइकी का दीवान की तरह) जोड़ी के आगे लटके हुए मसनद के सहारा जैसे हुए आराम से बैठे द. उनकी उमर को 55-60 साल के करीब यह। बाल लगभागे सुरक्षित हो चुके थे जिन्हे उनोहने काफ़ी छोटे-2 कटवा रखे थे। उनकी दही के बाल भी सुरक्षित हो चुके थे और उनकी साइज भी बालो की तारा ही छोटी-2 थी। उनका रंग साफ था, चेहरे पर लालिमा फेली हुई थी। उनका शरिर काफ़ी हस्त पुष्ट था। उनकी ऊंचाई लगभाग 6'1" की थी। उनका शारिर बिलकुल विशालकाय था। चेहरे में मुस्कान फेल हुई थी। जब कांटा और उसकी सास स्वामी जी के करीब आने वाले थे तो कांता की सास ने कहा:
सासु मां: बेटी स्वामी जी के जोड़ी को जरूर चुना, अगर वो खुशी से तुम्हें आशीर्वाद दे दिए तो तुम्हारा कल्याण हो जाएगा:
कांता: जी मां जी
स्वामी जी के पास पाहुचकर सबसे पहले सासु जी ने उनके जोड़े चुने, फिर कांता स्वामी जी के ओर झुकते हुए उने प्रणाम किया झुकते वक्त उसका दुपट्टा नीचे झूला गया जिससे उसके कमीज ने उसा शहर का साथ छोड़ दिया उसके दोनो बड़े दिया। को दिखी दे गए,
स्वामी जी के चेहरे पे भव तो सहज पर उनका मन अचानक उन विशाल अनारो को देख कर थोड़ा विचित्र सा हो गया। पर स्वामी जी वक्त की नज़ाकत को समझौता हुए इस बात का असर अपने चेहरे पर नहीं होने दिया। तबी जानकीलाल ने कहा।
जानकी एल: स्वामी जी ये मेरी बहू कांता है, विजय की धर्मपत्नी, बहुत सुशील और काफ़ी पढ़ी लिखी है। मैं चाहता हूं की मेरा बिजनेस में मेरा साथ तकी मेन बिजनेस को ठीक से संभल साकू, आप तो जाने है कि कितना बड़ा बिजनेस है हमारा, अकेले संभलने में कफी डिककत होती है। बहू साथ होगी से काफ़ी सहयोग मिलेगा।
स्वामी: हा हा क्यों नहीं, ये तो बड़ा ही उत्तम विचार है। आखिर बहू पाधी लिखी है और कफी समझौता भी है। ये तो आराम से सबी काम को सम्भल सकती है... क्यो बेटी (स्वामी जी कांता की तरफ देखते हुए मुस्कान कर बोले) कांता हल्के से मुस्कान कर अपनी रजामंडी दे दी।
जानकी एल: स्वामी जी हम चाहते हैं के इस काम की शुरुआत भी आप से ही हो। क्योकी आज तक के सारे शुभ काम आपके ही हटो से हुए हैं। अगर आपका आशीर्वाद मिल जाए तो कांटा आईएस बिजनेस को नई बुलंदियों तक लेकर जाएगा।
स्वामी जी: अरे जानकी लाल तुम तो जाते ही हो मैं हमा तुम्हारे साथ ही हूं... लोआओ आज ही हम इस शुभ काम को शुरू कर देते हैं... लेकिन हैं... आगर ये काम तुम बुधवार यानी पारसो के दिन शुरू करो तो बहुत उत्तम समय होगा ये इसके लिए।
जानकी एल: हा तो स्वामी जी कोई बात नहीं हम ये शुभारम्भ परसो के दिन से ही करेंगे, परसो मैं हवन की तयारी करवा देता हूं। आप परसो आ जाए।
स्वामी जी: अरे जानकी तुम तो जाने ही मेरा समय कितना किमती है मैं परसो के दिन यहां पर नहीं आ पाउंगा। तुम लोगो को ही मेरे मठ पर आना परेडा, हवन के लिए।
जानकी एल: कोई बात नहीं स्वामी जी हम लोग परसो के दिल हम लोग आ जाएंगे मठ पर।
स्वामी जी: ये उत्तम रहेगा क्यो की वहा अबो हवा अनुकुल है हवा के लिए।
ठीक है स्वामी जी हम लोग परसो के दिन आपके मठ पर आ रहे हैं।
उसके बाद जानकी ने अपने नौकरी से कहा की स्वामी जी के साथ आए सभी लोगो को वो भोजन करा दे। और खुद स्वामी जी से बोले:
जानकी एल: चलिये स्वामी जी अंदर चलिये, भोजन कर लिजिये।
जानकी एल: सुनती हो! बहू को बोलो की वो स्वामी जी को भोजन खुद अपने हाथों से परोस।
कांता की सासु: ठीक है (और वो कांता से जाकर बोली, बेटी स्वामी जी को भोजन करा दो, अगर उनका आशीर्वाद मिल गया तो तारक्की ही तारकी होगी तुम्हारी, बहुत पहले हुई है ये स्वामी जी: (कांटा खाने के थाल और खाली प्लेट) और कटोरी स्वामी जी के आगे लगा कर उन्हे खाना परोसने लगी। क्या वक्त वो जमीं पर बैठी हुई थी क्योकिन स्वामी जी केवल भूमि पर बैठा के ही खाना खाते थे) स्वामी जी की नजरे भोजन परोस रही कांता के गद्ररे जिस्म का जायजा ले रही थी . तबी कांता ने अपने हाथ जोडखर अगरः किया:
कांता : भोजन किजिये स्वामी जी :
स्वामी जी: हा बेटी ……… और खाने के पहला निवाला अपने मुह में डाला। और सहा बोले उठे ......... वह्ह्ह्ह्ह्ह ... बड़ा ही स्वाधिष्ठ भोजन है। कांता की सास के मुह पर के सतुषी की मुस्कान फेल गई। कुछ डेर बाद स्वामीजी जी ने भोजन कर लिया तो स्वामी जी का हाथ धुलाने के कांता पानी के जग से उनके हाथों पर पानी गिरा रही थी। समय स्वामी जी बैठे हुए थे और कांता झुकी हुई थी। जिस्के करण उसका दुपट्टा हवा में लटक गया था और उसके कमीज से दो सफेद अनार दिखाये देने लगे। क्या बाद स्वामी जी उन जोबन को आराम से पूरी तन्मयता के साथ अपनी नज़रो से तोल रहे थे। उसके मस्त जोबन को देख कर पानी की बजे दूध पीने की मन करने लगा। स्वामी जी का हाथ तो धुल चुका था लेकिन मन का मेल बढ़ा ही जा रहा था। स्वामी के नीच का अंग अब हल्के से अपना सर उठान लगा। वो दिमाग से बगावत कर बैठा आगर स्वामी जी अपनी नजरो को कांटा के कयामत वाले स्टानो से नहीं हटाते। हाथ धोने के बाद स्वामी जी को कांटा ने नैपकिन दिया हाथ पोचने के लिए। उसे बाद स्वामी जी कुसरी पर बैठे हुए कहा:
स्वामी जी: जानकी एल: अब भोजन तो हो गया, अब हमें मत चलना चाहिए कफी डर हो गया है।
जांडी लाल: जी स्वामी जी, हम लोग परसो के दिन आपके दर्शन कर मठ में आएंगे, वही पर हवन होगा।
स्वामी जी: हा ये सर्वथा उचित रहेगा:
फिर जाते समय जानकी लाल ने स्वामी के जोड़ी चुये, उसके बाद उसकी पत्नी और उसके बाद कांता जैसे ही जोड़ी चुने के लिए झुकी स्वामी जी की नजर फिर उन गोलाईयो पर फिसल्ने लगी है बाद कांता की नजर पर समाज गई की वो वाली घाटी चिकनाई फिसाल रहे है। तबी स्वामी जी ने अपना था कांता के कड़ा पर रखा और हल्के से सहलाते हुए का प्रयोग करें और बोले पुत्रवती भव और मुस्कान कर चल दिए। जानकी लाल स्वामी जी के पीछे-2 उन्को बहार तक छोने के लिए निकल लिए। कांता और उसकी सास उन्हे जाते हुए देख रही थी। तबी कांता की सास ने कहा की बेटी तुम ठक गई तुम अपने बेडरूम में आराम करो मैं तुम्हारा खाना ऊपर ही भीजवा देती हूं:
कांता ने सहमति में अपना सर हिलाया:
फूलवा: लिजिये छोटी मल्किन खाना खा लिजिये (कांटा यूज खाना पास की मेरे पर रखने का इशारा करता है। फूलवा खाना पास के मेरे पर रख देता है और जाने के लिए मुदती है, तबी यूज कांता रोक लेति है, और वही पर बैठने का इशारा करता है, फूलवा नीच बीच हुए कालिन पर बैठ जाती है तो कांता उस से कहती है
कांता: हैं फूलवा नीच क्यो बैठी हुई हो। ऊपर कुर्सी पर बैठा जा।
फूलवा: नहीं मल्किन मैं यही ठीक हूं।
कांता: मैं कहता हूं की चुप चाप कुर्सी पर बैठा जा। (बनवटी गुसे से देख कर बोलो कांता, फूलवा कालिन पर से उठ कर वही पद कुर्सी पर बैठ जाती है, कांता भी अपने बिस्तर पर बैठ कर अपने भगवान में तकिया रख लेती है और फूलवा से पूछती है)
कांता: ये स्वामी जी का मठ कहा है?
फूलवा: याहा से कोई 12-15 KM दूर है। वहा पर इनका बहुत बड़ा आश्रम है, जहां पर काई साधु, स्वामी जी के शिशु-शिष्य रहते हैं। इन्हें मिलने बड़े बड़े लोग आते हैं मठ पर। काई एकद में फैला है स्वामी जी का मठ, मठ के चारो ओर एक ऊंची सी बौदनी बनी हुई है। और एक बड़ा सारा में गेट है। जहां पर हर वक्त 4-5 साधु रहते हैं। बिना इज़ाज़त के कोई भी मठ के अंदर नहीं जा सकता है। (फूलवा ने लगभाग पुरा नक्ष खिच दिया मठ का, अपनी बातो से)
कांता: तू कभी गई है क्या वहा पर।
फूलवा: हा गई तो हूं अभी एक साल पहले वहा पर बहुत बड़ा यज्ञ हुआ था तब काई थी। हजारो की सांख्य में लोग रोज आते थे वहा। शुद्ध 7 दिनो तक चला था यज्ञ। बड़े बड़े मंत्री, पुलिस कार्यालय, नेता लोग भी आए हम यज्ञ में। जोड़ी रखने की भी ज़गह नहीं थी उस समय वहा पर। बस फिर उसके बाद नहीं जा पाई मैं वहा। क्योंकी वह बिना स्वामी जी की आज्ञा के कोई अंदर नहीं जा सकता है।
(फूलवा की बात सुनकर कांता समाज गई की स्वामी जी काफ़ी बड़े आदमी है, उनकी बहुत बहुत उंची है) फिर कांता ने फूलवा को नीचा भेज दिया और खुद खाना खाने लगी। उस्का दिमाग किसी ख्यालो में गम था। ना जाने क्या सोच रही थी वो)
अगले दिन सुबा जब वो अपने कामरे से नीचे आए तो उसे देखा की बाबू जी किसी से फोन पर बात कर रहे हैं।
जानकी लाल: हा ... हा। ... ठीक है मैं आज ही निकल जाता हूं ......... हा ..... हा ......... बिलकुल ......... अरे हा भाई ............ मैं सब मैनेज कर लुंगा ......... मुझे ये टेंडर लेना है ... कल वही आकार बात करता हूं ... ठीक है
(और फोन रख दिया, तब तक कांता नीचे आ गई थी। उसके बाल अभी थोड़े गिले द शायद नहा कर ही नीचे आई थी वो। उसे हल्के आसमानी रंग की सिल्क की सारी पेहुनी हुई और इस्तेमाल के लिए ब्लाउज भी था। ब्लाउज मी से उसकी ब्रा की झलक साफ दिखाई दे रही थी, जो की क्रीम रंग का था। आते ही उसे झुक कर अपने ससुर के पाओ छूए, जानकी लाल उसे कंधे पकाड़ के उठते हुए बोले)
जानकी लाल: अरे बेटी बस बस..... जीते रहो, आओ तुम भी नास्तिक कर लो।
और दोदो पास की डाइनिंग टेबल पर बैठे गए, तबी कांता की सासु मां भी वहा आ गई। तीनो मिल कर नशा करने लगे।)
जानकी लाल: अरे हा। बेटी कल आज मुझे दोफर बाद दिल्ली के लिए निकलना है। अभी विजय का फोन आया था। वो बता रहा था की वहा पर कोई फैक्ट्री है जो की फ्रूट जूस बनाती है। वो अपने आमो के बागान का सलाना कॉन्ट्रैक्ट लेना चाहता है। इसी सिलसिला में मुझे दिल्ली जाना है। अगर तु अनुबंध पक्का हो गया तो दो सालो के अनुबंध में बहुत अच्छा मुनाफा हो जाएगा। बस किसी तरह ये कॉन्ट्रैक्ट हम मिल जाए
कांता: ठीक है ........ तबी कांता की सास बोली
कांता की सास: क्या ठीक है? और तुम भी ......... इतनी जलदी क्या है जाने की ... कल हवन करना है। और तुम हो की कह रहे हो की मैं आज दिल्ली जा रहा हूं....
जानकी लाल : अरे तुम्हारे तो कुछ समझ ही नहीं आता! पता है तुम्हें ये करोडो का कॉन्ट्रैक्ट है। अगर हमें मिल गया तो पैसे की तो जैसे बरसात ही हो जाएंगे तुम्हारे ऊपर। और तुम कह रही हो की मत जाओ.... अरे बेटी तुम ही समझो अपनी सासु मां को..
कांता: माँ जी ...... बाबू जी ठीक है तो कह रहे हैं। आखिर बिजनेस भी तो जरूरी है। और रही बात हवन की सो आप तो है ही। हम दोनो साथ चल लेंगे।
जानकी लाल: हा......... और क्या। ये ठीक है
सासु मां: ठीक है जैसा तुम्हें ठीक लगे …… करो।
(दोपहर के 2 बज रहे हैं। जानकी लाल का ड्राइवर जानकी लाल का सूट केस कार की डिग्गी में रख रहा था। जानकी लाल उनकी पत्नी और कांता सभी हवेली के मुख्य द्वार पर खड़े थे। तब तक ड्राइवर जानकी लाल का सूटकेस डिग्गी में रख चुका था)
जानकी लाल: (अपने पत्नी के ओर मुखातिब होते हुए) ठीक है मैं चलता हूं। ड्राइवर मुझे एयरपोर्ट छोड कर वापसी शाम तक आ जाएगा। कल सुबह तुम लेकर स्वामी जी के यहा चले जाना का प्रयोग करें।
जानकी लाल की पति ने सहमती में सर हिलाते हुए कहा ...... ठीक है ...... अपना ख्याल रखिएगा ......... (जानकी लाल कार की या बढ़ चले। कुछ डेर खराब कार हवेली की चार दीवारी के बहार चली गई थी दोनो वैपस हवेली के अंदर की तरफ मुड़े।
सासु मां: सुनो बहू....... अब मुझे ठकान हो रही मैं अपने ऊपर के काम में जा रही हूं आराम करने...तुम भी आराम कर लो शाम की चाय पर मिलते हैं . कांता ने हा में सर हिलाया..... और वो भी अपने बेडरूम की या बढ़ चली। वो जैसे ही सिद्धियों के 4द पैडन पर पच्चीची अचानक इस्तेमाल धड़ाम की आवाज सुना दी, और साथ ही अपने सास के बोलने की आवाज सुना दी। कांता ने तूरान पलट कर देखा की उसकी सास सीधी के पास जमीन पर गिरी हुई अपने पाओ को पके हुए दर्द से बिलबिला रही है। वो दौड़कर उसके पास पाहुची। गाल सुनकर फूलवा भी वहा आ गई थी।)
सासु माँ: हैइइइइइइइ राम ………………….. ....
कांता: घबराए मत मां जी माई अभी डॉक्टर को फोन करके बुलाते हो।
कांता दुआ कर डॉ. को फोन मिलाते हैं और तूरंत हवेली पर आने को कहती है। फिर फोन रेखकर वापस अपनी सास की ओर बढ़ जाते हैं।
कांता: (फूलवा से) हैं फूलवर जरा हाथ लगा मां जी को बिस्तर पर लेकर चलते हैं।
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फ़िर दोनो मिल्कर उसे जैसे तैसे बिस्तर तक लेकर जाते हैं और बिस्तर पर लिता देते हैं। तबी कार के हॉर्न की आवाज आती है। फूलवा मैं गेट पर जाति है और कुछ डर बाद डॉ. का फर्स्ट एड बॉक्स और साथ में डॉ. भी अंदर आता है।
डॉ.: क्या बात है ............
कांता: डॉ साहब माजी की जोड़ी अचानक सिद्धियो से फिसाल गया और वो गिर पड़ी।
(डॉ. अंदर जाता है और उनके पैरो को देखता है, फिर अपने फर्स्ट एड को बॉक्स में कुछ दावा निकलकर पर में लगा देता है, और गरम पट्टी बांध देता है, फिर कुछ और खाने की दवा कांता को देता है और इस्तेमाल कैसे देना है ये कांता को समझौता)
डॉ.: (अपने फर्स्ट एड के बॉक्स को बैंड करते हुए) घराने की कोई बात नहीं है, इनके जोड़ी में मोच आ गई है। जिस्के करण इनके पैरो में सुजान और दर्द है। अभी शाम तक इनका दर्द कम हो जाएगा। हा ................ मगर इन अब 4-5 दिन के पूरे बिस्तर पर आराम की जरूरत है। अब इन्हे 4-5 दिनो तक बिस्तर से मत उठने दिजियेगा। ........ ठीक है .... अब मैं चलता हूँ हू।
कांता : थैंक यू डॉ साहब.........
डॉ अपने सामना लेकर कार स्टार्ट कर हवेली के बहार की या चल पड़ा है। डॉ. के जाने के बाद कांता वापस अपनी सास के पास गई और उनसे बोली:
कांता: डॉ केह रहा था की आपके पेयर में मोच आ गई है अब आपको 4-5 दिन ता बेड रेस्ट करना पडेगा। (उसके बाद पानी का गिलास लेकर अपनी सास को खाने के लिए दवा दी। दवा खाने के बाद कांता का सास बिस्तर पर जाने दें)
सासु माँ: क्या बेटी अब मुझे ये समझ में नहीं आ रहा है कि कल हवन कैसा होगा?
कांटा: हवन तो बाद में भी हो सकता है। अभी आपकी देख भाल जरूरी है।
सासु मां: नाआ बेटा ना.... कल तो चलना ही पडेगा। अगर हम नहीं गए तो स्वामी जी बुरा मान जाएंगे। जानतो हो कितने बड़े बड़े लोग उनका इंतजार करते हैं? और हम से स्वामी जी ने खुद खरीदा है। और अगर हम हवन के लिए नहीं गए तो स्वामी जी को बहुत बुरा लगेगा।
कांता: लेकिन क्या हलत में आप इतने दूर का सफर कैसे कर सकती हैं?
सासु मां: तुम तो कर सकती हो न बहू! ऐसा करो तुम अकेले ही चले जाऊऊ वही पर ड्राइवर को लेकर।
कांता: मैं अकेले....... नहीं मां जी इतने दूर अकेले......... और पहली कभी मैं वह गई भी तो नहीं हू।
सासु माँ: तो क्या हुआ बहू...... ड्राइवर ने देखा है रास्ता....... वो ले जाएगा तुम्हें याह। वैसा भी ये हवन तुम्हारे लिए हैं... सो मेरा जाना इतना जरूरी नहीं है लेकिन अगर तुम ना गए तो ये ठीक नहीं होगा।
कांता: ठीक है माजी आप इतना ज़िद कर रही है तो मैं कल चली जाऊंगी। अब आप आराम किजिये।
(अगले दिन सुबाह कांता जलदी ही उठ जाति है और न धोकर तयार हो जाती है। उसे आज लाल रंग की सारी पहचान हुई थी। उसकी को मैच करता हुआ ब्लाउज। जो की काफी गहरे गले का था उसके स्टेन को ऊपर का पूरा ही देखा। रहा था उसके ब्लाउज से। उसके ब्लाउज का बनवट कुछ ऐसी थी की उसके दोनो चूचिया ऊपर कर सामने की तरफ बहार की या निकलती हुई प्रीत हो रही थी। उसे सारी का आंचल अपने देखने पर इस तरह रखा की जब तक आंचल नहीं नफरत उसका सामना किसी को नज़र नहीं आ सकता था। होथो पर हल्की इस सूची में लगी हुई थी। जो उसके कामुक होथो को और कामुक बना रही थी। उसने के उंचे हिल की संले पहनी हुई थी जिस से निकल गई थी बाहर,
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