अखिर मम्मी चुद ही गई।
ये कहानी दिल्ली मैं रहने वाले एक परिवार की है। घर मैं कुल चार सदासे है। कहानी का मुखिया किरदार रोहन, उसका पिता राम, छोटी बहन रिंकी और मम्मी नीतू। छोटा सा सुखा परिवार। पिता राम इक एकाउंटेंट, अच्छा काम लेटे द। दिल्ली मैं एक खूबसूरत घर मैं वो चार सदासे भूलभुलैया से रहते थे। जिंदगी बड़े सुख से गुजर रही थी के एक दिन नीतू की बड़ी बहन निर्मला की बेटी की शादी का नया मिला। निर्मला पहले उस मुहल्ले मैं रहती थी जहां उसकी बहन नीतू थी मगर फिर उसके पति का तबाडाला बंगलौर हो गया और वो गरीब परिवार समेट बंगलौर चले गए। रोहन और निर्मला के बेटे की बहुत गहरी दोस्ती तुम। वो दोनो एक हाय स्कूल मैं एक ही क्लास मैं। उसके जाने के बाद कफी समय तक रोहन का मन ऊंचा रहा था।
अक्टूबर का महिना सुरु हुआ था। स्कूल के एग्जाम अभी अभी खतम हुए थे। इसलिये उन्हे कोई चिंता नहीं तुम। रविवार को शादी तुझे। ट्रेन से पूरे एक दिन का सफर था। क्या तेरा दो दिन आने के लिए और दो दिन शादी मैं रुकने के लिए थे। बच्चन ने स्कूल से चार दिन की छुट्टी ले ली और उनके पिता को भी चार दिन की छुट्टी मिल गई। अब कोई दीकत नहीं तुम। चार छुटियों के साथ रविवार का दिन मिलाकर उनके पास पंच दिन थे। सुकरवार स्कूल से आते ही रोहन और उसकी बहन ने त्यारी कर ली। उनके पिताजी के काम से आते ही सब लोग रात को दास बजे के करीब ट्रेन से निकल पाए। रोहन और उसकी बहन दो बहुत खुश थे। उनका परिवार लगभाग दो साल बाद इक्काथा हो रहे थे।
ट्रेन मैं कोई खासी भेद नहीं तुझे। उन चारों के शिव एक और परिवार था जिसमे एक बजुराग दम्पती था और साथ में मैं सयाद उसका बेटा और बहू। दूर के पास नीतू और बच्चों ने दो आमने वली सीतों पर कब्ज़ा जमा लिया। रोहन और उसके मम्मी खिडकियों के पास आमने सामने थे। छोटी बहन मा के साथ तुम और पिताजी रोहन के साथ। राम कुमार ने कुछ डर परिवार की बचित मैं हिसा लिया मगर वो सयाद काम से थे आए थे और वो जलाद ही उठने लगे। कुछ डर तक वो परिवार के साथ बैठे फिर वो ऊपर वाली सीट पर पासर सो गए। मगर नीतू और बच्चन की आंखों में मैं जरूरत कहां। उन तो खूब चाव था। भाई बहन की तो बात अलग नीतू की भी खुशी देखते ही बनती थी। वो अपने मा बाप, भाई बहनो से एक साथ मिलने जा रहे थे। खास कर बड़ी बहन निर्मला से मिलने के लिए उसका दिल बहुत मचल रहा था। एक ही मोहल्ले मैं शादी होने के करन दोनो का लगभाग हर दिन मिलना जुलना होता था। इसी करन दोनो के रिश्ते मैं बहुत गहरे आ गए थे। दोनो एक दसरे से हर वो बात शेयर कर लेते थे जो वो किसी और से नहीं कर सकती थी। कह सकते हैं दोनो एक दसरे की गहरी राजदार तुम। जब से निर्मला के पति का ट्रांसफर हुआ था, नीतू बहुत अकेलापन महसूस करने लगी थी। उसका पति सुबेह त्यार होकर दफ्तर के लिए निकल जाता और बच्चे स्कूल के लिए। वो लगभाग पूरा दिन घर मैं अकेली होती तुम। घर का सूनापन उसके अकेलेपन को और भी उदासी बना देता था। बहार से वो चाह खुश दिखायी देते थे मगर और से उदासी की चादर उसे ओढ़ राखी तुम जिस उसका पति भी जान चुका था और सयाद इसिलिए उसने चार दिन की छुटटी ली तुम उसका मन कुछ बहल जाए।
अधिक रात हो चुकी तुम। आपको और दबे मैं कफी अँधेरा था की बत्ती बुझा दें। अब तो पिंकी भी अपनी मां की कमर से सर सताए उन्घने लगी थी। मगर नीतू और रोहन अब भी बच कर रहे थे। खिडकी से ठंडी हवा आ रही थी। मौसम खुशगवार था जिसे उन्होंने खुशी के उत्सव को और भी बड़ा दिया था। रोहन ने लाइट्स बुघने से पहले देखा था के डिब्बे मैं दसरे परिवार का बजरंग दम्पति भी सो चूका था और उनके सोने के कुछ समय बाद वो लड़की लड़की उठा कर दूर कोन की सीट मैं जकर बैठे थे। अंधेरे मैं उन दोनो की खुशर फुसर के साथ बिच बोच मैं हांसी की आवाज गूंजती तुम। हंसी की खानक से पता चलता था के दो बहुत खुश थे। सयाद शादी हुई बहुत डर नहीं हुई थी।
"बेटा तुम्हें नींद आ रही है तो जाओ ....वैसे भी बहुत टाइम हो गया है।" नीतू बेटी को सीट पर लिटाकर इस्तेमाल चादर से धन देता है।
"नहीं माँ .... अभी तो नींद बिलकुल नहीं आ रही ... अभी तो मन भी नहीं है सोने का ... आपको तो नींद नहीं आ रही मम्मी?" रोहन अपनी टंगे फेलता पुछता है।
"नहीं....मुघे भी नींद नहीं आ रही" नीतू बेटे को एक अतिरिकत चादर देते कहते हैं मगर रोहन उपयोग करें अपनी पीठ पीछे रख लेता है। थंड तो लेश्मातर भी महसूस नहीं हो रेही का प्रयोग करें।
"तो फिर कुछ डर और बातें करते हैं मम्मी"
"हुं .... मेरा भी दिल नहीं है सोने का" नीतू मुसकरकर बेटे के बाल मैं हाथ फर्टी है। उसे थोड़ी देर पहले ही एक रात सूट पहचान था। पटली सी गोल गले वाली टी शर्ट और पायजामा। रोहन ने भी कमीज और पजामा पेहन लिया था।
"माँ आज तुम बहुत खुश दिखी दे रेही हो"
"ओह खुश तो मैं हूं...तुम खुश नहीं हो किया!" नीतू के होंठो पर मुस्कान आ गई थी।
"हुं न मा....मगर तुम्हारे जितना नहीं" रोहन मुस्कान कहता है।
"अच्छा......तूने आज सयाद पहली बार मुझे हंसते देखा है, है ना?" नीतू हंसते हुए कहते हैं।
"नहीं माँ ....वो बात नहीं ......... हंसते हुए तो तोम देखा है मगर आज बहुत खुश तुमे बहुत दिनो बाद देखा है ... और ..."
"और किया?" बेटे की बात नीतू के दिल को चू गई थी। वो सच कह रहा था। ना जाने कितने समय वो बाद खुद को इतना जिंदादिल महसूस कर रहे थे।
"और मम्मी तुम आज बहुत सुंदर लग रही हो..." रोहन भी मुस्कान कहलाता है।
"अच्छा तो वैसा ही मैं बहुत भद्दी लगती हूं ना" रोहन की आखिरी बात ने नीतू को और भी खुश कर दिया था। ये बात अपने पति के मुंह से सुन के लिए नीतू के कान तारस गए थे। अखिरी बार उसके पति ने उसकी तारीख कब की थी, याद भी नहीं था का प्रयोग करें। लगने लगा था सयाद उसके पति की उसमे दिलचस्पी खतम हो चुकी है का प्रयोग करें।
"नहीं मम्मी...आप बात समाघ नहीं रहे"
"अच्छा तो तू मुझे समझौता दे" नीतू की मुस्कान और भी गहरी हो गई थी।
"अब मैं कैसे सम्घायु?" रोहन के पास अल्फाज तो द मगर वो झिझक रहा था के इस्तेमाल वो अल्फाज अपनी मम्मी को कहने भी चाहिए जा नहीं। हलंके उसका दिल बहुत कर रहा था, बालके वो अपनी मां को बताने के लिए बहुत ज्यादा था के वो कितनी सुंदर है।
"बस भंडा फोध हो गया ... रहने दे ... मुझे मालुम है ऐसे ही मखन लगा रहा था?" नीतू एक तेरा से अपने बेटे को बढ़ती है।
"उफ्फ्फ्फ्फ्फ मम्मी......मैं कैसे कहूं आप कितनी सुंदर हो...आप आया देख लिजिये आप को खुद मालुम चल जाएगा..." रोहन के दिल मैं कुछ ऐसे अल्फाज द जो उसके होने पर आने के लिए मचल रहे थे।
"काया मालुम चल जाएगा ......... अय्याना तो मैं तो हर रोज देखता हूं ... मुझे तो कुछ नजर नहीं आता ...."
"आपको नज़र नहीं आएगी माँ .... दसरो की नज़र से देखी फिर आप को पता चलेगा" रोहन तेज़ से एक निगाह नीतू के भरपुर साइन पर मरता है और फिर नज़र फिर लाता है मगर नीतू उसकी चोरी है। नीतू धीरे से आगे को झुक कर अपनी कुहनीयां अपने घुटनो पर रखकर दोनो हाथों को ठुड्डी के आला टीका लेटी है।
"जरा खुकर कहो ना... प्लीज" नीतू धीरे से फुसफुसाकर कहती है जैसे दोनो कोई गेहरी सजिश रच रहे हैं। नीतू के झुके से उसके भारी मम्मी टीशर्ट को बहार की और ढकेल रहे थे।
जरा खुलकर कहो ना... प्लीज़" नीतू धीरे से फुसफुसाकर कहती है जैसे दोनो कोई गेहरी साज़िश रच रहे हैं। नीतू के झुके से उसके भारी मम्मे टीशर्ट को बहार की और ढकेल रहे थे।
"...मम्मी...आप गुस्सा तो नहीं करोगे" रोहन भी फुसफुसाकर बोला। तबी उनसे दूर बैठा जोधा खिलखिला कर हंस पढ़ता है। जब तक वो दो हंसते हैं नीतू चुप रहती है।
"मैं गुसा करुंगी ... अपनी तारिफ सुन्ना किस पसंद नहीं है ... और फिर तू तो मेरा लाडला बेटा है मेरे नंगे मैं कुछ गलत थोड़े न सोचेगा"
"मैं भला क्यों गलत सोचूंगा अपनी मम्मी के नंगे मैं" रोहन थोड़ा सा घबड़ा गया था। नीतू बेटे का हाथ अपने हाथ मैं थाम का उपयोग दबती है जैसे निश्चिंत कर रह हो।
"तो फिर बता ना ..... बटाता तो तू कुछ भी नहीं .... ठीक मुझे ऐसा है किया ...."
"वादा आप गुसा नहीं करोगे?"
"उफ्फ्फ रोहन.......तू भी ना...अब बतायेगा जा फिर मेरे सोने के बाद बोलेगा" नीतू खीग उठी तुम।
"बटाता हूं बताता हूं....वो एक बार हम सब दोस्त क्रिकेट खेल रहे थे और हमारा बल्ला टूट गया... हमारे पास एक्स्ट्रा बात नहीं था तो हम सब ऐसे ही बैठे बाते करने लगे... तबी किसी ने लड़कियों की बात छेद दी ..... तब वो मेरा दोस्त विकास है ना..." रोहन अचानक बोलता है रुक जाता है।
"आगे...उम्र काया...विकास ने क्या कहा" नीतू को बहुत अच्छा लगता है ये जाने के लिए उसके सुंदरा का विकास से क्या लाना देना है।
"विकास बोला के एक खेल खेलते हैं जिसमे हर किसी को बताना होगा के उसका फेवरेट मां..."
"पसंदीदा माँ...? कहीं तुम 'पसंदीदा माल' तो नहीं कहना चाहते!" नीतू मुस्कान कहती है। एक अज़ीब सी उत्तेजना महसूस हो रेही का प्रयोग करें।
"नहीं..नहीं...मेरा मतलब विकास के कहने का मतलब था के हर कोई हमें लड़की के नंगे मैं बताएगा जो सबसे अधिक अच्छी लगती हो" रोहन किसी तेरा बात को घुमने मैं सफल हो जाता है।
"हुं तो..." नीतू के होठोंपर गहरी शरारती सी मुस्कान फेल जाती है।
"तो सब एक करके बताएंगे लागे... किसी ने किसी फिल्मी हीरोइन का नाम लिया तो किन टीवी सीरियल की हीरोइन का... किसी ने टीचर का नाम लिया...तो किसी ने अपने मोहल्ले मैं रहने वाली का नाम लिया..." रोहन दा का दिल धड़क रहा था।
"हुंह...टीचर्स...रियली!!!!....लेकिन इन में से लड़की तो कोई भी नहीं है... नीतू गहरी काली आंखों से रोहन की आंखों में मैं झांती कहती हैं।
"वो...वो...ऐश्वर्य का..." रोहन नज़र नीची की शर्मता हुआ धीरे से कहता है।
"ऐश ... हुंह? ... च्वाइस तो तुम्हारी अच्छी है लेकिन मैं अभी भी नहीं संघी है सबका हमसे बात से क्या तालुक है जिसके नंगे मैं चर्चा कर रहे थे" नीतू की उत्कृष्टा बढ़ती जा रही थी।
"वो मम्मी जब सब लोग बता रहे हैं तो एक ने ... एक ने ...." रोहन हकलता सा घबड़ा उठता है।
"एक ने क्या ?????? इतना घबरा कें रहे हो।"
"वो मेरे एक दोस्त ने आपका नाम लिया..." रोहन ने ना सुनायी देने वाले स्वर में कहा
"मेरा नाम ????? मेरा नाम ???? ... मगर मेरा नाम कीं?" नीतू को झटका जरूर लगा था।
"मतलब आप उपयोग बहुत सुंदर लगती हो" रोहन अपनी मम्मी गुसे ना होते देख बोला। पहले तो लगा था उसकी मम्मी का इस्तेमाल करें, जराूर मेरीगी का इस्तेमाल करें।
"मैं ..... याकीन नहीं होता ... मुझे नहीं पता था कोई मेरा इतना बड़ा चाहनेवाला भी है .... भला तुम्हारे किस दोस्त ने मेरा नाम लिया था ........ कोई मेरा इतना बड़ा आशिक है और मुझे पता नहीं है?" नीतू ने वो बात स्वभाविक तोर पर कही थी मगर वो बात रोहन के दिल में शूल की तेरा चुभ गई थी।
"मुझे अब याद नहीं किसने कहा था..." रोहन रुखाई से बोला। नीतू ने ट्रुंट भांप लिया के उसकी बात उसके बेटे को अच्छी नहीं लगी थी।
"मैं तो बस ऐसे ही पुच रे ही थे कोन था ......... भला मुझे क्या लेना देना इसी ..." नीतू बात सम्भलते है। वो ऐसी दर्शती है जैसे अपने आशिक का नाम जाने की कोई dklchaspi नहीं है का उपयोग करें। फिर वो कुछ पल के लिए चुप रहती है। रोहन अब भी नारज लग रहा था। "खैर बात अब भी वही है .... ये तो तुम्हारे दोस्त ने कहा था के मुख्य उपयोग सुंदर लगती हूं ... तुम्हारी पसंद तो ऐश तुम?"
"जब उसे तुम्हारा नाम लिया तोह ....तो फिर बारी बारी से सब तुम्हारे नंगे मैं बोले लगे ..."
"काया ... काया बोले लगे ..."
"ये के तुम बहुत सुंदर हो...तुम हमारी टीचर्स से भी बढ़कर हो...कायो ने कहा के तुम्हारी फिगर...।" रोहन चुप कर गया। अब मा बेटा दोनो थोडे एक्साइटेड हो गए थे। रोहन के पास अपनी मां को बताने के लिए बहुत कुछ था लेकिन सयाद वो आसन चाहता था के उसे मा गुसे नहीं होगी।
"मेरी फिगर काया.... काया केहा तुम्हारे दोस्तो ने मेरी फिगर के नंगे मैं..." नीतू के बदन मैं संसनाहत सी फेल रेही थे।
"के तुम्हारी फिगर बहुत सेक्सी है... के तुम्हारी बॉडी हीरोइनों से भी ज्यादा सेक्सी... है... और"
"और काया...और काया..." उत्साह से नीतू की सांसे मैं तेजी आ गई थी। अपने निप्पल नुकीले होते महसूस हो रहे थे का प्रयोग करें।
"के तुम ....तुम एक नंबर का मां .... माल हो .... फिर"
"सच मैं तुम्हारे दोस्तो लगता है के मैं एक नंबर का माल हूं ??? फिर क्या ... फिर काया ...?" उसके बेटे की उमर के बच्चे यूज एक नंबर का माल बता रहे थे, वो उनकी फैंटेसी क्वीन थी, बात ने नीतू को रमनचित कर दिया। बेहद अज़ीब सा एहसास था। उसे अपने मन कल्पना की के वो बच्चे उपयोग देख कर क्या सोचते होंगे तो उसके खराब जिस्म मैं झुर्झुरी सी दौड़ गई। उसके मोटे मोटे मम्मे उसे भारी, तेज सांसो के साथ ऊपर आला हो रहे थे और उसकी पाटली और ढीली सी टी-शर्ट मैं उनकी हलचल साफ दिखी दे रही थी। उसके परमाणु निप्पल टीशर्ट के ऊपर से टैंक झंक कर रहे थे।
"वो तुम्हारे नंगे मैं बहुत गन्दी गन्दी बातें करने लगे .... मेरा उनसे झगड़ा हो गया .... मैंने उनसे बात करनी छोड़ दी ... उनके साथ खेलना भी बंद कर दिया ......" रोहन की पेंट मैं उसका लुंड अंगदयी लेने लगा था। नीतू अपने साइन पर बार बार घुमती बेटे की नज़रों को बखुबी देख शक्ति तुम मगर हमें समय वो इतनी उत्साहित तुम के उपयोग परवाह नहीं तुम।
"ओह तो ये बात तुम...इसिलिए तुम अपने दोस्तों के साथ खेलने नहीं जाते थे और जब मैंने पुचा था तो क्या बोला था ... अब मुझे क्रिकेट खेलने मैं मजा नहीं आता ये कहा था ना तुमने? "
रोहन अपनी मम्मी के स्वाल का कोई उत्तर नहीं देता। नीतू का दिल तो कर रहा था के वो अपने बेटे से पुछले के वो कोंसी गन्दी बातें उसके नंगे मैं कह रहे थे मगर सयाद बेटे से ऐसा स्वाल पुचना सही नहीं था। अच्छा खासा अंदाज था वो उसके जिस्म के नंगे मैं गन्दी गंदी बातें कहते हैं का इस्तेमाल करें।
"अब आगे भी बढ़ो......असली बात बतायो...तुम तो ऐश के आशिक तो मैं भला कब से तुम सुंदर दिखने लगी...ये हृदय निजीन कब हुआ? " नीतू बेहद उत्सुक्ता से बेटे के जबाब का इंतजार कर रही थी। रोमांस और उत्तेजन से उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। क्या पूर्वभाषा से उसका बेटा कुछ ऐसा कहने वाला है जो कमुकता से भरपुर होगा, नीतू की उत्पन्ना और बढ़ा दी थी। एक बेटे के लिए अपनी मां की ऐसी सोच अनातकाता की हद तक गलत तुम मगर वो मा बेटे को रोके हुए और उत्साहित कर रही थी। लग रहा था कमोत्तेजना उसके सर चढकर बोल रहे थे।
"वो जब उन्होनो आपके नंगे मैं इतना गलत बोला तो मुझसे बरदाशत नहीं हुआ, मेरा उनसे खूबसूरत झगड़ा हुआ, और मैंने उनसे खेलना तो दूर बोलना भी बंद कर दिया"
"वो सब छोधो...तुम अपनी बात करो...मैं तुम्हारी सपनों की रानी कब से बन गई" नीतू अपने अंतरमन की चीखों पुकार को अनसुना करते हुए कहती है। अपनी छुट मैं गिलापन महसूस हो रहा था का प्रयोग करें। अंग अंग मैं कसाक सी भारती जा रेही तुम। ये कास्क तुझे जिस्से वो खुद को जा अपने बेटे को रोके की बजाये इस्तेमाल उकसा रेही थे।
"मेरे दोस्तो से झगड़ा होने के बाद मैंने उनसे मिलना छोड़ दिया... फिर आपको याद है मैं कितने दिन घर से बाहर नहीं गया ... और ... और फिर ... फ़िर। ....मेरा ध्यान है और गया...आप कितनी सुंदर हो...मतलब.....मुझे....मलम था...मलम था के ....के आप.. ...." रोहन अपनी मम्मी के उसे जाने से और हमारे रात के बारतव से जनता था के वो गुसे नहीं होगी मगर अपनी मम्मी प्रति ऐसी शबदबली इस्तमाल करना, इस्तेमाल करें बेहद शर्मनाक प्रतित हो रहा था। वो बार बार शब्द के चुनव में मैं अटक जाता हूं, मगर वो बात इसी अनातक तुम, उसमे आत्मिक पाटन का भाव इतना तीवर था के वो कोई भी शब्द इस्तमाल करता हम अनातक भाव से बच्चा नहीं सकता था।
"ऐसे हकला कीं रहे हो ....कोई तुम्हारे पिचे लाठी लेकर नहीं खड़ा है ........." नीतू से सबर नहीं हो रहा था। उसका बेटा के कहने वाला है वो जनता तुम। उसे मैं और मा से भला कोई कुछ चुप सकता है! लेकजन वो बेटे के मुंह से सुन्ना चाहते थे। वो उसकी आवाज़ मैं उसकी भावनायो को महसूस करना चाहता हूँ।
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"मम्मी मुझे शर्म आ रही है" रोहन फुसफुसता है।
पीएम फाइंड रेट लाइक रिप्लाई कोट रिपोर्ट
किसी भी कम उम्र/बलात्कार सामग्री का उल्लेख/पोस्ट न करें। अगर मिल गया
"मम्मी मुझे शर्म आ रही है" रोहन फुसफुसता है।
"हे भगवान!!! रोहन, ऐसे तो लड़की भी नहीं शर्मति जैसे तुम शर्मा रहे हो" नीतू कुढ़ती हुई बोली। उसके इतना खुलजाने के बवजूद वो झिझक रहा था।
"नहीं मम्मी, वो बात नहीं...लेकिन आपसे मैं सब कैसे...." रोहन सर झुके बोला। लड़कियों से तुलना करने पर उसके दिल को जरा थे लगी थी।
"मेरे से कैसे...काया ?????" इतना उसेने के बाहुद वो खुल कर बात नहीं कर रहा था और नीतू से सबर बिलकुल भी नहीं हो रहा था। उसे बेटे की जिझक खतम करने का निश्चय लिया।
नीतू सीट पर अभी को इस कदर खास गई के अब उसकी गंद केवल सीट के सिर को तोच कर रह हैं। वो उम्र को खिलाड़ी कर जितना संभव था बेटे के करीब हो गई। फिर उसने रोहन के दो हाथ अपने हाथ मैं थाम लिए और अपने साइन पर दोनो मुम्मो के बेहद करिब ले गई।
"हमारे दोनो के शिव जहान और हैं जो तुम शर्मा रहे हो। हम दो अकेले हैं और अपनी मम्मी से काया शर्मना। मैं शर्मा रेही हूं ???... बोलो मैं शर्मा रेही हूं?" इतना कहते ही नीतू ने बेटे के दोनो हाथ पक्ढ अपने दोनो मुम्मो की गहरी घाटी मैं दबये। रोहन का दिल उसके सिने मैं इतनी ज़िर ज़ोर से धड़क रहा था के उसके कानो में उनकी आवाज़ गुंज रेही थे। अपनी मम्मी के दोनो नारम गुडाज मुम्मो का हलका सा स्पर्श पाते ही पेंट मैं उसे लौड़ा पत्थर की तेरा तन गया।
"रोहन...मेरे साइन को बाद में देखना। मैं यही हूं जी भर के देखना, मैं नहीं रोकूंगा। मगर पहले मेरी और देखो यहां" नीतू बेटे की शर्म दूर करने के लिए खुद पूरी बेशरम बन गई।
"मैं शर्मा रेही हुं? बतायो मैं शर्मा रेही हुं?" रोहन जैसे ही अपनी मम्मी के आने से नज़र उठाकर उसके चेहरे की और देखता है वो इस्तेमाल करती है। रोहन बोले की बजाये धीरे से इंकर मैं सर हिला देता है।
"तो फिर तुम क्यों शर्मा रहे हो .... अगर मेरी जहां कोई और लड़की होती... समाघ लो तुम्हारी गर्लफ्रेंड होती तो ऐसे ही शर्मते?"
"नहीं" है बार रोहन ठुक गटकते हुए धीरे से बोल पढ़ा।
"तो बस स्मग लो तुम्हारे सामने तुम्हारी मम्मी नहीं तुम्हारी गर्लफ्रेंड बैठी है...... अब यार अपनी गर्लफ्रेंड से काया शर्मना... जरा खुलकर बात करो..." नीतू ने रोहन को आंख मारते हुए उसका हाथ थोड़ा सा अपने दिन में मुम्मे के आला दबा दिया। एक तो नीतू की अस्लीलता से भरपुर मदक बातें और ऊपर से उसके मुम्मे का वो नारम कोमल स्पर्श। उत्तेजना से हमें युवा लड़कों की नासन मैं खून उबले खाने लगा।
"दोस्तो से झगड़ा होने के बाद मैंने घर से बाहर जाना छोड़ दिया..." रोहन का स्वर धीमा मगर स्पाशत था। उसकी मां की चाल काम कर गई थी। उसे उपयोग करें अपनी असली भाषा और कामुक हरकतों से इतना गरम कर दिया था के शर्म और झिझक की जहां अब उत्तजाना ने ले ली थी।
"स्कूल से आने के बाद मेरा सारा वक्त आपके साथ ही गुजारता था। पहले मैंने कभी भी आपको नजर से नहीं देखा था मेरा मतलाब ... मैंने कभी ध्यान नहीं दिया था लेकिन इस झगडे के बाद में फिर गया था मगर मुझे एहसास होने लगा आप सच मैं कितनी सुंदर हो।" इतना कहकर रोहन कुछ कशानो के लिए रुक गया। नीतू ने बेटे को टोकना जा कुछ बोलना ऊंचा नहीं संघ। अंधेरे मुख्य वो आपके अपने बेटे को देखे जा रहे थे। उसकी आंखों की चमक से मलूम चल रहा था के वो उसकी बात सुन को कितनी तूर है। रोहन भी अब अपनी मम्मी को निरश करने का इच्छुक नहीं था।
"मेरा ध्यान आप पर जाने लगा। आप घर का काम करता है फिर घर मैं आधार ग़ुमती, मैं चोरी चोरी आपको निहारता। पहले तो मुझे सिराफ हलका सा एहसास हुआ था लेकिन धीरे धीरे मेरे मन में लंबे समय तक मेरे लिए लंबे समय तक पर ताजब होने लगा, मेरा ध्यान है और कीओं नहीं गया। जितना ज्यादा मैं आपको ध्यान से देखता हूं, उतनी ही आप मुझे अधिक सुंदर लगती है। मैं आपकी हर छोटी से छोटी हरकत को गौर से देखने लगा थे। की सफाई कर्ता तुम, जब जब आप टीवी देखता हूं, मैं आपके चेहरे के हाव भाव पढ़ने की कोषिश करता हूं। जब कभी आप किसी सोच मैं गम होती हूं, बैठे बैठे खेलते हैं मैं खो जाता हूं तो मैं आपके काफी शांत हूं। . और जब कभी आप हंसी, आपका चेहरा कितना निखारा था, आप और भी खूबसूरत लगना लगती। मेरा मन आपकी तारीफ से भर उठा। लेकिन आपके चेहरे की सुंदरता तब्ब देखते हैं, तब भी आप देखते हैं। आप अंदर से खुश हो ओटी तो आप बार मुस्कान तुम, और कभी कभी आप गुनगुने लगते थे। मैं बास आपको देखता ही रह जाता हूं। मैं कैसे बताऊं के आप कितनी सुंदर लगती थी" रोहन बात करते करते अचानक चुप हो जाता है जैसे वो किसी और समय में मैं पांच गया हो। और फिर अचानक वो हड़बड़ा उठता है, वो शर्मा देता है।
नीतू पहले जिस कदर कामुक हो उठी तुम, अब उतनी ही भाव भी तुम। बेटे की बाते उसपर जादू सा असर कर रह तुम। उसका स्वर, उसकी भाव भंगिमाये बात का सबूत थी के वो बिलकुल सच बोल रहा था। अब जब वो एकदम से चुप कर गया तो नीतू को बिलकुल भी अच्छा न लगा।
"आगे...आगे...बोलो..." नीतू बेटे के हाथ को अपने साइन पर कहते हैं। उस समय वो बस यही चाहती थी कि उसका बेटा यूं ही बोलता रहे और वो सुनती रहे।
"अब मेरा ध्यान आप पर ही रहता था।" रोहन कुछ पालन के लिए सकपाका जरूर गया था। लगा था सयाद वो खुद का मज़ाक तो नहीं बना रहा का प्रयोग करें। मगर अपनी मम्मी की व्यकुलता देखो वो फिर से रंग मैं आ गया था। "आप को देखना, आपकी हर हरकत को नोट करना, अब मेरी ये दिनचार्य थे। मैं आपको उठते, बैठे, सोते, जगते हर पल देखने के मौके धुना। अब तो मैं पर भी ध्यान देने के लिए लगा था। है, आप को कॉन्सा हेयर स्टाइल जनता है, कोंसी ड्रेस मैं आप सबसे ज्यादा खूबसूरत लगती थी। हमारे दिन जब हम सब रेणुका भुया के घर उनके बेटे के जन्मदिन की पार्टी मैं गए और अपने ब्लैक कलर सूट का पंजाबी सलवार …..आप कितनी सुंदर लग रही थी तुम… कैसे काले कपड़े मैं आपका गोरा बदन चमक रहा था। एहसास हुआ आप लाखों मैं एक हो। मुझे लगा था काला सूट मैं आपकी असली सुंदरता को देख लिया था मगर उस रात जब... जब..." येहं पर रोहन फिर से चुप कर गया। मगर इस बार वो शर्म और झिझक की वजह से नहीं बालके सांस लेने के लिए रुका था। नीतू बिना हमारे फिर से सुरु होने का इंतजार करने लगी।
"मुझसे लगा था जितनी सुंदर आप हम दिन काली पोशाक मैं लगी थी, जिस तेरा आपका गोरा रंग चमक रहा था उससे अधिक सुंदर आप किसी और ड्रेस मैं नहीं लगोगी। गे।"
"वोही जगाता जो पिछले महिने अपने पड़ोशी शर्मा जी के घर हुआ था, उसी की बात कर रहे हो ना तुम?" नीतू ने तस्दीक करते हुए पुचा।
"हां मम्मी उसी रात की बात कर रहा हूं"
"हम...वो बड़ी तुम्हारे डैडी लेकर आए थे...पहली बार पेहनी थी मगर तुम आगे बढ़ो" नीतू मुस्कान बेटे के हाथों को अपने दिन में मुम्मे के आला हलका सा घिसी इस्तेमाल करते हुए है। लेकिन उसे काया मालुम के अब उसके बेटे को किसी के लिए जरूरी नहीं तुम अब तो खुद बताने के लिए बहुत बाईचैन था।
"मैंने जब आपको सीधी मैं देखा तो बस देखता ही रह गया था। मुझे अच्छे से याद है, हम रात पापा को शर्मा जी पहले ही बुलाकर ले गए थे। फिर जब छोटी छोटी जलदी जाने की ज़िद करने के लिए इस्तेमाल करेंगे तो मैंने इस्तेमाल किया। आने के लिए कहा था केओंके आप अभी भी यर नहीं हुई थी मैं आला ड्राइंग रूम मैं बैठा आपके इंतजार कर रहा था और ये सोच रहा था कि आप काया पहनोगी और उपयोग पर कैसा लगागी! .वो मेरी हर कल्पना से पार था...उफ्फ्फ्फ्फ्फ....उस रात जब मैंने पहली बार आपको लाल बड़ी मैं देखा तो मेरा दिल मेरा दिल धक्क से रह गया.........
मैं आला ड्राइंग रूम मैं बैठा आपके इंतजार कर रहा था और ये सोच रहा था के आप का पता चलेगा और इसका उपयोग कैसे लागोगी! मगर उस रात जो मैंने देखा...वो मेरी हर कल्पना से पार था...उफ्फ्फ्फ्फ्फ....उस रात जब मैंने पहली बार आपको लाल सीधी मैं देखा तो मेरा दिल मेरा दिल धक्क से रेह गया ......... ऐसा लगा जैसा मैं सपना देख रहा हूं ... कोई असली मैं इतना सुंदर कैसे हो सकता है! कुछ पालन के लिए मैं पलके झपकाना भी भूल गया। आपके मेरे पास एकर हंसते हुए मेरे बालो मैं हाथ फेरा था, सयाद आपको याद नहीं होगा...आप मेरे आगे जा रहे थे और मैं पिचे आपको देखता था यही सोचता चला जा रहा था के किसी को ठिकाना था। मैं नहीं चाहता था के कोई आपको देखे, किसी और को मालुम चले मेरी मम्मी कितनी सुंदर है। मगर मैं कुछ भी ऐसा न सोच सका जिससे आपको रोक सकता। और जिस बात का मुझे डर था वही हुआ। पंडाल मैं जाते ही सब आपको देखने लगे। सबकी नजरें घूम घूम कर आप ही की तराफ जा रह तुम। कुछ लोग खुसर फुसर कर रहे थे। मेरा दिल जल रहा था। उस समय मेरी हलत और भी बुरी जो जब जब मैंने अपने हमें दोस्तों को और घोरते हुए पाया जिनसे मेरा झगड़ा हुआ था। वो कभी आप की और देखते कभी मेरी और ..... और फिर हंस पढते। वो हरामी …… बिक्री … आपको देख-देख कर अपनी पेंट्स मैं ……… मेरा दिल किया सैलून का खून पी जाऊं” येन पर रोहन फिर से कुछ डर के लिए चुप कर गया। उसका चेहरा लाल था। आंखे गुसे से तप्प रेही थे। नीतू देख रहे थे अब भी उसका बेटा हमें रात को लेकर गुसे मैं है। उसे बेटे के हाथ अपने हाथ मैं सहलते हुए संतवना की दोबारा फिर उसे फिर से दोबारा फिर से दोबारा उसके लिए होने का इंतजार करने लगी।
"मैं जब बहार खाने की टेबल पर चाय पी रेहा था तो शर्मा जी को तीन दोस्तों के साथ बातें करता देखा। तीन अचानक थाका लगाकर हंस पाए। मुझे लगा वो जरूरी आप ही के नंगे मैं बात कर रहे हैं। कोन मैं उनकी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया और सुन्ने की कोशिश की वो लोग क्या बात कर रहे हैं मेरा शक सच साबित हुआ वो आप ही की नंगे मैं बातें कर रहे थे।
"कसम से यार शर्मा जी आप बड़े चालू आदमी हो...इतनी मासत आइटम आपकी पड़ोशन है आपने हमें पता तक नहीं लगाने दिया?" उन्मे से एक बोला।
"लगता है शर्म जी खुद ही पूरा मजा लेने चाहते हैं, क्यों शर्मा जी, किया कहते हो?" दशहरा कह रहा था।
"अरे यार अपनी किस्मत ऐसी होती तो बात ही क्या थी! हं ... दास साल हो गए हैं कोशिश मरते हुए मगर एक बार भी साली ने कभी मुंहकर तक नहीं देखा"
"शर्मा जी, एक बार हमकोशिश करने दिजिये, फिर देखना मुध कर भी देखेंगे और दिखेंगी भी....खुद दिखेंगी सब खोल कर" हमें हरामी की बात पर चारो हंसने लगे।
"अरे भाई मैं अकेला नहीं पूरी क्लोनी कोशिश कर चुकी है... और भी बहुत से है मगर मजाल है साली ने किसी को मौका दिया हो..." शर्मा जी की बात सुनकर मुझे उनपर इतना गुस्सा आया मम्मी....मैं आपको बता नहीं सकता...मगर मेरा दिल...मेरा दिल...बहुत खुश भी हुआ के आप ऐसे कुट्टन से बची हुई थी। फिर उनमे से एक बोला..
'शर्मा जी इसे जबरदासत माल को अपने अपने... अपने... कैसे हमें गंदे घटिया लफज को कहूं मम्मी... हम बहनछोड़ ने कहा वो आपको अपने पर बिठाने के लिए जान भी दे सकता है और मेरा दिल किया उसकी सच मैं जान ही निकल दूं रोहन अपनी मम्मी के हाथों से हाथ चूड़ा लाता है। उसके नाथूने फुले हुए थे, वो हाथों को मुत्तियों में भींच रहा था जैसे वो अभी किसी का काटल कर दूंगा।
"उफ्फ्फ रोहन तुम भी ना ... ऐसे कटों की परवाह कीन करते हो .... मैं ऐसे लोगों के मुंह पर ठक्ती भी नहीं हूं" नीतू फिरसे बेटे के हाथों को अपने हाथ में आने वाली बोली। अपने बेटे पर नाज़ महसूस हो रहा था का प्रयोग करें।
"मलम हैं मम्मी.......वो कमी शर्मा जी से कह रहे हैं कि वो उन पढ़ो मैं रहने के लिए किसी जागे का बंदोबसत कर दे फिर वो आपको पाकर आपके साथ... बिक्री हरामी.. ....मगर फिर शर्मा ने वो कहा जिसे सुनकर मेरा दिल खुश हो गया..."
"एसा काया शर्मा ने" नीतू अचंभीत हो गई। तो रोहन मस्कट बोला।
"उन्मे से एक बोला था-शर्मा तू यार इस आइटम के अदोश पड़ोश मैं कोई जगे किरे पर ले देह, फिर देख इसे कैसे पटायेंगे। तू कहता है किसी से पति नहीं है। फिर हम भी मजा लेंगे तुम भी मजा करेंगे करेंगे -वो दल्ला खुद को बहुत बड़ा हीरो बता रहा था...मदरछोड़...मगर उसकी बात पर शर्मा जी बोले यार ऐसी गलती भूल कर एक भी करना। तेरी राह एक आदमी साली के पीछे पड़ गया था। बोलता था इसका कांड करके ही छोड़ेगा... जब नहीं हटा तो इसे अपने इंस्पेक्टर भाई को बता सकता है...इसके भाई ने उसे धुनी की वो येन से भाग गया....आज तक वापस नहीं आया' शर्मा जी की बात सुनकर मर्ज हांसी निकल गई।
"क्या बात करते हो शर्मा जी। इस्का भाई इंस्पेक्टर है?" वो चारो पुचने लगे।
"हां तो और किया... इसिलिए तो हम कभी कभी हुड़ पार नहीं की। वर्ना वो साला अपनी गंद भी सुजा देता" शर्म की बात सुनकर वो चारो हंस पढ़े।
"अच्छा किया शर्मा जी आपने बताया दिया... वर्ण मैं तो थान चुका था इसका कांड करके चोदना है। चाहे साली को उत्थान न पढे ... ऐसे माल के लिए तो मैं दास बार पुलिस की मार खा सकता हूं "
"अच्छा दो दांडे पढेंगे तो गंद फट जाएगी .........इसके तो लगता है वो लल्लू राम ही भूलभुलैया लुटेगा" शर्मा जी की बात से मुझे बहुत अच्छी लगी होगी उन्होनो पिताजी को गली दी थी। मैं कभी नहीं जनता था के कोई आपको छेदा है और मामा जी ने उसे ठुकाई की है" रोहन हंसते हुए बोला।
"उन्नह वो बात तो बहुत पुरानी है .... मगर शर्मा कुट्टे को कैसे मालुम चल गई .... खैर अच्छा ही हुआ ... तू आ जाएगा" रोहन को वापस रंग मैं आते देख नीतू भी खुश हो गई तुम।
"उसके बाद वो सब लोग चले गए ... मैं कितना डर वहां खड़ा रहा ... मुझे बहुत गुस्सा था मगर जब मेरी नजर पेंट पर पड़ी तो मैं ... मैं ..." रोहन फिर से चुप कर गया।
"तेरा खड़ा हो गया था" नीतू ने बेटे के पजमे मैं हिलोर ले लुंड की और देखता कहा। रोहन ने शर्मा कर अंखे नीची कर ली। "अब शर्मा केओं रेहा है ... तुझे पहले ही कहा है ... खुल कर बोल .... ऐसे बोल जैसे तू अपनी मम्मी से नहीं अपनी गर्लफ्रेंड से बात कर रहा है। अब बता तेरा सच मैं खड़ा हो गया था ना" नीतू भारी सांसो के बिच फुसफसा कर बोली।
"हुन मम्मी......"रोहन धीरे से बोला।
"इसी लिए के वो लोग मेरे नंगे मैं गन्दी गन्दी बातें कर रहे थे ... इसी लिए के वो मुझे एक नंबर की वस्तु बोल रहे थे ... मासत माल बुला रहे थे तेरी मम्मी को... ...तेरी मम्मी का कांड करना चाहते थे वो लोग...ये सुनकर तेरा खड़ा हो गया था ना"
"नहीं मम्मी...मैं तो उन लोगों का खून..."
"मलुम हैं मुझे... तुझसे अपनी मम्मी की बेझिझक बरदाशत नहीं हुई... लेकिन तेरा खड़ा तो इसिलिए हुआ था के वो मेरे नंगे मैं गंदी गंदी बातें बोल रहे थे" नीतू रोहन की बात बिच मैं काटकर बोली। रोहन ने कोई जवाब नहीं दिया।
"उफ्फ्फ्फ्फ्फ...अब पीबीर से चुप कर गया। मैं सिराफ पुच रेही के तेरा इसिलिए खड़ा हुआ था के वो लोग मेरे नंगे मैं वो सब बोल रहे थे ... तू बोल दे के हां मम्मी मेरा इसिलिए खड़ा हो गया था बास बात इतनी है। खैर तू नहीं संघ... अब आगे बोल..."
"मैं समझौता हूं मम्मी ......... आप सही कह रही हैं ..." अखिर नीतू ने रोहन को रास्ते पर ला ही दिया था। "मेरा उन लोगों की बातें सुन कर ही खड़ा हो गया था। वो लोग वहां से खास गए थे। मैंने वहां घूम घूम कर देखा अगर कोई और भी आपके नंगे मैं कुछ बोल रहा हो... लोग आपको घुर घुर कर देख रहे हैं मगर मैंने किसी और को बातें करते नहीं सुना मेरे दोस्त जरूर दूर खड़े हंस कर बात कर रहे हैं लेकिन लगता था वो अब किसी और बात को लेकर हंस रहे हैं। जलाद ही भजन सुरु हो गए थे। फिर सब लोग पंडाल मैं बैठे थे। फिर हर किसी का ध्यान हट गया था। मैं आपसे थोड़ी दूर बैठा था और आपको देख रहा था। बाकी के पांच घंटे गए ऐसे मैं गरीब निकला था। बास आपको ही देखता रह। अखिर को आरती हुई और सब घरो को जाने लगे। हम जब घर ढूंढे तो जाते ही छोटी और पापा सो गए। मगर मुझे जरूरत नहीं आ रही थी। मैं सयाद सोना भी था। मैं चाहता हूं। था के आपके शादी से पहले आपको जी भर कर देख लू... बुरा मैं मालुम नहीं आप कभी वो बड़ी पहनोगी …. आपने हाथ मन धोकर चले गए थे। आप थी हुई थी और कोई मेकअप भी नहीं था मगर फिर भी आप कितनी सुंदर दिख रही थी। आपके ने हाथ मुं धोते समय अपनी शादी का पल्लू एक टेराफ को कर दिया था और उसे आपका सिना ... आपका सिना ..."
"मेरा सिना तुम्हें दिखी दे रहा था ... और मेरे सिना देखते देखते तुम्हारा फिर से खड़ा हो गया था, ये ना?" नीतू स्वयंमेव ही बोल उठी। वासना फिर से दोनो मा बेटे पर हवी होने लगी थी और नीतू कफी खुल चुकी थी। बेटे से एशिल स्वर मैं बात करते हुए जरा भी संकोच महसूस नहीं हो रहा था का प्रयोग करें।
"हम्म्म...मम्मी...मैं झूठ नहीं बोलूंगा...चाय पीकर आप कुछ डर बैठी। फिर कुछ डर बाद आप उठकर खड़ी हो गई थी। आप ने कहा के आपको जरूरत आ रही है।" है और आप सोने जा रहे हैं और फिर आपने अपने बहन फेलायी और अंगदयी ली.... मेरा दिल किया मैं आपको बहुत मैं भरकर चुम लून" इस बार रोहन ने खुले दिल से अपने मन की बात कह दी और इस्का इनाम भी मिला का इस्तेमाल किया।
"अरे बेवकोफ तो चुम लेना था ना... एक बेटा अपनी मां को चुम सकता है...इसमे कुह भी गलत नहीं है..."
"मैं डर गया था ... आप गुसा हो जाएगा .... मेरा दिल बहुत कर रहा था आपको बहुत मैं भर लूं ... आपका सिना आपने साइन से भींच लून मगर मेरी हिम्मत जवाब दे गई ......"
"तो अब चुम ले ......... अब चुम ले ........." नीतू आगे को बढ़कर बेटे के गाल पर एक बहुत अच्छा जिला चुम्बन अंकित कर देता है।
"तो अब चुम ले ......... अब चुम ले ........." नीतू आगे को बढ़कर बेटे के गाल पर एक बहुत अच्छा जिला चुम्बन अंकित कर देता है।
चुम्बन लेने के बाद भी नीतू ने अपने होने वाले हैं के गैलन से हटाये नहीं। जितना सुखाड़ एहसास अपनी मम्मी के कोमल गाल के अपने गाल से होने से हो गया था उतना ही मम्मी के तपते होते उसके गाल को जला भी रहे थे। रोहन और से तो तड़फ रहा था अपनी मम्मी को चुने के लिए मगर वो हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। दिल कह रहा था ऐसा सुनहरी मौका दोबारा नहीं मिलेगा लेकिन दिमाग इस्तेमाल दारा रहा था।
"केया हुआ ... चुमेगा नहीं ... अब तेरा दिल नहीं कर रहा मम्मी को चुम्ने का" नीतू अपना गाल धीरे से बेटे के गाल पर रागदति उसकी भावनाओं को भड़काती हुई बोली। अब तो रोहन के लिए भी खुद को रोकना संभव हो गया था। उसे धीरे से अपना मुंह घुमा कर अपने होने मम्मी के गाल पर सताए। 'पुच' की हल्की सी आवाज के साथ रोहन ने अखिरकर अपनी मम्मी को चुम ही लिया।
"ये काया था?..... तुम इसे चुम्बन कहते हो?.......उस दिन इसे ही चुनना चाहते थे मुझे" नीतू ने अपना चेहरा बेटे के चेहरे के सामने देर से हुए पुचा। वो अपने नाक की नोंक से बेटे की नाक को सहला रह तुम। रोहन नीतू को कुछ भी जवाब न दे पाया।
"लगता है पहले कभी लड़की को चुमा नहीं है, है ना!" रोहन अपनी मम्मी के इस स्वाल पर ना मैं सर हिला देता है। "इतने बड़े हो गए हो, अभी तक तो दो तीन का कांड कर देना चाहिए था और तुम्हारे किसी लड़की को चुमा तक नहीं है" रोहन का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है और वो नजर झुका लेता है। नीतू को फ़ौरन एहसास जोता है उसके बेटे की दुखी नास को डबा दिया था मगर वो चतुर नारी बड़ी बात को संभलना बड़ी अच्छी तेरह से जनता थी। नीतू फिर से अपना गाल बेटे के गाल पर धीरे-धीरे प्यार से रागदती फुसफुसा कर कहती है।
"एक मौका और देता हूं। फिर से कोशिश कर लो। नहीं तो दिल की तमन्ना दिल मैं रह जाएगी" नीतू ने इतना कहकर अपने भीगे फिर से बेटे के गाल पर रागड़े। रोहन ने अपने सुखे होंतो पर जिभ फेरी। गबरहत और रोमांस से उसका दिल उसके सिने मैं धम्म धम्म वज्ज रे था था। उसे अपने छेरे को घुमाया। वो अपने होते हैं मम्मी के गाल से चुयने वाला ही था के इस्तेमाल अहसास हुआ घबड़ाहट और अतिउत्तेजना के मेरे उसके होने फिर से सोख गए हैं। उसे फिर से अपने जीभ से अपने होने को गीला करना चाहा मगर उसके होने नीतू के गैलन के इतने करीब आ चुके थे के अपने होने को भीगोती उसकी जिवा की नॉन नीतू के गाल को भी सहला गई।
"उन्नह्ह्ह्ह" नीतू ने धीरे से बड़ी बड़ी। रोहन घबड़ा उठा मगर उसकी मम्मी ने अपना गाल नहीं हटा। "उफ्फ्फ्फ अब चुमेगा भी जा रात भर इंतजार ही करता रहा" नीतू बेकरारी से बोली। रोहन ने तीसरी बार ध्यान से अपने होने पर जिभ फेरी के वो जस्की मम्मी के गालों को टच न कर जाए और फिर उसे अपने भीगे हों नीतू के कोमल गाल पर रख दिए। नीतू का जिस्म धीरे से कामकम्पा गया। बेटे के सुलगते होंतो से उसका गाल झूला गया था। रोहन तीन चार सेकंड तक अपने होते हैं मम्मी के गाल से सताए रखता है। वो हमें स्वद को अपने जहान में बस लेना चाहता था जिस तरह से जिंदगी मैं पहली बार चखा था। रोमांस, वासना, प्रेम से भरपुर वो एहसास उसके हृदय में हमेश के लिए अंकित हो गया था।
"उन्ह्ह्ह ........ अच्छा था .........तुगे कैसा लगा ....सच सच बताना ..." नीतू मुस्कान बेटे को छेदती है।
"अच्छा... अच्छा लगा...मम्मी......." रोहन शर्माता जवाब देता है।
"मगर मैंने सोचा था सैयद तुम मुझे गल पर नहीं कहीं और चुमोगे...मसलन मेरे होंथो पर... खैर तुम्हारे अच्छे सुरुआत तो की...।" नीतू बार मस्कट बोली है।
रोहन फिर से शर्मा गया। मगर जब उसे अपने जहान में अपनी मम्मी के वो लफज दोहरे के वो इस्तेमाल उसके होने पर चुने की उम्मीद रखती थी तो पजमे मैं उसके लुंड ने जोरदार अंगदयी ली। नीतू के रसीली गुलाबी होंतो को चुनने की कल्पना मटर से उसका लुंड बेकरार हो उठा था। सयाद वो इस्तेमाल एक और मौका देने वाली थी...
"खैर अब जब तुम मेरी गाल ही चुनना चाहते थे तो यही सही।" नीतू ने बेटे के चेहरे की बेकरारी को पढ़ा लिया। मगर वो अब सयाद थोड़ा और बेकरार करना चाहते का प्रयोग करें। "अगर तुम्हारा दिल करे तो बताता देना... मेरे होंथो को चुनने के लिए ....चुनने के लिए" रोहन ने कहने के लिए मुझे खोला मगर उसके मुंह से कोई लफज बहार न आ सका। नीतू के होंथो को चुनना जिंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश पूरी होने जैसा था मगर उन रसीले होंतो को अपने होने मैं भरकर चूसना वो तो कल्पना से पारे था। नीतू ने बेटे की आंखें मैं प्यास और मजबूरी का एसा भाव देखा के उस्का हृदय आगे पिगल उठा।
"बाद मैं तुम्हें सिख दूंगा अच्छे से .... कैसे एक लड़की को गाल पर चुमते हैं .... कैसे उसके होने को चुमते हैं .... कैसे उसके होने को अपने होने मैं भरकर चुस्ते हैं। तुम। मेरे साथ अभ्यास कर लेना और जब विशेषज्ञ बन जायो तो दुसरी लड़कियों पर आजमाना... खैर बाद की बात बाद में... अंगदई लेटे देखा ...... मेरे साइन को मेरे कासे हुए लाल ब्लाउज मैं देखा उसके बाद काया हुआ ... . रोहन के गरीब जिस्म मैं अग लग गई। वो अपनी मम्मी को पक्का कर उसे चलाते हैं तो पूरी तेरा से चुस लेना चाहता था। मगर वो एसा कर तो नहीं सकता था। कुछ पालन टक वो खुद को सम्भलता रहा।
"हमें जगाने वाली रात के बाद मैं अक्सर आपके..." रोहन ने अभी बात चालू ही की थी के नीतू ने फिरसे बिच मैं ही काट दिया।
"बाद की बात बाद मैं। पहले मुझे ये बतायो जब जगारे वाली रात के बाद सुबेह हम दोनो अकेले द और जब मेने अंगदयी ली थी और तुम्हारे लाल ब्लाउज मैं कासे मेरे उन दो को देखा था तो मेरे जाने। ..." नीतू ने वो बात कुछ इस अंदाज में कही थी के रोहन की आंखों के सामने वो नजरा फिर से जीवन हो उठा जब नीतू ने अंगदगी ली थी और उसके भारी मम्मे उनके ब्लाउज को फटने पर उतरु हो गए थे। उसका लुंड फटने की हद तक बेकाबू हो चुका था।
"काया हुआ....बटायों न हमें सुबेह तुमने मेरे जाने के बाद क्या किया?" नीतू अपना चेहरा फिर से अपने हाथ पर रखते हुए पुछती है।
"मैंने ....मैंने किया किया! मैं भी आपके जाने के बाद सोने चला गया था" रोहन थोड़ा सा घबड़ाता हुआ कहता है।
"रियली! मुझे लगा था ....मुझे लगा था तुम मेरे वो दो देखने के बाद बाथरूम गए होंगे"
"बाथरूम... भला मैं बाथरूम क्यों जाऊंगा" नीतू जनता थी के रोहन उसकी बात का मतलब अच्छी तेरा से जनता है मगर जान बुगकर अंजन बन रहा था।
"केयों ......... सयाद तुम्हें याद नहीं आ रेहा ... चलो मैं कोशिश करता हूं तुम याद करने की ......... जब मैं तुम्हारे सामने गए तो मेरा आंचल एक तेरा था ... सही है ना ... हुं तो फिर में बहुत ज़ोरदार अंगदयी ली तुम ... और तुम्हारे जिंदगी मैं पहली बार ... मेरे ... अपनी मम्मी के दो अनार देखे थे...पहली बार है ना...तो क्या मेरे दो अनार देखने के बाद तुम्हारा खड़ा नहीं हुआ था। हुंह?..सच बताना।" रोहन के बिना बता भी नीतू जनता थे सच किया था। वो तो बास उसके मुंह से केलवाना चाहते थे।
"हुया था" रोहन फुसफुसा कर बोला। नीतू के चेहरे पर मुस्कानहत फैल गई। अब वो बिना कुरेदे सब बताने लगा था, साफ था उसकी झिझक कम होती जा रही थी।
"तो तुम्हारा खड़ा हुआ था और तुम सोने चले गए? ऐसे जरूरत इतनी है भला? तुम्हारे पापा को खड़ा होता है तो वो ज्यादा रात को भी मुझे उठा कर सुरु हो जाते हैं। जाहिर है जब मरखड़ा होता है। ....और फिर तुम रात के थे भी होंगे, है ना? तुम्हारे सोने की जलदी भी होगी ... तो फिर तुम इसका कुछ इलज तो किया होगा ना? है ना? अब इलज तो तुम एक ही कर सकते हैं द...बाथरूम मैं जकार इसे हिला सकते थे...तब तक जब तक ये ढीला न होता...है ना...तो अब तुम याद आ गया होगा के तुमने किया था... के बाद" नीतू को अपनी जांघो पर जिलेपन का एहसास हो रहा था। उसी छुट से इतना पानी बह रहा था के उसे जाने तक भीग गई थी। ऐसी उत्तेजन ऐसी मदकाता उसे जिंदगी मैं पहले कभी महसूस नहीं की तुम।
"जी वो मैं....मैं...मैं" रोहन से कहते नहीं बन पा रहा था। नीतू की बातों से उसकी हलत कुछ ऐसी हो गई थी के उपयोग अभी अपना ढील करने की सखत जरूरी मेहसूस हो रह तुम। उसका लुंड इस कदर अकड़ हुआ था के इस्तेमाल दरद महसूस होने लगा था।
"मैं ... मैं किया लगा रखा है ... सिद्ध बोलो बाथरूम मैं जकार अपना हिलाया था जा नहीं?" नीतू हिलाने वाले लफ़ाज़ पर ज़ोर देते कहते हैं।
"हिलय था..." रोहन एकदम से बोल उठा। नीतू विजयी मुस्कान से उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोल
"ये हुई ना बात.......अब आगे बतायो" नीतू सबशी देते हुए बोली का इस्तेमाल करें। नीतू की बात से रोहन के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। एक उसे महसूस किया के वाकी मैं वो जो चाहते हैं अपनी मम्मी को कह सकता है। उसे महसूस किया के उसकी मम्मी उसकी बात का किसी हरकत का बुरा नहीं मनाएगी। वो एहसास इतना प्यारा था, इतना वेगमयी था, अपनी मम्मी पर इतना प्यार आया के रोहन से रहा नहीं गया और उसे आगे को झुककर तप से नीतू को गाल पर चुम लिया। नीतू बेटे के इस हमले के लिए कटाई त्यार नहीं थे और उसकी हिम्मत पर स्तब्ध थे। मम्मी के चेहरे पर वो भव देख एके रोहन घबड़ा उठा सयाद उसे जलदबाजी कर दी तुम।
मगर अगले ही पल नीतू मस्करा उथी। वही प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर फेल गई जिससे वो इतनी सुंदर इतनी भाववे लगने लगे थे। रोहन ने चेन की सांस ली और वो भी मस्कारा उठा।
"उम्ह्ह्ह्ह ... बहुत प्यार आ रहा है अपनी मम्मी पर ... हुंह" नीतू हंस पाढ़ी। "चलो अब बाकी प्यार बाद मैं कर लेना ... अभी बात आगे बढ़ाओ"
"उम्ह्ह्ह्ह ... बहुत प्यार आ रहा है अपनी मम्मी पर ... हुंह" नीतू हंस पाढ़ी। "चलो अब बाकी प्यार बाद मैं कर लेना ... अभी बात आगे बढ़ाओ"
"तो उसके बाद मैं जाने कैसे कब आपको देखने का मेरा नजरिया बदलाने लगा। आप कितनी सुंदर हैं इस्का एहसास टन मुझे हो ही चुका था लेकिन धीरे-धीरे मुझे है बात का भी एहसास होने लगा के साथ सुंदर भी" बार रोहन बिना झिझक के बोल रहा था। अब तो लगता था के वो खुद अपनी मम्मी को अपनी भावनायें बताना चाहता था। अचानक से उसके अंदर दबी हुई भावनायें, उसके कमने, उसे खवाहिशें बहार आने के लिए मचाने लगी। नीतू भी बिच बिछन मैं बेटे के हाथों को सहलाती उपयोग बढ़ा दे रेही।
"अब मेरी नज़रें आपके चेहरे में सुंदरता के शिव कुछ और भी धुंधने लगी थीं। पहले मैं आपको देख आपकी सुंदरता पर मोहित होता था, आपका हंसना, आपका गुनगुनाना, आपका मुझे प्यार जाता है। मैं कितनी खुशी कितना आनंद मिला था। मगर अब मैं इतने में संतोष नहीं था। मैं बाईचैन रहने लगा था। मेरा दिल जैसा मुझसे कुछ और भी चाह रहा था। उसकी संतुष्टि आपको देखने मटर से नहीं था? मैं वो बाईचैनी एकदम से क्यों महसूस करने लगा था? खुद मुझे समाघ नहीं आ रहा था। मगर अब मेरी नजर आपके सुंदर चेहरे के अलावा आपके बदन पर घुमने लगी थी। यह है मैं खुद को रोकने की कोशिश कर्ता उत्नी ही मेरी भावनायें भद्रक उती। मेरा खुद पर नियंत्रणन खातम होने लगा था। लगती जब कभी भी आप शादी तो मेरी नजर बार बार आपकी कमर पर जाति। जब कभी आपकी मेरी और पीठ होती तो मेरा ध्यान आपके रातों पर जटा। खास कर जब आप जींस पहनना तो मेरे नजरें आपके नितांबो का पिच करने लगती है। जब भी आप शॉर्ट्स पहनती तो मैं आपकी लंबी गोरी टंगे देखता हूं। आपकी जंघे देखने में कितनी मखमली दिखी थी, मेरा दिल करता मैं आपकी जांगो को सहायूं, उन्हे चुम लूं। अब हलत ये थे के ना सिराफ आपको देखने का नजरिया बालके आपके पार्टी मेरी सोच मैं भी तबदीली होने लगी थी। आपके काम आंग एक चुंबक की तेरा मेरा आकर्षण आपकी और खेंच लेते हैं। अब मैं खुद को रुकने की कोशिश नहीं करता था। अब मैं आपके उन खास अंगो को खुल कर देखने की कोशिश करता था। जब भी आप मेरे सामने आते तो मेरा ध्यान खुद बा खुद आपके साइन पर चला जाता। जब भी आप किसी टी शर्ट मैं होती जा कभी बिना दुपट्टा के होती तो वो मेरा भाग्यशाली दिन होता। मैं उनकी गोलाई को, उनकी मोटीई को आंखों से मैपने की कोशिश करता हूं। जब मैं उनको इतने गौर से देखने लगा तो मुझे पता चल गया के आप के बार और ब्रा नहीं पहचानती थी" रोहन येन पर रुककर अपनी मम्मी की और देखता है जैसे उससे तस्दीक कर रहा हो।
"हां तुम सही कह रहे हैं .... मैं बिच बिच ब्रा नहीं पहचान ..... बहुत तेज नजर है तुम्हारी .... आगे बताता और किया देखा तुमने?" नीतू मुस्कान कहती है।
"जिस दिन आप ब्रा नहीं पहचानती तुम हमारे दिन आपके दो ... उन दो को मैं अच्छी तेरह से देख सकता था। एसा ही एक दिन था, आप ने अपनी एक पुरानी टी शर्ट डाली थी, अपने मुझे बताया भी था। के वो शादी से पहले की है, बहुत टाइट तुम, इतनी टाइट के मुझे आपके सिने पर उन दोनो की नॉनके दिखयी दे रही थी...बिलकुल साफ साफ दिखी दे रही थी। आपको सयाद एहसास नहीं था... मगर आपकी टी शर्ट के और दोनो बेचेरे फंसे पढे थे। उनका पूरा पूरा आकार दिखाई दे रहा था। आप शिकायत कर रहे थे के टी-शर्ट पहले से बहुत टाइट हो गई है मगर मुझे मालुम था, टी शर्ट वैसी की वैसी आप ही वो लेकिन दो बहुत बड़े हो गए थे, मोटे हो गए थे।"
"तू इतने याकेन से कैसे कह सकता है कि मेरे ये दो इतने बड़े हो गए हैं!" सीमा एक अपने चेहरे के आला से हाथ निकलकर अपने दोनो मुम्मो पर हाथ रख लेते हैं। "मुझे तो नॉर्मल साइज के ही लगते हैं" वो दोनो मुम्मो पर हाथो को घुमाते बोली। राहुल का लुंड उसे पेंट मैं फिर से झटके मारने लगा।
"आप मेरी निगहों से देखी आप को खुद मालम चल जाएंगे। और मैं इसे ही नहीं कह रहा हूं। मैंने देखा है। जब भी आप अपनी सहेलियों के साथ होती थी, जब भी हम बहार घुमने जाते थे, औरतों के साथ मिलाकर देखता था। आज तक किसी के भी आपके जितने मोटे नहीं देखे। और मोटे किया, एसा बहिया जोड़ा भी नहीं देख। टीवी पर भी नहीं देखा।
"कमल है ... मेरे इतने बड़े हैं और मुझे मालुम भी नहीं है" इतना कहकर नीतू अपने मुम्मो से हाथ हटा है और फिर अपनी ढीली सी त शिट को ठीक मुम्मो के ऊपर से खिंच कर उनका भावय रूप बेटे की आंखें सामने दृष्टि है।
"आज भी अपने ब्रा नहीं पहचान है ना?" रोहन अपने सुखे होंतो पर जीभ फरता कहता है। नीतू के दोनो निप्पल अकड़े हुए टी शर्ट को छेद कर बाहर आने को तूर द।
"उउफ्फ्फ्फ्फ.......मैं तो भूल गई...तू तो कपड़ो के ऊपर से कुछ कुछ देख लेता है...हुं...नही पेहनी मेने ब्रा..... .कितनी तीखी नजर है तेरी रोहन...... खैर अब आगे बता..." नीतू फिर से अपनी कुहनियां जांघो पर रख कर अपने हाथ ठुड्डी के आला रख लेटी है।
"दिन पर दिन मेरा होंसला बढ़ता जा रहा था। अब तो मुझे बात का एहसास तक नहीं होता था के तेरा देखना गलत है। ये बात मेरे दिमाग मैं आनी बंद ही हो गई थी के अपनी मम्मी के लिए। अब तो मेरी निगाहें आपके जिस्म के अंग का जजा लेने लगी थी। एक बार अपने किटी पार्टी मैं जाना था और अपने मुझे वहां तक छोड कर आने के लिए बोला था। मैं तुम, उफ्फ्फ आपके दो कितने बड़े बड़े नजर आ रहे थे, सच मैं मम्मी कैसे बताऊं कैसा नजर था। मेरा तो हमें दिन आपको देखते ही खड़ा हो गया था। आपने मुझे बाहर जाने के लिए नहीं बोला था। आपके मेरे सामने बड़ी पहचानी थी। और जब आप मेरे सामने बड़ी गायब रही थी, तब मैंने जाना के आपके इन दोनो का इतना बड़े लगने का एक काम भी आप थी। मैंने एक नई बात जानी थी जब मैं आपको छोडने गया था और आपकी साड़ी फ्रेंड्स पहले से ही वहां पर मोजुद तुम तो मैंने देखा था के आपकी कमर ही सबसे पतली है। कैसा अद्भुत संजोग था जब मैं आपको छोडकर घर वापीस आया तो टीवी पर विनोद खन्ना और माधुरी का वही गाना चल रहा था जिसमे वो उसकी कमर को बार चुमता है, चुस्ता है और वो कैसा आ रहा है। हमारे जाने को देखने के बाद मैं सोच में पढ़ गया के आपकी कमर को चुनूंगा कैसे लगेगा। उस दिन जब आप किटी पार्टी से लौट कर अपने बेडरूम में सो रही थी तो मैं चोरी चोरी आपके बेडरूम में आया था। मैंने देखा था के आप अभी भी ब्लाउज और पेटीकोट मैं सो रेही थे। मैने हम दिन एक हद पर की तुम। चोरी चोरी आपके पास बिस्तर के किनारे पर बैठा मैं आपकी कमर को निहारने लगा। आपकी गहरी कभी को देखने लगा। मेरा दिल किया, आपकी दो जैसी कमर को चुम लू, आपकी नाभी मैं अपनी जिवा चलायु मगर मैं हिम्मत ना कर सका। कितनी डेर मैं आपकी कमर और आपके साइन को घुरता रहा। आपकी सांसों के साथ आपका सिना कैसे ऊपर आला हो रहा था। नाजाने कैसा मेरा चेहरा खुद ब खुद आपके सिने के एकदम ऊपर चला गया था। आपका सिना मेरे होने के इतना पास था के ब्लाउज का कपड़ा मेरे होने को चू रे था, बिलकुल मेरी नजरों के सामने कैसे आपके दो ऊपर आला हो रहे थे, अचानक मुझे होश आया और फिर तेजी से आपके काम से। आगर कुछ डेर और वहां रहता तो जरा मैं कुछ ऐसा कर बैठा के आपकी जरूरत खुल जाती और फिर मेरा ना जाने के होता होता। वहन से सिद्ध मैं बाथरूम मैं गया और मैंने अपने हमें को...उस को हिलाया। उस समय पहली बार हिलाते हुए मेरे दिमाग मैं आपके अंग घूम रहे थे। मेरी आंखे बंद थी मगर आपके मोटे मोटे...वो दो मेरी आंखों के सामने थे....आपके गोल मटोल कुल्हे मेरी आंखों के सामने और उस दिन जब मैं...जब मैं चुता... ...उउफ्फ्फ्फ...ऐसा लगा जिसम से जान ही निकल गई हो...इतना मजा पहले कभी इस्तेमाल किया मैं नहीं आया था।"
"आगे...उम्र...अब रुको मत...।" नीतू गहरी गहरी सांसों के बिच बोली।
"उस दिन के दुसाहस के बाद मेरी हिम्मत बहुत बढ़ गई थी। मेरी कामना भीषण रूप धारण कर गई थी। मैं आपके हमें रूप को देख रहा था जो मेरी आंखों से ओघल था, एक बेटे की आंखों से सामने था। केयोंके मम्मी सिराफ मम्मी तुम। मगर अब बेटा जान चुका था मम्मी एक बहुत सुंदर औरत भी है। और वो सुंदर औरत हद से ज्यादा कामुक भी है। इतनी कमुक के उसका बेटा भी उसका आशिक बन गया था। आपके हर अंदाज में मैं सिराफ आपकी सुंदरता नजर आती थी वही अब मेरे आपके हर अंदाज में आपकी हर हरकत में सुंदर के साथ साथ कामुकता नजर आती थी आप एक बार मेरे सामने से गुजरा जाति और आपके सामने मेरे सामने से गुजरा कुल्हो पर पढ़ जाति तो मेरा खड़ा हो जाता है। आप एक बार मेरे सामने झुक जाती है और आपके दो मुझे दिखी दे जाते हैं, तो मेरा खड़ा हो जाता है। मैं मेरे हाथ दुखने लगते हैं लेकिन वो नहीं बैठा कैसे बैठा जैसी आप जैसी कामुक मम्मी हो और उसका बैठा जाए, ये संभव है। मुझे याद है एक बार मैं दोपहर को टीवी देख रहा था और तबी आप अपने बेडरूम से सोने के बाद निकली। अपने वही दरवाजे में मैं खड़े खड़े अंगदय ली..., निद्रा अभी भी आपके चेहरे पर चुनी हुई थीं, आपके आंखे अभी भी सोने के करन लाल थे, और अपने कोई मेकअप भी नहीं किया था सुंदर मगर रे आप। आपके आम आपकी टी शर्ट को ऊपर उठा रहे थे। मैं आपको कितना समय देखता हूं। आपकी सुंदरता से कमुकता चालक चालक कर चरण और बिखर रहे थे। उस दिन...उस दिन ना जाने कैसे...कब...केयों मेरे दोस्तों के वही अल्फाज मेरे दीमाघ मैं आ गए...उस दिन जब मैं अपना हीला रहा था तो मेरे दिलो दिमाघ मैं आपके कामुक अंग घुम रहे थे...मेरे जहां मैं मेरे दोस्तो की वो बातें गुंज रेही थे...आप कब मेरी मम्मी से मेरी सुंदर मम्मी बनी और कब सुंदर मम्मी से कामुक मम्मी बनी मुझे पता तक नहीं चला . और मैं जान गया के मेरे दोस्त आपके नंगे मैं जो भी कहते थे, सब सच कहते थे। अब मुझे भी आप एक नंबर का माल..." रोहन अपनी बात पूरी नहीं कर सका।
"अब तुम अपनी मम्मी एक नंबर का माल नज़र आती थी, अब तुम्हारा दिल बी है माल पर हाथ साफ करने का हो रहा था, है ना" नीतू बेटे की बात पूरी करता है।
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