MY love family Sex Stories PART 2

 


सोनू अपने हाथो से उसके गांड को मसलते हुए-- हाय ये बड़ी अम्मा तेरी मोटी गांड देखकर शरम भुल गया, देख ना कैसे मेरा लंड फड़फड़ा रहा है, तेरी बुर के लिये,


सुनहरी-- आह बेटा, ऐसा मत कर सब निचे बैठे है,

सोनू-- अपनी साड़ी उठा के झुक जा ना बड़ी अम्मा जल्दी से चोद लू तुझे,

सुनहरी-- नही तू बेरहम है, तू मेरी चोद चोद के हालत खराब कर देगा, उस तीन रात को जब तू मेरी चुचींया बेरहमी से मसल रहा था, तभी मै जान गयी थी की तू रहम करने वालो में से नही है,


सोनू-- नही बड़ी अम्मा, आराम आराम से चोदूगा तूझे,


तभी निचे आवाज आती है, दिदी अरे ओ दीदी कहा हो तुम,

सुनहरी अपने आप को सोनू से छुड़ाती हुइ और हंसते हुए निचे भाग जाती है,


सोनू मन में- भाग साली कीतना भागेगी एक दीन तो तेरी बुर मैं ऐसे फाड़ुगां की तुझे पता चलेगा,


और फीर सोनू भी छत से नीचे आ जाता है,



बेचन अपनी औरत झुमरी के पास बैठा था,


बेचन-- कुछ आराम है, झुमरी

झुमरी-- हां डाक्टर साहीबा ने जब से दवा दीया है, आराम है,


बेचन--चल ठीक है कल अस्पताल चल कर एक बार डाक्टर साहिबा को दीखा देंगें॥


तभी बेचन की बेटी सीमा वहा आ जाती है,

(सीमा को बचपन से पोलीयो हुआ था, उसके सारे अग तो कमाल के थे, उसकी बड़ी बड़ी गोरी चुचीया, बड़ी और चौड़ी गांड, बस खाली उसके पैरों का विकास नही हुआ)


सीमा--बापू अब अम्मा की तबीयत कैसी है, वो निचे ज़मीन पर बैठे बैठे चल रही थी, और अपने बापू के करीब आ गयी,


बेचन-- अब थोड़ा ठीक है, कल एक बार अस्पताल मे दिखाने ले कर जाना है,


सीमा-- अच्छा बापू,


बेचन-- ये लो फीर से बारीश होने लगी,

सीमा-- हा बापू दो तीन दीन से तो मौसम ही खराब हो गया है,


अंधेरा होने लगा था, और ठंडी अपनी औकात पर थी, बेचन घर के ओसार में अपने औरत के पास बैठा था, और उसकी बेटी सीमा नीचे जमीन पर बैठी थी,


बेचन 40 साल का आदमी पिछले कुछ दीनो से उसकी औरत झुमरी की तबियत खराब होने के वजह से उसे चोद नही पा रहा था, उसका लंड भी सो चुका था,

तभी उसकी नज़र सीमा की बड़ी बड़ी चुचीयों पर पड़ी जो उसके कमीज मे कसी हुइ थी,


तभी बेचन की मां वहां आ जाती है,

सुखीया(बेचन की मां-- अरे बेचन झुमरी को उठा खाना बना ली हैं मैने चलो सब लोग खा लो,


बेचन- ठीक है मां, और वो झुमरी को उठाता है,

झूमरी उठ कर बैठ जाती है, सुखीया उसे खाना दे देती है,


सुखीया-- सीपा तू जमीन पर ही खायेगी क्या, बेचन बेटा इसे उठा कर खाट पर बिठा जरा,


बेचन जैसे ही सीमा को गोद में उठाता है, वैसे ही बीजली चली जाती है,

सुखीया-- हे भगवान ये बिजली भी रोज यही समय पर जाती है, रुक मैं लालटेन लेके आती हू,


बेचन सीमा को अपनी बाहों मे उठाये वैसे ही खड़ा था, सीमा की बड़ी बड़ी चुचीयां बेचन के सीने पर दबी थी, जिससे बेचन का सोया हुआ लंड खड़ा होने लगता है,


सीमा बेचन के कान में-- बापू मुझे कब तक गोद में लीये रहोगे, निचे उतारो ना।


बेचन उसे गोद में लिये खाट पर बैठ जाता है, और उसके कान में कहता है,


बेचन-- बीटीया मैं तुझे जिदंगी भर गोद में लिये रहना चाहता हूं॥


सीमा बेचन के कान में-- तो लीये रहो ना बापू मना कीसने कीया है,


इतना सुनते ही बेचन का लंड फड़फड़ा कर खड़ा हो जाता है,


वो खाट पर बैठे अपना मुह सीमा के मुह में सटा देता है, उसे ताज्जुब होने लगता है, की सीमा खुद उसके मुह को जोर जोर से अपने मुह में भर कर चुसने लगती है,


तभी सुखीया लालटेन लेकर आ जाती है, बेचन और सीमा दोनो एक दुसरे में खोये हुए थे, उन दोनो को इतना भी नही पता की सुखीया आ चुकी है,


सुखीया जोर से-- बेचन,

बेचन हकपकाया और सीमा को अपने बगल खाट में बिठा कर उठ जाता है,


अच्छा हुआ झुमरी वापस से रज़ाइ ओढ़ कर लेट गयी थी, और वो ये सब नही देखी,


बेचन अपना सर झुकाये, वही खड़ा रहता है,




बेचन अपना सर झुकाये, वही खड़ा रहता है,

सुखीया-- अब खड़ा ही रहेगा या झुमरी को उठायेगा, और वो बेचन और सीमा को गुस्से से देखने लगती है,


बेचन झुमरी को उठाता है, और फीर सब लोग खाना खाते है....और फीर बिस्तर पर चले जाते है॥




आधी रात को सोनू की निंद खुलती है, तो पाता है की कोइ औरत उसके उपर लेटी उसके कान में सोनू उठ बेटा धिरे धिरे बोल रही थी,


सोनू-- तू आ गयी बड़ी अम्मा,

सुनहरी-- हां आ गयी,


सोनू सुनहरी की गांड पर जोर का थप्पड़ जड़ देता है,


सुनहरी-- आह बेरहम धिरे, नही तो फिर कोई आ जायेगा,


सोनू-- साली, मादरचोद पहले ये बता की तु छत पर से भागी क्यू थी,

सुनहरी सोनू के गाल पर चुमते हुए-- अरे मेरे राजा , तभी सब घर पर थे,


सोनू सुनहरी के बालो को कसकर खीचता हुआ, एक जोर का थप्पड़ उसके गाल पर जड़ देता है,


सुनहरी-- आह, बेटा

सोनू-- कुतीया बोल अब कभी भागेगी,

सुनहरी-- नही बेटा, मेरे बाल आह, दर्द हो रहा है,


सोनू-- सुन कुतीया, कल दोपहर को सोहन के घर आ जाना वही चोदूगां तुझे,


सुनहरी-- मुझे अभी तेरा लंड चाहीये, बहुत दिन से लंड नही गया है मेरी बुर मे,


सोनू-- तू यहां मेरा लंड नही ले पायेगी, कुतीया जैसी चिल्लायेगी तो सब उठ जायेगें,


सुनहरी-- मुझे कुछ नही पता मुझे अभी तेरा लंड चाहीये,

सोनू- साली तूझे लंड चाहीए , चल नंगी हो जा फीर


सुनहरी झट से अपने साड़ी खोल देती है, और नंगी हो जाती है,

सोनू भी अपनी लूगीं उतार कर नगां हो जाता है,


सोनू सुनहरी को खाट पर लिटा देता है, और उसके दोनो टांगे चौड़ी कर हवा में उठा देता है, रात के अंधेरे में कुछ दिख नही रहा था,


सुनहरी -- फाड़ दे बेटा अपनी बड़ी अम्मा की बुर,

सोनू उसकी टांगे उपर की तरह मोड़ता अपना लंड सुनहरी के बुर पर टीकाता है, और सुनहरी को मजबुती से पकड़ अपना मुह उसके मुह मे जकड़ कर जोर का धक्का मारता है,


सुनहरी को बुर खुलती जाती है, वो छटपटा भी रही थी लेकीन सोनू उसे मजबुती से पकड़े धक्के पर धक्का लगा रहा था, सुनहरी के नाक और मुह से जोर जोर से गूं गु गु की आवाज आ रही थी,


सोनू उसे जोर जोर से रात के अंधेरे मे चोद रहा था, और सुनहरी अपनी टागें उठाये सोनू का मोटा लंड झेल रही थी,

पुरे कमरे में खाट की आवाज़ और सुनहरी के पैरों के पायल की आवाजे आ रही थी,


सोनू अपना लंड पेले जा रहा था, तभी सुनहरी की बुर उसके लंड को जकड़ने लगी शायद सुनहरी झड़ रही थी, लेकीन सोनू उसे चोदता गया,


करीब 10 मिनट और चोदता रहा सुनहरी की बुर सोनू के लंड को दो बार और जकड़ी फीर अंत मे सोनू अपना लंड पुरा निकाल सुनहरी के बुर मे जोर का धक्का लगाते अपना पुरा गाढ़ा पानी उसके बुर में भरने लगता है,


अपना पुरा पानी नीकालने के बाद सोनू उसके उपर ही गीर जाता है,


सुनहरी-- आह मां, सोनू बेटा मेरी बुर तुने फाड़ डाली रे, कीतना बड़ा और मोटा है, ऐसा मज़ा तो मुझे आज तक नही आया था,


सोनू-- साली तेरी बुर भी तो कसी कसी थी,

सुनहरी-- आह बेटा, तेरी मा की बुर मुझसे भी कसी है,

सोनू-- चुप कर रंडी, वो मेरी मां है,


सुनहरी-- अरे बेरहम, ऐसे चोदेगा तो सारी औरते तेरी रंडी ही बनेगी,


सोनू-- चल जा अब कल आ जाना सोहन के घर पर,

सुनहरी-- सोनू के गाल पर चुमती है, और कपड़े पहन अपने कमरे में चली जाती है....॥



सुबह सुनहरी आंख खुली वो जैसे ही खाट पर से उठ रही थी, उसके बुर में उसे दर्द महसूस हुआ, वो उठकर मुतने के लीये आगंन की ओर जाने लगी,

वो भचक भचक कर चल रही थी, तभी आगन मे झाड़ू लगाती सुनीता की नज़र सुनहरी पर पड़ी,


सुनीता--क्यां हुआ दीदी , ऐसे क्यू चल रही हो?

सुनहरी को कुछ समझ में नही आ रहा था की, क्या बहाना मारे


सुनहरी-- पता नही क्यूं, एड़ीयो में दर्द सी उठ रही है,

सुनीता-- लगता है, मोच आ गयी है,

सुनहरी-- हां मुझे भी यही लग रहा है, और कहकर अपनी साड़ी उठाकर आग्न के नरदे के पास बैठ मुतने लगती है,



सोनू की निदं तब खुलती है, जब उसे कस्तुरी जगाने जाती है, सोनू उठकर बाहर आता है, और हाथ मुह धो के वही बाहर बैठ जाता है,

सुबह के 10 बज गये थे, लेकीन अभी तक ओस की चादर ओढ़े दीन नही निकला था, गलन इतनी ज्यादा थी की, सोनू को घर के अंदर वापस आना पड़ा।


सोनू जैसे ही ओसार में आता है, घर की चारो औरतें आग के पास बैठी हाथ सेंक रही थी,


सोनू भी एक कम्बल ओढ़ कर खाट पर बैठ जाता है, सुनहरी की नज़र जैसे ही सोनू से टकराती है, वो शर्मा जाती है,



तभी बाहर बादल गरजने लगता है,

कस्तुरी-- ये लो दीदी, कुछ देर में फीर से बारीश चालू हो जायेगी,


सोनू मन में-- अरे यार सोनू, तुझे यहां तो कुछ मिलने वाला नही है, पुरे दीन ये लोग साथ में ही बैठी रहेगी, एक तो मौसम भी खराब है, तो ये लोग घर से बाहर भी नही निकलेगीं,


मुझे अभी सोहन के घर निकलना होगा, फीर पुरे दीन उसकी गांड मारने का मजा लूगां,


यही सोचते सोचते वो खाट पर से उठा, और पैर मे चप्पल डालता हुआ बाहर निकल जाता है,...


रास्ते में चलते चलते अचानक से बारीश होने लगती है, वो भागकर जल्दी से सोहन के घर मे घुस जाता है,


सोहन घर पर लेटा हुआ था, उसने जैसे ही सोनू को देखा उसकी आखो में चमक आ गयी,


सोहन-- क्या बात है, आज मेरे राजा को मेरे घर की याद कैसे आ गयी,


सोनू-- सोनी मेरी जान तेरे घर की नही, तेरी गांड की याद आ गयी,


सोहन-- हाय रे, परसो रात भर मेरी गांड मार कर मन नही भरा,


सोनू-- तेरी गांड से मन नही भरेगा रे, साले और खाट पर लेट जाता है,


सोहन-- अपने कपड़े उतार कर नंगा हो जाता है, और सोनू का पैटं निचे खीसका देता है,


अब सोहन जैसे ही, सोनू की चड्ढ़ी खीसकाता है, उसका मोटा लंड फनफनाने लगता है,


सोनू का लंड सोहन चुसने लगता है, तभी अचानक से घर का दरवाजा खुलता है, सामने मालती अपने हाथो में कपड़े लिये खड़ी थी, वो पूरी भीग गयी थी, मालती को देख दोनो के रंग उड़ जाते है,


मालती--हाय राम ये क्या कर रहे हो आप लोग,

सोहन उठ कर दरवाजा बंद कर देता है,


सोहन--देख म...मालती, तू कीसी को कुछ बताना मत,

मालती-- अरे सोहन भाइ, सोनू तो अभी बच्चा है, कम से कम आप तो समझते थे,


सोहन-- मालती देख, मै मर्द नही हू, बल्की एक हिंजड़ा हू,

मालती अपनी नज़र निचे सोहन के लंड पर गड़ाती है. तो हैरान हो जाती है,


मालती-- थोड़ा हसते हुए, हा रे तु तो सच में,

सोहन--तो तू ही बता, सब मजे करते है, थोड़ा सा मैने कर लीया तो क्या गलत कीया,


मालती-- अच्छा ठीक है, मैं कीसी को नही बताउगीं, और सोनू के लंड की तरफ देखने लगती है,


मालती-- अरे सोनू अब अपना वो तोपेगा भी,

सोनू-- मालती काकी एक बार कर लू, फिर तोपूगा॥


मालती-- हे भगवान तू कीतना बिगड़ गया चल तेरी मां को बताती हू,


सोनू--ठीक है काकी , बता देना पहले दरवाजा तो बंद कर दे,


मालती-- मुझे जाने दे, फीर जो करना है वो करना,


सोनू--तो फीर जा ना काकी,

मालती-- देख नही रहा बारीश हो रही है,


सोनू-- तो ठीक है तू बारिश रुकने का इतजांर कर, तब तक मै, इसे लेता हु।


मालती-- कीतना कमीना है,


सोनू-- चल आ जा साले, और चुस इसे।


सोहन फट से खाट पर चढ़ जाता है, और सोनू के लंड को अपने मुह में डालकर चुसने लगता है,


मालती चुपके चुपके उन दोनो को देख रही थी, मालती की आंखे तब फटती है जब सोनू का सोया लंड अपने आकार में आता है,


मालती मन मे-- हे भगवान, इसका लंड है या घोड़े का,


सोनू को पता था की मालती ये सब बगल नजरो से देख रही है,


सोनू-- चुस साले, मादरचोद, हा ऐसे ही चुस मजा आ रहा है, भोसड़ी के,


सोहन और जोर से लंड चुसने लगता है,


अब मालती की भी हालत खराब होने लगी थी, मालती की बुर भी फड़फड़ाने लगी थी,


सोनू-- चल भोसड़ी, गांड खोल और झुक जा,

सोहन ने खाट पकड़ कर अपनी गाडं पीछे की तरफ उठा दीया,

सोनू सोहन के पिछे आता है, और उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है,



सोनू-- मालती काकी देख मैं इसकी गांड कैसे मारता हू,

मालती-- मुझे नही देखना, तू ही कर ऐसे गंदे काम,

सोनू-- अच्छा थोड़ा अपने मुह में ले के गीला कर दे इसे, नही तो इसे बहुत तकलीफ होगी,


मालती-- मै भल क्यूं मुह में लेने लगी,

सोनू-- सोनी मेरी जान, तू कुछ बोलेगा या, डालू तेरे गांड मे,


सोहन-- मालती गीला कर दे, नही तो बड़ी बे रहमी से गांड मारेगा ये,


मालती-- मैं नही लूगीं इसका मोटा मुसल,


सोहन--मालती मेरे खातीर एक बार डाल ले ना मुह में,


मालती-- नही मैं नही लूगीं,


सोनू सोहन के गांड पर एक थप्पड़ लगाता हुआ अपना लंड उसके गांड के सुराख पर रख देता है, और उसकी कमर पकड़े जोर का धक्का मारता है, और पुरा लंड सरसराता घुस जाता है,


सोहन चिल्लाते हुए खाट पर गिर जाता है, लेकीन सोनू उसके उपर चढ़ जातअ है, और जोर जोर से उसकी गांड मारने लगता है,



सोहन इतना जोर जोर चिल्ला रहा था, की मालती की हालत खराब होने लगी, उसका दिल की एक बार ये चुदाइ देखने का,


उसने पिछे मुड़ कर देखा तो उसकी आंखे फटी रह गयी, सोनू का लबां और मोटा लंड सटासट उसके गांड मे घुस रहा था, और सोहन की गांड चोड़ी हो गयी थी,


सोहन की गांड का होल इतना बड़ा हो गया था की मालती वही देख कर उसका बुर पानी छोड़ने लगी, और इधर सोनू ने भी अपना पानी उसके गांड मे छोड़ दीया,

पुरा पानी छोड़ने के बाद वो सोहन के गांड पर एक थप्पड़ मारता है, और बोला चल सोनी रानी मैं जाता हू, बाद मे फीर आ

उगा, और तेरी गांड और बुरी तरह फाड़ुगां,


सोहन अभी भी रो रहा था,

सोनू-- चलो काकी चलते है,


मालती-- हा च...चल,



रास्ते में मालती के दिमाग मे वही दृशय आ रहा था, कैसे सोनू का लंड उसके गाड को बुरी तरह फाड़ रहा था,


सोनू-- क्या हुआ काकी कुछ सोच रही हो,

मालती-- न...नही बेटा,

सोनू-- कैसी लगी मेरी गांड मराई,


मालती--धत बेशरम मुझसे क्या पुछता है,

सोनू-- कसम से काकी , साले की गांड बहुत कसी थी,


मालती-- इसीलीये इतनी बुरी तरह कर रहा था,

सोनू-- मैं तो ऐसे ही करता हू काकी, कभी तू भी करवा ले मुझसे एक बार,


मालती-- नही रे बाबा मुझे मरना थोड़ी है, तेरे मुसल से॥


सोनू-- कसम से काकी तेरी गांड और बड़ी अम्मा की गांड क्या मजा आयेगा,


मालती-- अपनी बड़ी मां की भी गांड देखता है तू, शरम नही आती,


सोनू-- अगर शरम करता तो कल रात को उसको कैसे चोदता,


मालती-- हाय राम तुने अपनी बड़ी मां को भी,


सोनू-- हा, काकी अब बस तुझे चोदने का मन हो रहा है,


मालती-- मुझे नही चुदाना है, (हालाकी मालती की बुर तो कब से तैयार थी सोनू के लंड के लीये लेकीन मालती इतनी जल्दी नही देना चाहती थी)


सोनू-- सोच ले काकी, अगर मेरा मन हट गया तो तुझे देखुगां तक नही,


मालती-- मत देख मेरा क्या?


सोनू--ठीक है, तो तू ऐसे ही मस्त रह मै चला अब नही आंउगां तेरी गलीयो में, और सोनू चला जाता है॥


मालती हसते हुए-- बदमाश कही कां, और वो भी अपने रास्ते चल देती है,



सोनू अपने घर की तरफ चला आता है, तभी गांव के पुलीया पर एक 19 साल की लड़की खड़ी अपनी दोनो बाहे फैलाये आख बंद कर सांस ले रही थी,


सोनू इतनी खुबसुरत लड़की आज तक कभी नही देखी थी, देवा वही खड़े उसे एकटक देखता रहता है,


तभी उस लड़की की नज़र सोनू पर पड़ती है,


तभी उस लड़की की नज़र सोनू पर पड़ती है,


लड़की--हैलो, कौन हो तुम ? और मुझे ऐसे क्यूं घुर रहे हो?


सोनू-- मैडम जी पहली बात तो मैं आपको घुर नही देख रहा था, क्यूकीं आपसे खुबसुरत लड़की मैने आज तक देखी नही, और दुसरी बात ये की मैं कौन हू तो मै तो इसी गांव का रहने वाला हू, आप नयी नयी दीख रही है इस गांव में,


लड़की-- तुमसे मतलब, तुम अपना काम करो, मैं कौन हू ये तुम्हे जानने की जरुरत नही है,


सोनू-- अच्छा ठीक है, मैडम जब आपका दील करे तब बता देना,

लड़की-- अच्छा सुनो यहां अस्पताल कहां है,

सोनू-- बस मैडम जी थोड़ा सा आगे है,

लड़की-- अच्छा ठीक है, और वो अपनी स्कुटी चालू करती है, और चल देती है॥


सोनू-- हे भगवान इतनी खुबसुरत लड़की, हमारे गांव मे जरुर ये डाक्टर की लड़की होगी, कसम से क्या बला की खुबसुरत है,

और यही सोचते सोचते वो घर की तरफ चल देता है,



पारुल अस्पताल में अपने चेयर पर बैठी थी, सामने बेचन और झुमरी बैठे थे,


तभी आवाज आती है, हाय मॉम,

पारुल अपनी नजर उठा कर देखती है, सामने उसे एक लड़की दिखती है,


पारुल-- हाय बेटा,


पारुल-- बेचन जी ये मेरी बेटी वैभवी है,

बेचन-- नमस्ते बिटीया,

वैभवी-- नमस्ते अंकल,


बेचन-- डाक्टर साहिबा, बिटीया पढ़ाइ करती है,

पारुल-- जी बेचन जी, मुबंइ में ही पढ़ती है, कालेज की छुट्टी है, तो घुमने आइ है,


बेचन-- जी अच्छा, बिटीया गांव में थोड़ा सभंल कर रहना यहा के लड़के थोड़े हरामी है,


वैभवी-- अरे क्या बच कर रहु काका, एक सरफीरा मिला भी था रास्ते में घुर घुर कर देख रहा था,


बेचन- बिटीया मुझे बताना, मैं उसकी खबर लूगां


वैभवी-- ठीक है काका, अगर अब दीखा तो आपको जरुर बताउगीं


बेचन-- अच्छा डाक्टर साहीबा हम चलते है,

पारुल-- ठीक है, बेचन जी,


और फीर बेचन और झुमरी चले जाते है.....


पारुल-- अरे बेटा, कौन था वो लड़का जो तुझे घुर घुर कर देख रहा था॥

वैभवी-- अरे मां मुझे कैसे पता होगा की वो कौन था, मैं यहा सालो से थोड़ी रह रही हूं॥


पारुल-- कुछ बोला तो नही, तुझे

वैभवी (पागल कर देने वाली अदाओ से)-- तारी...फ़ कर रहा था आपकी बेटी की, बोल रहा था इतनी खुबसुरत लड़की आज तक नही देखी मैने,


पारुल-- आह बेटा तेरी ये अदाये थोड़ा कम कर , कही दो चार लड़के मर ना जाये,


वैभवी-- वैसे आप भी कुछ कम नही है, मॉम


पारुल शर्मा जाती है....और वैभवी हसने लगती है.,


॥सोनू जैस ही घर पहुंचता है, घर में उसे सब बैठे हुए मीलते है, और राजू भी आ गया था।

सुनीता-- कहां था तू? सुबह से नीकला था, और अभी आ रहा है, (सुनीता थोड़े गुस्से में)


सोनू अपनी मां को गुस्सा हुता देख उसकी फट जाती है,


सोनू थोड़ा डरते हुए-- वो...वो मां मैं थोड़ा सोहन काका के यहां गया था..।


सुनीता-- चल ठीक है, ज्यादा इधर उधर मत घुमा कर,। "खाना खा ले और कब से भैंस चिल्ला रही हैं लगता है, गरम हो गयी है, तू खाना खाने के बाद भैंस को भानू काका के घर ले के जा। और सुनीता बोलते हुए कस्तुरी को आवाज़ लगाती है, की खाना ले के आ जाये,


+सोनू को अपनी मां का गुस्सा शांत होते देख उसके जी में जी आता है।


"तब तक कस्तुरी खाना ले के आ जाती है, और सोनू को देती है,


सोनू (खाना खाते हुए)-- मां इतनी ठंडी में भैस कैसे गरम हो गयी? लगता है उसे ठंढी लग गयी है। और उसे बुखार हो गया है, तो डाक्टर को बुला लाता हूं, भैंस को भानू काका के यंहा क्यूं ले के जाना?


'ये सुनकर पास में खड़ी कस्तुरी, अनिता और सुनीता तीनो हंसने लगती है।


तभी राजू-- अरे भइया, भैंस 'गरम' हो गयी मतलब उसे भानू काका के साँड के पास ले जाना है,


इतना सुनना था की सुनीता कस्तुरी और अनिता अपस में एक दुसरे को देखते शरमा जाती है।


सुनीता-- देख राजू बेटा कीतना सयाना हो गया, और तू रह गया बुद्धु का बुद्धु। खेत में काम कर कर के तू बैल बुद्धी बन गया है, कुछ सीख राजू से।


सोनू कुछ नही बोलता और खाना खाने के बाद भैंस को खुटे में से खोल चल देता है....


कस्तुरी-- अरे वाह मेरा राजू बेटा तो कीतना समझदार हो गया हैं 'क्यू दीदी?

सुनीता-- हां अरे राजू बेटा थोड़ा अपने भइया को भी कुछ सीखा दीया कर।


राजू शरमा जाता है और घर से बाहर नीकल जाता है,


कस्तूरी--ये सब तुम्हारी गलती है, दीदी।

सुनीता--मेरी क्या गलती है,


कस्तुरी-- सोनू बेटा 19 साल का हो गया लेकीन अभी है अनाड़ी का अनाड़ी,

सुनीता-- अरे एक बार उसकी शादी हो जायेगी तो सब सीख जायेगा, तू भी बेमतलब का परेशान हो रही है,


कस्तुरी-- अरे दीदी अपने राजू की उमर देखो, कीतना कुछ सीख गया, है। और सच कहु तो अपने सोनू के उमर के लड़के तो लड़कीयो की छेंद खोलने लगते है,


सुनीता-- बस कर, तू भी कीतनी बेशरम है।


कस्तुरी (धिरे से)-- अरे दिदी सच कह रही हू, मुझे तो लगता हैं अपना राजू भी छेंद का मजा ले चुका है।


ये सुनते ही सुनीता का गला सुखने लगता है...


सुनीता-- क...क्या बोल रही है?

कस्तुरी-- अरे हा दिदी, मुझे लगता है, राजू का चक्कर उसकी मामी कुमकुम से चल रहा है,


सुनीता (आश्चर्य से)-- क्या बोल रही है तू,?


कस्तुरी-- सच में दीदी, वो जब पिछले महीने आयी थी तो सोनू उसके पास ही सोता था, "एक रात मेरी निदं खुली तो मुझे उसकी आवाज सुनाइ दी।


सुनीता और अनिता की आखें फटी की फटी रह गयी॥


सुनीता-- क....कैसी आवाज़?


कस्तुरी-- "उस रात मुझे पेशाब लगी तो मैं उठ कर आंगन में जा रही थी, तभी मुझे कुमकुम के खाट पर से उसकी आवाज़ें सुनाइ दी, वो बोल रही थी, आह राजू मेरी बुर गीली हो गयी रे , अब डाल भी दे,


सुनीता और अनिता दोनो आश्चर्य से कस्तुरी की बात को सुने जा रही थी!


सुनीता-- हाय राम, तो तूने बड़ी दीदी को नही बताया क्या?


कस्तुरी-- सुबह होते ही बताया दीदी, लेकीन बड़ी दीदी बोली अब जवान हो रहा है, अब नही करेगा तो कब करेगा, "और वैसे भी ये सब चिजे पहले से पता होनी चाहिए नही तो शादी के बाद औरत को क्या खाक खुश कर पायेगा। फीर वही औरते बाहर ताका झाकी करने लगते है,


मैने कहां अरे दिदी शादी के बाद तो वो अपने औरत के साथ जब चाहे तब कर सकता है, भला औरत बाहर क्यू ताका झाकी करेगी,


सुनीता-- फीर.....,


कस्तुरी-- फीर क्यां दिदी बोली अरे शादी होगी कही 22 और 23 साल बाद तो जो लड़का इतने उमर में कुछ नही कीया, 23 साल के बाद वो अपनी औरत से सीखता ही रहेगा और उसकी औरत का कोइ और घुंघुरु बजा कर चला जायेगा,


कस्तुरी-- वैसे बात सही बोली, जिस लड़के को 22 साल तक कुछ पता ही ना हो वो कीतना शरमीला होगा, और औरते तो मर्द ढुढतीं है, शरमाने वाला नही।


सुनीता-- ह...हां बात तो ठीक कहा तूने,

कस्तुरी-- फीर सोनू की शादी कब करोगी दीदी, और हंसने लगती है॥


सुनीता(मुहं बनाये)-- मेरे बेटे का मज़ाक उड़ा रही है॥

कस्तुरी-- नही दिदी मैं तो ये सोच कर डर रही हू, की अपना सोनू तो इकदम अनाड़ी हैं, कोई और उसकी औरत का घुंघुरु ना,


सुनीता(बात काटती हुइ)-- चुप कर तू॥


तभी फातीमा आ जाती है( फ़ातीमा सुनीता की अच्छी सहेली है, दोनो में बहुत जमती है, पुये गांव मे सीर्फ 5 ,6 घर ही मुस्लिम था, फ़ातिमा 42 सार की खुबसुरत औरत थी, मुस्लिम होने की वजह से गोरा रंग लाज़मी था, लेकीन उसका बदन तो एकदम मस्त कर देने वाला था, बड़ी बड़ी गोल और बेहद कसी चुचीयां, गोल गोल मोटी गांड बिल्कुल सुनीता की तरह,)


पुरे गांव के जवान मर्दो की नज़र इन दो औरतो पर हमेशा रहती, सुनीता तो अपने पती के अलावा कभी कीसी के साथ सोचती भी नही, और अब जब उसका मरद इस दुनियां में नही है। तो उसकी चुदाइ की इच्छा ही जैसे खत्म हो गयी है।


फ़ातिमा का पता नही, लेकीन अगर सुनीता की सहेली थी तो जाहीर सी बात है की वो भी अच्छी औरत होगी,



फातीमा -- अरे क्या बाते हो रही है, *देवरानी और जेठानी में॥


सुनीता-- अरे आ फातीमां बैठ॥


फातीमा बैठ जाती है, तभी कस्तुरी-- कुछ नही दिदी बर सोनू को मर्द बनाने की बाते हो रही थी,


सुनीता-- चुप कर तू।


फातीमा-- मैं समझी नही॥


कस्तुरी-- ऐसे ही सोनू भी नही समझता!


फातीमा-- मतलब?


कस्तुरी-- अच्छा दिदी, अगर ये मौसम में भैंस चिल्लाये तो क्या मतलब है?


फातीमा- मतलब यही की वो गरम है, और उसे "सांड" की जरुरत है।


कस्तुरी-- हां दिदी लेकीन इनके बेटे का ख्याल कुछ अलक है।


सुनीता(कस्तुरी को घुरते)- तू चुप बैठेगी?


फातीमा-- अरे तू बता कस्तूरी, कैसा ख्याल अलग है?


कस्तुरी-- इनके बेटे का ख्याल है की, भैसं भला इतनी ठंडी में गरम कैसे होगइ, जरुर उसे बुखार हुआ है, भैस को सांड की नही डाक्टर कइ जरुरत है।


ये सुनकर फातीमा और कस्तुरी, अनिता हंसने लगते है। सुनीता मुह बना कर बैठी रहती है।


फातिमा-- कैसा अनाड़ी बेटा जना है, सुनीता ॥ इस उमर के लड़के खुद सांड की तरह अपनी भैंस ढुढतें है। और एक तेरा बेटा है...


कस्तुरी-- सब इनकी ही गलती है,

सुनीता(गुस्से में)-- मेरी क्या गलती है?


कस्तुरी-- जब देखो बेचारा खेत पर फीर खेत से घर, अरे अगर बाहर घुमता टहलता दो चार दोस्त मिलते तो सीखता नही था क्या?

लेकीन तुम्हारे डर की वजह से बेचार कभी बाहर नही जाता।


फातीमां -- अरे कोइ नही मैं सीखा दुंगी उसको थोड़ा बहुत, तू बस आज रात उसे मेरे घर भेज देना।


सुनीता-- सच में फाती मां,

फातीमा- अरे हा रे, नही तो तेरा बेटा अनाड़ी ही रह जायेगा,॥


सुनीता-- उसे बर उपर उपर ही सीखा देना, ज्यादा कुछ करने की जरुरत नही है,


फातीमा-- तू चिंता मत कर मुझे पता है, क्या करना है। चल अच्छा तो मैं चलती हूं॥ और जैसे ही जाने के लिये उठी तभी सोनू भैंस लेकर आ जाता है।


सोनू भैंस को खुटे से बांधता है, और अंदर आ जाता है,


फातीमा-- अरे सोनू बेटा तेरी भैंस भचक भचक कर क्यू चल रही है,


सोनू-- पता नही काकी, जब ले जा रहा था तो बहुत भाग रही थी, लेकीन जब से भानू काका का सांड इस पर चढ़ा तब से ये ऐसी चल रही है।


ये सुनकर सब हंसने लगते है...


फातीमा-- ऐसा ही होता है, बेटा जब सांड चढ़ता है तो चाल बदल ही जाती है...और हंसते हुए चली जाती है।


सोनू-- मां मै खेत जा रहा हूं।

सुनीता-- अरे आज मत जा, और वैसे भी शाम हो गयी है।


सोनू-- ठीक है मां॥


सुनीता-- बेटा तू मुझसे नाराज है ना।


सोनू-- नही तो मां क्यू?

सुनीता-- जो मैं तुझे हमेशा डाटती रहती हू।


सोनू-- नही मां ऐसी कोइ बात नही है।


सुनीता-- अच्छा आज तू फातीमा के यंहा रात रुक जाना।


सोनू-- क्यूं मां?

सुनीता-- अरे नही बस उसका मरद शहर गया है काम से कल आयेगा तो इसलीये॥


सोनू-- ठीक है मां॥


सोनू-- बड़ी अम्मा नही दिखाइ दे रही है।


सुनीता-- वो मायके गयी है, 10 दीन बाद आयेगीं ॥ उनकी मां की तबीयत खराब है।


सोनू-- (मन में) अरे यार एक ही तो बुर थी वो भी चली गयी, अब क्या करु...?



रात को खाना खाने के बाद सोनू फातीमा के घर की तरफ़ नीकल देता है.....।


कस्तुरी-- चलो ना दीदी थोड़ा आपके अनाड़ी बेटे का अनाड़ी पन देखते है।


सुनीता-- अरे शरम कर, तू अपने बेटे जैसे सोनू को वो सब करते देखेगी, तूझे शरम नही आती।


कस्तुरी-- अरे दिदी सिर्फ देखने को कह रही हो...करने को नही। आप रहने दो चल अनिता हम चलते है। और जैसे ही जाने को हुइ


सुनीता-- अच्छा रुक मैं भी चलती हूं॥


सोनू फातीमा के घर पहुचं गया ।


फातीमा-- आ गया बेटा॥ आ बैठ


सोनू खाट पर बैठ जाता है, और फातीमा कमरे में से निकल कर बाहर का दरवाजा बंद करने के लीये गयी ,

वो जैसे ही दरवाजा बंद करने को हुइ उसके सामने सुनीता और कस्तुरी, अनिता खड़ी दीखी।


फातीमा-- अरे तुम लोग।


कस्तुरी-- हा दीदी हम ये देखने आये थे की, कही आप हमारे बेटे सोनू को सीखाने के चक्कर मे, कुछ और ना कर दे।


फातीमा (हंसते हुए)- चलो आ जाओ अंदर


वो लोग अंदर आ जाते है,


फातीमा-- तुम लोग वो कमरे मे जाओ।


कस्तुरी-- अरे दिदी उस कमरे में से कुछ दिखेगा भी या नही,


फातीमा-- अरे सब दिखेगा। अब जाओ।


कस्तुरी-- ओ हो बड़ी उतावली हो रही हो दिदी,


सुनीता-- अब चल,

॥ और फीर वो तीनो दुसरे कमरे चली जाती है।


फातीमां कमरें में जाती है , तो देखती है सोनू खाट पर लेटा हुआ था।


फातीमा-- नीदं आ रही है क्यां सोनू बेटा?

सोनू-- नही काकी, बस ऐसे ही लेटा था।

फातीमां एक लाल कलर की सलवार कमीज पहने हुइ थी। उसके सलवार में उसकी गांड काफी कसी हुइ थी, सोनू की नजर जैसे ही उसकी बड़ी बड़ी और कसी हुइ गांड पर पड़ती है। उसका लंड सलामी देने लगता है।


तभी फातीमा सोनू के बगल में बैठ जाती है, और अपना दुपट्टा हटा कर खाट पर रख देती है।


सोनू के सामने उसकी बड़ी बड़ी गोल चुचींया जो की कमीज में से आजाद होने को चाहती थी देख कर सोनू मस्त हो जाता है।


सोनू की नज़र अभी भी उसकी चुचींयो को ही घुर रही थी।


फातीमां-- क्या देख रहा है सोनू बेटा।

सोनू (भोलू बनते हुए)-- ये आपकी कीतनी बड़ी बड़ी है।


फातीमा-- क्या बड़ी बड़ी है? बेटा

सोनू फातीमां के चुचीयों की तरफ इशारा करते हुए।


फातीमा-- अच्छा मेरी इसकी बात कर रहा है। क्यूं तुझे अच्छी नही लगी?


सोनू-- अच्छी है काकी।


फातीमा-- जब तेरी शादी होगी ना तो तेरी औरत की भी ऐसी ही होगी।


सोनू-- काकी लोग शादी करते है। तो बच्चा पैदा हो जाता है वो कैसे?


फातीमा को पता था की ये अनाड़ी है। और वैसे भी यही सब सीखाने तो सुनीता ने इसे भेजा है॥


फातीमा-- अरे सोनू बेटा सीर्फ शादी करने से बच्चे पैदा नही होते। बल्की कुछ और करना होता है।


सोनू(मन में)-- काकी आज तो तू गयी।


सोनू-- और क्या करना होता है?


फातीमा-- तुझे पता है आज जब तेरी भैंस गरम थी, तब तू उसे भानू के सांड के पास ले गया था।


सोनू-- हां काकी, पता है।


फातीमा-- तो सांड ने क्या कीया?


सोनू-- वो अपना बड़ा सा पता नही क्या नीकाला और भैसं के पीछे डाल कर धक्का मारने लगा।


फातीमा-- हां बेटा, वैसे ही जम मर्द औरत के अंदर डालकर धक्का मारता है। तब वो गर्भवती होती है।


लेकीन उससे पहले औरत को भी गरम करना पड़ता है।


सोनू--काकी ये औरत गरम कैसे होती है,


अंदर कमये में से नजारा देख रही सुनीता , कस्तुरी और अनिता।


कस्तुरी- अब बताओ फातीमा दीदी औरत गरम कैसे होती है।

सोनू-- काकी तू बता मैं समझ जाउगां॥


फातीमा अपने मन में सोचती है की सोनू तो अभी नादान है। तो वैसे भी इसको सीखाना पड़ेगा ही॥


फातीमा-- बेटा औरत को गरम करने के लीये औरत के बदन के साथ खेलना पड़ता है।


सोनू-- काकी मैं समझ नही रहा हू?

फातीमा-- अरे सोनू बेटा, औरत के जीस्म के साथ खेलना मतलब, उसकी चुम्मीया लेना। और अपनी चुचीयों की तरफ इशार करते हुए, उसका ये दबाना ये सब करने से औरत गरम होती है।


सोनू(अपना पासा फेंकते हुए)- क्या काकी तुम झूठ बोल रही है।


फातीमा-- अरे नही बेटा सच कह रही हूं॥


सोनू-- तो मैं एक बार तूझे गरम करना चाहता हू। फीर पता चलेगा काकी तू झूठ बोल रही है या सच।


ये सुनकर फातीमा असमंजस में पड़ जाती है, की ये सोनू ने क्या कह दीया ॥ भला मैं इसके साथ कैसे?


अंदर कमरे में सुनीता के साथ साथ कस्तुरी और अनीता का भी रंग उड़ चुका था।   


सोनू-- क्या हुआ काकी लगता है तू सच में झूठ बोल रही थी।


फातीमा(हकलाते हुए)-- न...नही बेटा ॥ अच्छा ठीक है तू कर ले लेकीन कीसी को भी बताना मत।


सोनू-- ठीक है काकी, नही बताउगां॥


॥ अंदर कमरे में खीड़की के पास खड़ी सुनीता बोली नही कस्तुरी ये गलत है। मुझे इसे रोकना पड़ेगा, और जैसे ही वो जाने को होती है, कस्तुरी उसका हाथ पकड़ लेती है।


कस्तुरी-- रहने दो दीदी, सोनू सीखने आया था। अब कर के सीखेगा,


सुनीता-- लेकीन!


कस्तुरी-- लेकीन वेकीन कुछ नही। आप ही चाहती थी ना की कम से कम उसे ये सब पता हो। तो आप क्यूं खेल बीगाड़ रही हो,

अब आप खड़ी रहो और अपने अनाड़ी बेटे को देखो कैसे खेलता है।


सुनीता-- अनाड़ी मत बोल मेरे बेटे को।

कस्तुरी-- अनाड़ी को अनाड़ी नही तो क्या बोलू। दुसरा कोइ होता तो अब तक फातीमा के उपर चढ़ चुका होता। और वैसे भी ये खेल के बाद पता चल ही जायेगा की सोनू बेटा अनाड़ी है या खीलाड़ी॥


सुनीता कुछ नही बोलती और चुप चाप खड़ी रहती थी क्यूकीं कहीं ना कहीं उसके बेटे की हरकते एक अनाड़ी के जैसे ही थी। वो इसी लीये कमरे मे जा रही थी ताकी वो इस खेल को रोक सके नही तो कल को यही औरतें ताना मारेगीं की तेरे बेटे को कुछ नही आता।


अंदर कमरे में खाट पर फातीमा लेटी हुइ थी।


फातीमा-- देख क्या रहा है बेटा चढ़ जा मेरे उपर।

सोनू फातीमा के उपर लेट जाता है, जैसे ही सोनू फातीमा के उपर चढ़ता है, दोनो के तन बदन में सीहरन होने लगती है।


फातीमा की तो आंखे बंद हो जाती है...लेकीन जब काफी समय से सोनू के तरफ से कोइ प्रतीक्रीया नही होती तो वो अपनी आंखे खोलती है।


फातीमा-- अब चढ़ा ही रहेगा या कुछ करेगा भी।


सोनू-- सोच रहा हूं कि कहा से शुरु करुं।


फातीमा-- या अल्लाह! इस लड़के को क्या बताउं मैं॥ बेटा तेरा जहा से मन करे वहा से शुरु कर।


सोनू की हालत तो फातीमा की चुचीयां देख कर ही खराब हो चुकी थी लेकीन वो ये अनाड़ी वाला खेल थोड़ा और देर तक खेलना चाहता था।


सोनू अपना हाथ धिरे से फातीमा की चुचीयों पर रख हल्के हल्के दबाने लगता है।


फातीमा-- आह...बेटा थोड़ा जोर से दबा...आह,

सोनू-- काकी तूझे दर्द होगा।


ये सुनकर कस्तुरी और अनीता हसं पड़ती है। सुनीता को थोड़ा भी अच्छा नही लग रहा था उसके बेटे के उपर हसंना।


फातीमा-- बेटा मर्द औरत के दर्द की परवाह नही करते, क्यूकीं औरत को दर्द में भी मजा है।


सोनू थोड़ा और तेज तेज दबाने लगता।


फातीमा-- हां....बेटा....ऐसे ही आह...दबा ,

सोनू-- काकी तेरी चुचीयां तो बड़ी बड़ी है।


फातीमा-- आह...बेटा तू..उझे...मेरी चुचीयां अच्छी....आह नही लगी क्या?

सोनू-- अच्छी है काकी। अपना ये कपड़े उतारो ना।


फातीमा-- आह बेटा तू ...उही उतार दे ना।


सोनू फातीमा का कमीज निकाल देता है, फातीमा की बड़ी बड़ी गोरी चुचीयां उसकी ब्रा मे से नीकलने को हो रही थी।


ये देख सोनू बेसब्र हो जाता है, और ब्रा के उपर से ही दबाने लगता है।


फातीमा-- आ....ह सोनू मेरी चुचीयां....ह दबाने में मजा आ रहा है तूझे।


सोनू-- हा काकी, लेकीन मुझे वो छेंद देखना है। जीसमे डालते है।


फातीमा-- आह बेटा मेरे नीचे ही है, देख ले मेरी सलवार उतार के।


सोनू के हाथ की उंगलीयो को ज्यादा देर नही लगी उसके सलवार के नाड़े को खोलने में॥


॥ अब फातीमा एक लाल कलर की चडढी में थी, फातीमा खाट पर नंगी लेटी बहुत गजब ढा रही थी। सोनू का लंड ना चाहते हुए भी पैटं मे खड़ा होने लगता है। लेकीन पैटं मे ज्यादा जगह ना होने के वजह से उसे लंड मे दर्द महसुस होने लगता है।


सोनू ने फातीमा की चडढी भी उतार दी जीससे उसकी गोरी और फुली बुर दीख जाती है।


फातीमा-- क्यूं बेटा दीखा छेदं॥

सोनू उसके बुर की फ़ाके खोलते हुए- हां काकी अब दीखा


फातीमा और अंदर से नजारा देखने वालो की हंसी नीकल पड़ती है।


फातीमा-- तूने मेरा तो देख लीया तेरा कब दिखायेगा?


फातीमा के मुह से ये शब्द सुनकर सुनीता की धड़कन तेज हो जाती है, क्यूकी एक मां के लीये कुछ अलग ही अहेसास होता है, अपने बेटे का लंड देखना।

॥ शायद इसका एक वजह ये भी हो सकता है की समाज इसकी इजाजत नही देता। और एक मां के मन में इस प्रकार का खयाल जो ना के बराबर है।



सोनू-- काकी मै तो दीखा दूगां लेकीन कुछ और तो बता की, और क्या क्या करते है औरत के साथ।


फातीमा-- बस बेटा इतना ही करते है। और अंत मे ये छेंद मे डालकर धक्के लगा लगा कर खेल को खत्म करते है।


सोनू-- हसंते हुए) - बहुत खुब काकी , तूने तो मुझे बहुत कुछ सीखा दीया। "चल अप थोड़ा बहुत मैं भी तुझे कुछ सीखा देता हूं।


फातीमा (हसंते हुए)- अले ले, अब मेरा अनाड़ी बेटा मुझे सीखायेगा।


सोनू (मन मे)- चल बेटा अब बहुत हो गया अनाड़ी पन, अब जरा कमीनापन दीखा, यही सोचते सोचते उसने अपना पैंट उतार फेकां॥


सोनू अपनी चडढी जैसे ही नीकालता है, फातीमा की आंखे फटी रह जाती है, और उधर कस्तुरी, अनीता और सुनीता का भी यही हाल था।


सुनीता मन में)-- हाय रे दइया, ये इसका लंड है की घोड़े का। लेकीन फीर, ये मै क्या सोच रही हू, और मुझे पसीना क्यू आ रहा है।


फातिमा-- हाय रब्बा, ये...ये तेरा तो बहुत बड़ा है।

सोनू-- क्यूं सच में बड़ा है।

फातीमा-- हां बेटा। कसम से मैने अपनी जींदगी में ऐसा लंड कभी नही देखा।


सोनू-- तो अब देख ले।

फातीमा-- हट जा बेशरम, मुझे शरम आ रही है।


सोनू-- शरम आ रही है सा....ली।

फातीमा-- सोनू अपनी काकी से ऐसे बात करते है?


सोनू--तो कैसे बात करते है, मादरचोद। अनाड़ी समझी थी मुझे कुतीया। चल मुह में ले और चुस इसे ,


अंदर खड़ी सुनीता, कस्तुरी और अनिता की आंखे फटी की फटी रह जाती है।


फातीमा-- छी भला इसे कोइ मुह में लेता है क्या?

सोनू झटके में फातीमा का बाल खीचकर उसे खाट पर से नीचे अपने घुटने के नीचे बीठा देता है।

फातीमा जोर से चील्लाती है-- आ....आ.. न...नही सोनू दर्द हो रहा है। छोड़ मेरा बाल......।


सोनू-- मुह खोल साली और चुस इसे।


फातीमा मरती क्या ना करती अपना मुह खोल कर सोनू का लंड मुह में लेने लगती है।


सोनू-- ले साली जल्दी।


फातीमा(रोते हुए)-- हां तो मैं क्या करु, इतना मोटा है जा ही नही रहा है।


सोनू-- कुतीया के जैसा मुह खोल, फीर जायेगा।


सुनीता सोनू का ये रुप देख कर दंग रह जाती है, वो सोचने लग जाती है...


फातीमा सोनू का लंड मुह में भर लेती है, और चुसने लगती है।


सोनू-- आह साली, ऐसे ही चुस आह तेरा मुह कीतन गरम है।


अंदर से देख रही कस्तुरी और अनीता का हाथ भी अब उनकी बुर पर था। सुनीता का भी मन मचलने लगा था।


सोनू के घुटने के निचे बैठी फातीमा कुतीया की तरह मुह खोले उसका लंड चुस रही थी।


ये देख कस्तुरी-- हाय दीदी क्या कुतीया की तरह अपना घोड़े जैसा लंड चुसा रहा है। काश मैं फातीमा की जगह होती।


कमरे में अंधेरा होने की वजह से वो लोग एक दुसरे को देख नही पा रहे थे। कस्तुरी अपनी एक उगंलीया बुर में डाल चुकी थी।


सोनू -- थोड़ा और अंदर डाल मुह मेआह ।

फातीमा अपना मुह और अंदर लेती है। और आगे पिछे करने लगती है।


कुछ देर ऐसे ही चुसने के बाद सोनू अपना लंड निकाल लेता है। और फातीमा को खाट पर लीटा देता है।


सोनू उसकी एक चुची को अपने हाथ से जोर जोर मसलने लगता है।


फातीमा-- आ...............आ...........सोनू धिरे......दर्द हो रहा है।

सोनू-- चुप साली कुतीया इतनी बड़ी बड़ी चुचीयां ली है। इसको तो मैं ऐसे ही मसलूगां॥


फातीमा-- आह........बे रहम तूझे तो मै...कल देख लूगीं तेरी मां से बता दूगीं॥


सोनू अपना मुह उसकी चुचीयों में लगा कर जोर जोर से चुसने लगता है।


अब फातीमा को भी मजा आने लगता है।


फातीमा-- आह , बेरहम ऐसे ही चुस नीचोड़ ले अपनी काकी की चुचींया आह बेटा इतना मजा मुझे कभी न...हइ........इ..........जोर से चील्लाती है।


सोनू ने उसका निप्पल दात में लेकर काट जो लीया था। फातीमा के कटे निप्पल से खुन नीकल जाता है।


सोनू-- चल मेरी रांड कुतीया बन जा। तेरा बुर फाड़ता हू।


फातीमा अपनी गांड खीड़की की तरफ कीये कुतीया बन जाती है।


फातीमा-- बेटा आराम से डालना, तेरा बहुत बड़ा है।


सोनू उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है। और उसकी बुर पर अपना लंड टीकाये जोर के धक्के के साथ अपना लंड जड़ तक घुसा देता है।


फातीमा-- आ............मां..........मर गयी.........नीकाल इ.......से........मुझे नही लेनां......मेरी......बुर।


सुनीता , कस्तुरी और अनीता की नजर सीधा फातीमा के बुर पर पड़ती है। सोनू का लंड उसके बुर को फैला चुका था, और उसके बुर से होते हुए सोनू के लंड से उसका खुन टपक रहा था।


सुनीता के मुह से आवाज ही नीकल रही थी, वो बस आखे फाड़े वो नजारा देख रही थी।


और इधर फातीमा का बुरा हाल हो गया था, पुरे कमरे में उसकी चिखे गुंज रही थी, और सोनू बेरहमी से उसे चोदे जा रहा था।


फातीमा-- हाय रे...........सुनी.......ता मुझे......बचा.......अपने आह बे.........रहम बेटे से......मेरी बुर फाड़ दे........गा।


कस्तुरी-- आह फातीमा फाड़ेगा नही फाड़ दी मेरे सोनू ने।


सोनू-- छटपटा मत मादरचोद कुतीया बनी रही।

फातीमा अपनी गांड उठाये सोनू के लंड से जोर जोर से चुद रही थी, उसे बहुत दर्द हो रहा था, और वो बस चील्लाये जा रही थी,


आखीर वो समय आया जब दर्द का मजंर थमा और फातीमा की पुरी खुल चुकी बुर सोनू के लंड को पच्च पच्च की आवाजो के साथ अपने बुर में ले रही थी।


अब फातीमा की आवाजे सीसकीयो में बदल चुकी थी। उसकी सीसकीया ये बंया कर रहीं थी की अब उसे मजा आ रहा है।


फातीमा-- आह सोनू...मजा आ रहा है...अपनी फातीमा काकी को आ....ह बेरहमी से क्यूं चोदा रे...


सोनू-- चुप कर साली और मेरा लंड ले।


फातीमा-- आह....सोनू तेरा ये लंड आह मुझे ब....हुत मजा दे रहा है। चोद आह बेटा, आज से मै तेरी रखैल हू, बे....रहम और फातीमा झड़ने लगती है,


सोनू भी झड़ने वाला था वो भी फातीमा की गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है, और खाट पर चढ़ फातीमा की कमर पकड़ हवा मे उठा कर एक जोर जोर से पेलने लगता है।


फातीमा दर्द से तीलमीला जाती है, अपना हाथ खाट पर टीकाये अपनी बुर का दर्द बरदाशत नही कर पा रही थी, और वो इधर उधर छटपटाने लगती है, लेकीन सोनू उसकी कमर पकड़े हवा में उढाये बस चोदे जा रहा था।


सोनू-- आह ले साली कुतीया, मेरा पानी अपने बुर में और एक जोर का धक्का मार अपना लंड सीधा उसके बुर की गहराइ में उतार देता है।


फातीमा दर्द के मारे अपना मुह कीसी कुतीया की तरह खोल जोर से चील्लाती है, और सोनू के लंड का पानी अपने बच्चेदानी के मुह पर गिरता साफ महसुस कर रही थी।


सोनू अपना पुरा पानी छोड़ उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारा-- आह साली मजा आ गया तेरा बुर चोद कर, और खाट पर लेट जाता है।


फातीमा वैसे ही पड़ी दर्द से अब भी रो रही थी, और सोनू लेटे लेटे वैस ही निंद मे चला जाता है।


ये चुदाइ का मजंर देख कस्तुरी और अनीता के बुर ने बहुत ज्यादा पानी छोड़ा।


सुनीता-- बेरहम कीसी कुतीया की तरह चोद चोद कर फातीमा की हालत क्या कर दी है।


कस्तूरी-- हा दीदी फातीमा की बुर तो देखो कैसे चौड़ी हो कर दी है, तेरे बेरहम बेटे के लंड ने, और खुद आराम से सो रहा है।


सुनीता चल अब चलते है,

कस्तुरी-- थोड़ा फातीमा से मील कर चलते है।


सुनीता-- नही, उसकी जीस तरह से चुदाइ हुई है, वो रात भर रोयेगी...।


अनीता-- बेचारी...दीदी अनाड़ी समझ अपनी बुर फड़वा ली,


और तीनो हंसते हुए घर से बाहर नीकल अपने घर की तरफ चल देती है,


फातीमा रोते रोते आधी रात बित गयी, फीर वो रोते रोते सोनू के सीने पर अपना सर रखी लेट जाती है, और उसे बांहो मे भर कुछ समय बाद वो भी निंद की आगोश में चली जाती है.......।


सुबह सोनू की निंद तब खुलती है जब उसे कोइ जगाता है,


सोनू की आंख खुली तो पाया उसके सामने उसकी मां ,कस्तुरी और अनिता खड़ी थी, उसके बगल में फातीमा काकी भी नही थी।


सुनीता-- सोता ही रहेगा, की घर भी चलेगा।


सोनू की हालत खराब हो जाती है, क्यूकीं वो पुरी तरह नंगा था।


और ये बात सब को पता था,

॥ तभी फातीमा वहां हाथ में चाय लिये आती है, वो बहुत मुश्कील से चल पा रही थी।


कस्तुरी-- अरे काकी तुम भचक भचक कर क्यूं चल रही हो, और मुस्कूरा देती है।


फातीमा-- मुझसे क्या पुछ रही है, तेरे भतीजे से पुछ उसने ही ये हालत की है।


सोनू का सुनते ही गांड फट जाती है..


सुनीता-- क्यूं बेटा क्या कीया तूने फातीमा के साथ?


सोनू को कुछ समझ नही आ रहा था की क्या बोले तभी


फातीमा-- अरे सोनू ने कल मुझे धक्का गलती से धक्का मारा और मै निजे उस लकड़ी पर गीर गयी तो थोड़ा चोट आ गयी।


ये सुनकर सोनू के जान में जान आता है,


सुनीता-- चल बेटा अब घर जा, और जरा देख कर धक्का मारा कर लगने पर दर्द होता है, और हल्का सा मुस्कुराते हुए दुसरे कमरे में सब चली जाती है।


सोनू भी फटाफट अपने कपड़े पहन बाहर निकलता है। और घर की ओर चल देता है।



दुसरे कमरे मे बैठी कस्तुरी जोर जोर से हसंने लगती है।


सुनीता-- क्यूं हसं रही है?


कस्तुरी-- अरे कल रात फातीमा दिदी की ऐसी हालत थी, उसी पर। कैसे कुतीया की तरह चिल्ला रही थी।


फातीमा-- हस ले, अगर तू उसके निचे होती और जब अपना मुसल लंड तेरी बुर में डालकर चोदता तब समझ में आता।


कस्तुरी-- अरे सोनू के निचे आने के लीये तो मैं हर दर्द सह लूगीं दिदी।


सुनीता-- चुप कर तुम लोग मेरे बेटे की जान लोगे क्या?


फातीमा-- अरे सुनीता जान तो तेरा बेरहम बेटा निकाल देता है, ऐसे चोदता है की, बुर के साथ साथ पुरा बदन कांप उठता है।


सुनीता-- मेरे बेटे ने तेरी ऐसी हालत कर दी है, फीर भी तू उसका बखान कर रही है।


फातीमा-- तू भी एक औरत है, और एक औरत से बेहतर कोई नही समझ पाता की असली मर्द ऐसा ही होता है।


सुनीता शरमा जाती है, -- तूने तो कल मेरे बेटे को थका दीया।


फातीमा-- ओ हो, और जो तेरा बेटा मुझे कुतीया बना कर गंदी गंदी गालीया दे रहा था। और मेरी बुर का बैडं बजा रहा था उसका कुछ नही।


सुनीता-- तू भी तो उसको भड़का रही थी, की आज से मैं तेरी रखैल हूं फलाना ढेकाना।


फातीमा(शरमाते हुए)-- हा तो मैं हू उसकी रखैल।


कस्तुरी-- तेरा तो हो गया दीदी, हम लोग का नसीब ही खराब है।


फातीमा-- अरे मेरी मान तो सोनू को पटा ले, और जिंदगी भर मजे लुटना।


अनिता-- अरे दिदी हम उनकी चाचींया है, और भला?


फातीमा-- अरे तुम्हारे हिंदुओ में एक कहावत है।


कस्तुरी-- कैसी कहावत?


फातीमा-- बता जरा सुनीता।

"सुनीता शरमा जाती है,


कस्तुरी अब शरमाना बंद करो और बताओ दिदी।


सुनीता-- अरे वो..कहावत है.....(वो पुत ही क्या जो 'चोदे' ना चाची की 'चुत')


कस्तुरी-- आय हाय दिदी दील खुश कर दीया, अब तो मै सोनू को अपना बना कर ही रहुगीं॥


सुनीता-- शरम कर वो तेरे बेटा है।

कस्तुरी-- बेटा वो तुम्हारा है, मेरा तो भतीजा है।


फातीमा-- वैसे मां बेटे के लिये भी कोइ कहावत है क्या?


सुनीता-- चुप कर छिनाल, और सब हसंने लगते है॥




बारीश के हल्की हल्की फव्वारे गीर रही थी, और बेचन अपने खाट पर लेटा था। और उसके आंखो में उसकी बेटी की बड़ी बड़ी चुचीयों का तस्वीर सामने आ जाता.....।


"बेचन खाट पर लेटा यही सच रहा था की. सीमा की चुचींया कीतनी मस्त है। अगर उस रात अम्मा नही आयी हैती तो उसकी चुचीयां तो मैं मसल चुका होता,


दीन के 12 बजे थे, और बेचन झुमरी के बगल वाली खाट पर लेटा था। तभी उसकी मां सुगना आ जाती है।


सुगना-- बेटा, ये गेहूं की बोरी जरा छत पर पहुचां दे।


बेचन खाट पर से उठ जाता है, और गेंहू की बोरीया लेके छत पर जाने लगता है। उसके पीछे पीछे सुगना भी छत पर आ जाती है।


बेचन गेहुं की बोरीया रखते हुए)-- अम्मा सीमा कहा रह गयी?


सुगना(गुस्से में)- क्यूं क्या काम था तुझे उससे?


बेचन-- कुछ काम नही था अम्मा, मैं तो बस ऐसे ही!


सुगना-- अरे थोड़ी तो शरम कर, तूझे अपनी बेटी की शादी करने के वजाय तू खुद उसके साथ....छी।


बाचन-- कलती हो गयी अम्मा, वो उस रात सीमा को खाट पर बीठाने के चक्कर में उसे गोद में उठाया तो मैं थोड़ा बहक गया।


सुगना-- अच्छा , अच्छा ठीक है। आगे से कुछ ऐसा वैसा मत करना॥


बेचन-- मेरी प्यारी अम्मा, ठीक है। नही करुगां,


सुगना-- अच्छा जरा ये गेंहू की बोरी खोल और गेंहू पानी की बाल्टी में भीगो।


बेचन फटाफट गेंहू की बोरी खोल गेहूं को पानी के बाल्टी में डाल देता है।

की बाल्टी में डाल देता है।


सुगना गेंहू को हाथ डाल कर साफ करने लगती है, बेचन वही एक तरफ बैठ जाता है,


सुगना-- क्यूं करता है रे तू ऐसा? घर तेरी औरत है फीर भी तू अपनी बेटी पर।


बेचन-- अरे अम्मा हो गयी गलती, आगे से नही होगी।


सुगना-- चल ठीक है, तू जा झुमरी के पास बैठ उसे पानी वानी की जरुरत पड़ी तो।


बेचन- ठीक है अम्मा, और उठकर नीचे चला आता है।


बेचन जैसे ही निचे आता है, उसे उसकी बेटी सीमा नजर आती है। जो झुमरी के खाट के पास बैठी थी और उसके साथ उसकी सहेली रीता थी।


बेचन- अरे रीता बिटीया तुम?

रीता-- हां काका वो सीमा को छोड़ने आयी थी। (रीता एक 23 साल की भरे बदन वाली लड़की थी, थोड़ी सावलीं मगर बदन में कसावट कमाल की थी। उसकी चुचीयां सीमा से थोड़ी बड़ी थी, लेकीन गांड के मामले में सीमा का कोइ जवाब नही था)


रीता-- अच्छा सीमा मैं चलती हूं॥

सीमा-- ठीक है रीता।

रीता के जाते ही, बेचन सीमा के खाट की तरफ बढ़ा तभी बाहर से आवाज आती है....बेचन वो बेचन घर पर है क्या?


बेचन आवाज सुनते ही बाहर आ जाता है, बाहर उसका बड़ा भाइ शेसन खड़ा था।


बेचन-- क्या हुआ भैय्या?

शेसन-- मेरा खेत का पानी हो गया है, जा जाके तू लगा ले पानी॥


बेचन-- ठीक है, और कहते हुए खेत की तरफ निकल देता है।


सोनू खेत के झोपड़े में बैढा था, और उसे भुख भी लग रही थी रोज की तरह उसकी मां खाना लेकर आ जाती है।


सोनू-- बहुत सही टाइम पर आयी है, मा चल खोल जल्दी और दे मुझे।


ये सुनकर सुनीता हकपका जाती है।


सुनीता-- क....क्या खोलू। और क्या दू?

सोनू-- अरे खाना दे मां, मुझे भुख लगी है।


सुनीता ठंडी सास भरते हुए मन में-- हे भगवान इस लड़के ने तो मुझे डरा ही दीया, मुझे लगा ये कुछ और ही मांग रहा है, और फीर सुनीता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ठहर जाती है।


सुनीता खाने की थाली सोनू के तरफ बढ़ा देती है।और वही सोनू के बगल में बैठ जाती है।


सोनू खाना खाने लगता है।


सुनीता-- सोच रही हूं अब तेरी शादी करा दू।

सोनू-- क्यूं मां इतनी जल्दी क्या है?

सुनीता-- अरे घर में बहु होगी तो तेरे लीये खाना बनायेगी, तेरी सेवा करेगी।


सोनू-- मां मै बुडढा नही हुआ हूं जो मेरी सेवा करेगी, और रही बात खाना की तो उसके लीये तू है ना।


सुनीता-- हां अब तू मुझे ही परेशान कर, उतनी दुर से तुझे खाना लाने में मेरा पांव दुखने लगता है।


सोनू-- अब तू मत लाया कर मां , मै खुद ही आ जाया करुगां॥ और वैसे भी अब तेरी उमर हो चली है, तू आराम कीया कर।


सुनीता-- क्यूं रे मैं तूझे बुडढी दीखती हूं?

सोनू-- नही, मां मेरे कहने का मतलब ये नही था।


सुनीता का चेहरा उतर गया था जो सोनू साफ साफ देख सकता था।


सुनीता-- सही है तेरे कहने का मतलब एक बुडढी को बुडढी नही तो और क्या बोलेगा?



सोनू इतना तो जानता था की, उसकी मा बहुत खुबसुरत है। वो तो बस उसके मुह से 'पांव दुखने की बात' पर नीकल गया की तेरी उमर हो चुकी है।


सोनू -- वैसे मेरी बुडढी मां कयामत लगती है।


सुनीता ये सुनकर शरमा जाती है, और बोली।


सुनीता-- बाते बनाने में आगे है, तू वैसे बहुत भोला बनता है। अपनी मां को कयामत बोलता है. शरम नही आती तूझे जरा सा भी।


सोनू-- अपनी मां से कैसी शरम, जो बात है तुझमे वो बात बोल दी मैने।


सुनीता-- मैं तुझे कहां से कयामत लगती हू भला।

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सोनू-- बताऊं,

सुनीता-- बता जरा।


सोनू-- तू सुन पायेगी क्या मां॥


सुनीता(शरमाते हुए)-- नही रहने दे बेशरम।


सोनू-- जब तू शरमाती है, तो आधा से ज्यादा कत्ल तो ऐसे ही हो जाता है। अगर तू मेरी मां नही होती तो।


सुनीता-- मां नही होती तो क्या?

सोनू-- फीर तो मेरे मजे थे।


सुनीता ये सुन कर बुरी तरह शरमा जाती है, और सोनू के गाल पर थपकी लगाती हुए.....बेशरम.......मैं तेरी मां हू।


सोनू-- वही तो रोना है।

सुनीता-- अच्छा मतलब मैं तेरी मां हू तो तुझे अच्छा नही लगता।


सोनू-- अरे नही मां तू मेरी मां है, ये मेरा सौभाग्य है, और वैसे भी दुनीया में खुबसुरत औरतो की कमी थोड़ी है, जो मैं अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालूगां॥


सुनीता ये सुनकर उसे साफ हो गया था की उसके बेटे की नज़र में मै सीर्फ उसकी मां हू और कुछ नही, लेकीन उसे एक बात अंदर ही अंदर खाये जा रही थी जो सोनू ने बोला ' की दुनीया में औरतो की कमी थोड़ी है, जो वो अपने मां पर ही'


पता नही क्यूं आज सुनीता को उन सारी औरतो से नफरत सी हो रही थी।


सोनू खाना खा चूका था। और हाथ मुह धो के वापस आ कर खाट पर बैठ गया।


सुनीता-- उस दीन भोला बनने की नाटक क्यूं कर रहा था?


सोनू--कीस दीन मां?

सुनीता-- जीस दीन भैंस ले के जाने का था, पता तेरे उपर सब हसं रहे थे की तू अनाड़ी है।


सोनू-- लगता है मेरी प्यारी मां को रास नही आया की कोइ मुझे अनाड़ी बोले।


सुनीता-- हा तो...दुनीया की कोइ मां नही सह सकती की कोइ भी उसके बेटे को अनाड़ी बोले।


सोनू-- वैसे कौन बोल रहा था अनाड़ी?

सुनीता-- तेरी चाचीयां और फातीमा।


सोनू-- और तू?

सुनीता-- हां तो तेरी हरकते वैसी ही थी, तो मुझे भी वैसा ही लगा।


सोनू-- तू बोले अनाड़ी मुझे कोइ फर्क नही मां॥

सुनीता-- क्यूं मेरे बोलने पर फर्क क्यूं नही होता तूझे?


सोनू-- क्यूकीं मैं तुझे साबीत नही कर सकता ना मां॥



सुनीता ये बात समझ गयी की सोनू क्या बोलना चाहता है, वो बुरी तरह शरमा गयी, सोनू की बाते उसके रोम रोम में हलचल मचा देता।


सुनीता-- और बाकी लोगो को कैसे साबीत करेगा।

सोनू-- फातीमा काकी को साबीत कर दीया है, अब जा कर पुछ लेना की मैं अनाड़ी हू यां खीलाड़ी।


सोनू को ये नही पता की वो जो बोल रहा है, वो सुनीता ने पुरा खेल देखा था। फीर भी सुनीता बोली।


सुनीता-- ऐसा क्या कीया तूने फातीमा के साथ।


सोनू-- काकी तेरी सहेली है, तू खुद पुछ लेना।


सुनीता-- अच्छा बाबा पुछ लूगीं , अब तू आराम कर मैं चलती हू ॥ रात को तेरा पसदींदा आलू का पराठा बना कर रखुगीं॥


सोनू-- ठीक है मेरी प्यारी मां और अनायास ही उसके होठ सुनीता के गाल को चुम लेते है, सुनीता के बदन में सीरहन सी उठ जाती है,


सुनीता-- बदमाश. और उठ कर थाली लेकर जैसे ही कुछ दुर जाती है, सोनू उसे आवाज देता है॥


सोनू -- मां,

सुनीता(पीछे घुमते हुए)-- हां क्या हुआ?


सोनू-- कुछ नही, बस आज बहुत अच्छा लगा , तुने पहली बार मेरे साथ इतना प्यार से बात की। ऐसे ही कभी कभी करते रहना।


सुनीता ये सुनकर उसकी आंख भर आती है, और वो झट से सोनू के पास आकर उसे सीने से लगा लेती है।


सुनीता-- मुझे माफ कर दे बेटा, आज के बाद मैं तुझे कभी नही डाटुगीं॥


सोनू-- सोनू, अलग होते हुए- ऐसा मत करना मां॥ मुझे कभी कभी डाटते रहना।


सुनीता-- क्यूं?

सोनू-- नही तो मुझे तुझसे प्यार हो जायेगा, मां बेटे वाला नही।

सुनीता-- तो कैसा प्यार?


सोनू-- जैसा तू पापा से करती थी। वो वाला,


सुनीता-- धत बेशरम और वहा से शरमाते हुए भाग जाती है...।



"घर में मालती खाट पर लेटी, साड़ी के उपर से ही अपनी बुर रगड़ रही थी।और उसके ज़हन में सिर्फ सोनू का वो घोड़े जैसा लंड नज़र आ रहा था।


मालीती(मन में ही)-- अरे कीतना बड़ा था सोनू का लंड , मैने तो आज तक इतना मोटा लंड देखा ही नही था। कैसे सोहन की गांड फाड़ रहा था...बेरहम

यही सोचते सोचते उसको मस्ती चढ़ जाती है....तभी अँदर कोइ आ जाता है। जीसे देख मालती चौंक जाती है, और अपने बुर पर से हाथ हटा खाट पर से खड़ी हो जाती है।


मालती-- कल्लू ब.....बेटा तू!


कल्लू-- हां मां तू बाहर कपड़े डाल कर भूल जाती है, क्या ? बाहर बारीश होने जैसा मौसम बन रहा है, जो भी कपड़े सुखे थे सब फीर से गीले हो जाते।


मालती-- अरे हा बेटा ध्यान ही नही रहा। अच्छा हुआ तू लाया, अब चल मैं खाना लाती हूं तू खा ले।

और फीर मालती रसोइ घर में जाने लगती है, तभी उसके दीमाग में पता नही कहा से सोनू की कही हुइ बात याद आती है, की उसने तो अपनी बड़ी मा को भी चोद दीया है,   


  




मालती खाना ले कर आती है, और खाट पर बैठे अपने बेटे को देकर वही जमीन पर बैठ जाती है।


मालती(मन में)-- अगर उसकी बड़ी मां अपने बेटे से चुदवा सकती है, तो क्या मैं अपने बेटे के साथ.....नही...नही ये गलत है।

तभी उसकी नज़र कल्लू पर पड़ती है,


कल्लू आराम से खाना खा रहा था,

ना चाहते हुए भी मालती कल्लू को निहारे जा रही थी,


मालती(मन में)-- मेरा बेटा, सोनू के जैसा थोड़ी है, जो अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालेगा। लेकीन मैं ही पागल हूं जो अपने ही बेटे के बारे में गदां सोच रही हू, लेकीन क्या करु जब से लंड देखी हू तब से मेरी बुर फड़पड़ा रही है। क्या करू? बाहर चुदवाउगीं तो बदनामी होगी,लेकीन लंड तो चाहीए ही। मेरे लिये अच्छा होगा की अपने बेटे के नीचे ही पड़ी रहु जिंदगी भर....लेकीन इसे पटाउ कैसे ? अगर ये बुरा मान गया तो....अब जो होगा देखा जायेगा?


मालती-- बेटा पानी बरसने लगा, तूने सारे कपड़े तो नीकाले थे ना?

कल्लू-- हां मां॥

मालती-- मैं फीर भी देख कर आती हूं कही कोइ छुट तो नही गया और कहते हुए बाहर चली जाती है,


जब वो जा रही थी तो कल्लू कनखी से उसकी बड़ी बड़ी गांड देख रहा था, मालती दरवाजे के पास पहुच कर छट से पिछे मुड़ जाती है, और कल्लू को देखती है, जो उसकी मटकती गांड की तरफ देख रहा था।


कल्लू हड़बड़ा कर अपनी नज़र दुसरी तरफ कर लेता है, लेकीन तब तक मालती समझ चुकी थी की ये मेरी गांड ही देख रहा था। मालती थोड़ा सा मुस्कुराइ और बाहर आ गयी।


कल्लू(मन में)-- हे भगवान कही मां ने देख तो नही लीया की मैं उसकी...नही नही देखी होती तो अब तक मेरी पीटाइ हो जाती, लेकीन क्या गांड है साली की, 1 साल से देखते आ रहा हू चुप चुप के लेकीन कुछ कर नही पा रहा हूं....


तभी वहां मालती आ जाती है, वो इकदम पानी में भीगी थी, ये देख कल्लू चिल्लाया!


कल्लू-- मां तू पागल हो कयी है, क्या ठंढी के मौसम में क्यूं भीग रही है? ठंढ लग जायेगी तो।


मालती(ठंढी से कापते हुए)-- बेटा वो मै....आ....छी (छिंकते हुए)

कल्लू-- देखा सर्दी लग गयी ना, चल अब जल्दी कपड़े बदल ले।


मालती वही खड़ी खड़ी अपनी साड़ी खोल देती है, भीगा हुआ ब्लाउज जो मालती की बड़ी बड़ी चुचीयों को एक अच्छा सा शेप दे रहा था, और उसका पेटीकोट पूरा उसके गांड से चिपका उसकी खुबसुरती को बढ़ा रहा था। और कल्लू के सोये हुए लंड की लम्बाइ भी।


कल्लू तो बस मुहं खोले अपनी मां की गदराइ हुइ जवानी देख रहा था।


मालती-- अप खड़े खड़े देखता ही रहेगा या मेरी साड़ी भी लायेगा अंदर से। मुछे ठंढ लग रही है...आ...छी:॥


कल्लू-- हां.... लाता हू।

और अंदर से जाकर साड़ी और पेटी कोट लेकर आता हैं॥


मालती-- अरे बेटा तूने मेरी अंगीया(ब्रा) और चड्ढ़ी नही लाई(कहकर हल्का सा मुस्कुरा देती है)


कल्लू तो ये सुनकर ही पागल हो जाता है, वो झट से अंदर जाता है और उसकी एक काले कलर की ब्रा लेता है, और फीर उसकी चडढी लेकर जैसे ही आता है, उसके दिमाग मे खुरापात है, उसने चडढी के सामने एक बडा सा होल कर दिया और फीर जल्दी से लाकर अपनी मां को दे दीया।


मालती-- अब मुझे ही देखता रहेगा या, मुह पिछे घुमायेगा। मुझे कपड़े बदलने है,


कल्लू अपना मुह पिछे घुमा लेता है, मालती अपना कपड़ा बदलने लगती है। लेकीन जब वो चड्ढी पनहने लगती है, तो उसे चड्ढी में बड़ा सा होल दीखा ये देख कर मालती मुस्कुराते हुए मन में-- वाह बेटा, मुझे लगा आग सीर्फ मेरे बुर में ही लगी है। लेकीन मुझे क्या पता था की तेरा भी लंड सुलग रहा है...और सोचते सोचते चड्ढी पहन लेती है,


मालती-- मैने कपड़े पहन लीये है, अब तू मुह घुमा सकता है।


कल्लू पलट जाता है, और खाट पर बैठ जाता है।


कल्लू-- मां खाना क्या बनायेगी आज?

मालती कल्लू के बगल में बैठती हुई-- जो मेरा बेटा बोले, वही बनाउगीं॥


कल्लू-- मां तू बता ना तूझे क्या पंसद है।


मालती-- मुझे जो पंसद है तू खीला पायेगा?


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