कांता - सेक्स की देवी Part 4

 




          कांता - सेक्स की देवी  Part 4

स्वामी जी ने उसपर कुछ जल चिड़का और अपने हाथों से धोने लगे का उपयोग करें।  फिर उन्हों कांता को इसारे से इसे धोने के लिया कहा।  कांता ने हमें शिव लिंग पर अपना हाथ राखी और इस्तेमाल करने लगी, वो शिव लिंग कोई 3 "मोटा और कोई 10" लंबा था।  कांता जब इज शिव लिंग को पकार कर ऊपर नीच धो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे उसके हाथों में शिव लिंग नहीं शिव का लिंग हो।  क्या बात के एहसास होते ही कांता के गालो पर हलकी लाली छा गई।  स्वामी जी कांता के चेहरे के भाव को देख कर समझ गए की कांता के मन में कौन सी बात आ रही है।  स्वामी जी ने जिस तरह से कांता को बहकाया था कि हम से कांता भी उनके दिमाग की कायाल हो गई थी।  स्वामी जी किसी उत्वाले में मजा खराब नहीं करना चाहते थे।  वो पहले काँटा के शुद्ध शरीर को आनंदित करना चाहते थे।  फिर धीरे-धीरे उसके दिमाग पर सेक्स का जल बिछना चाहते थे।  और वो क्या मैं कामयाब भी हो रहे थे।  स्वामी जी ने कांता के मनोभावों को भापकर कांता से कहा:

 स्वामी जी: कांता बेटी... तुम क्या सोच रही हो......... ये शिव लिंग है।  बगवां शिव को सुंदर स्त्री बहुत पसंद है इसलिये तो जो स्त्री या लड़की भगवान शिव का आराधना कार्ति हो वो शिव लिंग को ही पूजा है।  तुम्हारा इज शिव लिंग का स्पर्श करना अर्थ शिव को स्पर्श करना है।  इसलिये इज ये समाज लो की तुम शिव लिंग को नहीं साक्षात शिव भगवान की पूजा कर रही हो।  भगवान शंकर बड़े ही भोले होते हैं, लेकिन क्रोध भी बहुत जल्दी करते हैं।  इस्ले कभी भी शिव लिंग का अपमान मत करना।  इस से तुम पर भगवान शिव का प्रकाश बरसे गा।  सांझी बेटी ............

 कांता: जी स्वामी जी


 अब स्वामी जी ने कांता को एक सफेद कपड़े का टुकड़ा दिया और कहा इसे शिव लिंग को पोच दो।  कांता ने वैसा ही किया, फिर शिव लिंग को स्वामी जी ने वही वेदी के पास स्टेपिट कर दिया और कुछ मंत्रों का ऊंचाचरण करने लगे।

 मन्त्रों का ऊंचाचरण करते हुए स्वामी जी ने कुछ पुष्प अपने हाथों में लिया और कांता की तरफ बढ़ते उपयोग शिव लिंग पर अर्पित करने के लिए कहा।  कुछ और मंटो का ऊंचा करने के बाद स्वामी जी ने वहा रखा फलो में संतरा उठाया और कांता के दोनो हाथों में रख कर इस्तेमाल भी शिव लिंग पर अर्पित करने के लिए कहा।  कांता ने इस्तेमाल भी शिव लिंग के सामने रख दिया।  ततपशात स्वामी जी दे दीपक को जलया और उपयोग भी भगवान को संपर्क कर दिया।


 स्वामी जी ये सब कार्य ऐसे कर रहे थे की एक बार तो कांता को भी ऐसा लगने लगा की स्वामी जी का उसके पार्टी कोई गलत विचार नहीं है।  स्वामी जी पूरी तंलिंटा के साथ पूजन के मंत्रो का ऊंचाचरण कर रहे थे।  लगभाग 5 मिनट के बाद स्वामी जी ने मंत्रो का ऊंचाचरण बैंड किया अपने सर को भूमि पर शिवलिंग के पास टीका कर उन्हे प्रणाम करने लगे।  कोई 2 मिनट तक स्वामी जी का उपयोग करें अवस्थ में आने की ओर अपनी आंखें बंद किए हुए झुके रहे जैसे वो भगवान से कोई बहुत बड़ी विंति कर रहे हो।  उसके बाद स्वामी जी अपने स्थान से उठ खड़े हुए।  और कांता अपने तारफ आने का इशारा करते हुए बोले:


 स्वामी जी: बेटी ……… इस तारफ आ जाऊ (जब कांता अपने स्थान हमें उस कर स्वामी जी के स्थान पर चली गई तो स्वामी जी ने कांता से कहा) अब जाने मैंने भगवान से पुरानी की  है उसी प्रकर तुम भगवान के सामने हाथ जोडकर विंती करो की वो तुम्हारे तुम्हारे कार्य में सफला प्रदान करे।  तुम्हें इस लाएक बनाया की तुम अपने बिजनेस को ठीक तरह से संभल साको है।

 कांता: जी स्वामी जी (इतना कहकर कांता ने अपने बंद की और फिर शिवलिंग के समान अपने सर को झुका लिया। क्या समय कांता के जिस्म पर उसका ब्लाउज और पेटीकोट ही था।  द और उसका पेटीकोट बिलकुल टाइट होकर उसके पिचवाड़े से चिपक गया था जी एस करन कांता की पैंटी उसके विशाल चुट्रो पर अपना निशान बना रहे थे।  की पेंटी की धारियो को ये अंदाज लगा जा सकता था की उसकी पेटीकोट के नीचे चीपा हुआ मॉल कितना बड़ा और विशाल है स्वामी जी की आंखे कांता की गांद पर चिपक सी गई थी।



 स्वामी जी कांता के गांद को और घोर रहे थे जैसे कोई भुखा कुट्टा किसी मान के लोठड़े को घोर रहा हो।  पर स्वामी जी और कुट्टे में ये फ़र्क था की स्वामी जी सबरा का फल बहुत मीठा होता है ये बात वो समझते थे।  कोई 2 मिनट इसी अवस्था में अपने गांद को स्वामी जी के दर्शन करने की बाद काटा उठ खड़ी हुई।  कांता जैसे ही खड़े हुए उसके दोदो कुल्हे जो की झुकने के वजाह से दोनो तरह फेल हुए आपस फिर एक बार चिपक गए और साथ साथ ही मैं उसका पेटीकोट भी उसकी गांद की दर में घुस गया।  जिस देखकर स्वामी जी मुस्कान दिए।


 कांता ने अपने हाथ को पीछे लेजाकर अपनी गांद की दर में फेज हुई खिच कर बहार निकला दिया।  ऐसा करते हुए स्वामी जी बड़े ध्यान से देख रहे थे।  अब स्वामी जी कांता से बोले:

 स्वामी जी: बेटी शंकर की पूजा तो हो गई है।  अब हम में प्रसन करेंगे और यही हमारा हवन होगा।  तुम जितनी तन्मयता से इनहे प्रसन करोगी तुम्हारा हवन उतना ही सफल होगा।

 कांता: स्वामी जी हम अपनी तरफ से कोई भी काम नहीं रहने देंगे।

 स्वामी जी: शाबाश बेटी......... भगवान तुमसे जरूर प्रसन्न होंगे।  बेटी हमें पूजा तो कर लिया है इसलिय हम अब प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।  हवन में प्रसाद ग्रहण करने के लिए अनुमति है।

 ये कहकर स्वामी जी ने वहा राखे हुए फल में से एक केला उठाया और कांता की ओर बढ़ा दिया।  हमारे केले का साइज कुछ ज्यादा हो बड़ा और मोटा था।  कांता ने देखा की स्वामी जी खुद कुछ नहीं ले रहे तो उसे स्वामी जी से कहा:

 कांता: स्वामी जी आप भी तो कुछ लिजिये

 स्वामी जी: अरे तुम दोगी तबी तो लुंगा ना।

 कांता: (केले उठाकर उनकी ओर बढ़ाती ही बोली) ये लिजिये स्वामी जी

 स्वामी जी: नहीं बेटी नहीं........ केला तो तुम्हारे लिए हैं।  मुझे तो संत्रे पसंद है।  खास तौर से बड़े संतरे।  क्योकी उनमे रस जायदा होता है।  तुम्हारे केले पास है की नहीं बेटी:

 कांता समाज गई की स्वामी जी कौन से केलो की बात कर रहे हैं।  कांता स्वामी जी के डबल अर्थ बातो का मजा लेटी ही बोली।

 काँटा: मुझे तो केले बहुत पसंद है....... खास तौर से मोटे और लम्बे केले:

 स्वामी जी: अरे बेटी अभी तुमने मेरे याहा के देखे ही कहा... वक्त मिला तो मैं तुम्हें इस से बड़ा केला भी दिखूंगा।  और अगर तुम चाहोगे तो मैं तुम्हें खिलाऊंगा भी।

 कांता मन ही मन बहुत मस्त हो रही थी स्वामी जी की बातो से।  वो जनता थी की स्वामी जी कौन से स्पेशल केले की बात कर रहे हैं।  कांता को अपने हाथ में लिया हुआ केला भी एक भूमि के जैसे ही लगाने लगा।

 कांता ने केले को छलने के बाद उस केले को काटने की बजाए मुह में ऐसे लिया जैसे वो कोई कुल्फी चूस रही हो।  केला उसके मुह में आते जाते ऐसा लग रहा था जैसा वो केला ना हो कोई लैंड हो।



 उधार स्वामी जी भी संतरे को छिल कर खाने की बजाए उसके ऊपर से चिल्के को थोड़ा सा हाथकर इस्तेमाल करें चूस रहे थे।  स्वामी जी को वो संतरा इस वक्त संतरे नहीं बाली कोई गुडाज स्तान प्रीतित रहा था।

 स्वामी जी: (कांटा के तार देखते हुए) बेटी तुम क्या केले को छू क्यो रही हो?  कट के क्यो नहीं खा रही हो।

 कांता: स्वामी जी जो मजा केले को चुनकर रस निकालने में आया है वो खाने में कहा है।

 (स्वामी जी काँटा के इस उत्तर से मन ही मन बहुत खुश हुए)

 कांता: आप क्या संतरे को है क्या तारह ​​क्या खा रहा है?

 स्वामी जी: मुझे संतरा को डबा दबा कर उसके रस चुनने में बड़ा आना आता है।  स्वामी जी की ये बात सुनकर कांता और मस्ती से केले को चुनने लगी।  स्वामी जी ने देखा की कांता पूरा का पूरा केला अपने मुह के अंदर आराम से ले रही थी।

 स्वामी जी: बेटी तुम तो पुरा मुह में डालकर चुनोती हो... लगता है कि तुमने खूब केले चुने है?

 कांता: (मस्त भरी आवाज में) केले तो मैंने बहुत है स्वंजी iiiiiiiiiiiiiiiiii मगर इतना मोटा और लंबा केला आज तक नहीं मिला।

 स्वामी जी : इस्का मतलब तुम्हें मोटे और लंबे केले खूबसूरत पसंद है।

 कांता: हा स्वामी जी:

 स्वामी जी: ठीक है कांता थोड़ा सबरा रखो तुम्हारे मैं इस से भी मोटा और लंबा केला चूसूंगा।  फिर स्वामी जी चुप हो गए और बड़ी ही तलिंता से संतरे को चुनने में व्यास हो गए।  कांता ने भी अब हमें केले को खाना शुरू कर दिया था।  कुछ ही डर में दोनो ने अपने अपने फलो को खतम कर दिया।  उसके बाद स्वामी जी ने अपना हाथ धोया और वेपास अपने आसन पर बैठे गए।  कांता भी अपना हाथ साफ कर चुकी थी और बीच हुए दसरे गद्दे रुपए कंबल पर बैठ गई।  स्वामी जी उसकी या मुखातीब होकर बोले:


 स्वामी जी: बेटी अब 5 मिनट के बाद हम भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हवन चालू कर देंगे।  तब तक तुम वहा से कुछ लकड़िया ले आओ मैं हवन कुंड को प्रज्वल करने का प्रबंधन करता हूं।

 ये सुनकर कांता बारामदे के बहार की तरफ राखी हुई लकड़िया लाने के लिए बहार चली गई।  और जब लूटी तो उसके हाथ में कुछ पाटली पाटली लाकड़ी की तहनिया थी।  स्वामी जी हवन सामग्री को आप में मिला रहे थे।  हवन सामगरी में पंचमेवा, घी, कपूर आदि विभीन प्रसार के खुशबुदार और शीतल वस्ते थी।  जिसकी वजह से पूरा कामरा सुगंधित हो रहा था।  स्वामी जी ने उन लकड़ियो को हवन कुंड में रखने के लिए कहा।  लड़की राखे ने बाद स्वामी जी ने उसमे एक रुई की मोती बाती को पूरी तराह घी में दुबोया और इस्तेमाल हवन में राखी लकड़ियो के बीच में रख दिया।  फिर उनोहोने कांता को वहा बीच में रखे गए कंबल पर बैठने का इशारा किया, जब कांता वहा बैठा से स्वामी जी ने कांता से कहा:

 स्वामी जी: बेटी कांता अब हम हैं कामरे के वतावर्ण को शुद्ध करना है।  क्योकी भगवान शुद्ध वास्तु को ही ग्रहण करते हैं इसलिय मैं पहले है वतावरन की सुंगधित और स्वच्छ बाउंगा।


 ये कहकर स्वामी जी ने कुंड में राखी हुई लड़कियों में राखी हुई बाती को प्रज्वलित कर दिया।  कुछ ही डर में कुंड से हल्की आग की लत उठने लगी।  अब स्वामी जी ने मंत्रो का ऊंचाचरण करते हुए उसमे हवन सामग्री डाली।  हवन सामग्री के आग में जाते हो शुद्ध हॉल सुगंधी हो उठा।  तत्पश्चात स्वामी जी ने कांता से कहा।

 स्वामी जी: बेटी अब हम भी एक दसरे के शुद्ध करना होगा।  ऐसा करो पहले तुम मुझे शुद्ध करो,

 ये कहकर स्वामी जी ने एक गंगाजल की बोतल निकली और पानी में मिला दिया और कांता को देते हुए बोले:

 स्वामी जी: बेटी इसे मेरे चार तारफ घूम कर मेरे शशिर पर चिड़काव कर दो।  और ये केखर स्वामी जी अपने स्थान पर खड़े हो गए।  कांता अपने हाथ की अंजुली में पानी भर भर कर स्वामी जी के पूरे हिस्से को गिला करने लगी।  ऐसा करने से स्वामी जी लगभाग आधा भीग चुके थे।  फिर स्वामी जी ने वहा रखे हुए अपने अंगोछे (तौलिया टाइप एक कपड़ा) की तरफ इशारा करते हुए कहा।

 स्वामी जी: बेटी अब से मेरे बदन को पोछ दो हैं।

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