कांता - सेक्स की देवी Part 3
इतना कहकर स्वामी जी ने पूजा की थाली कांता की तारफ बधाई जिसमे रोली भी राखी हुई थी। कांता अपने हाथों में लिया और खादी हो गई का प्रयोग करें। लेकिन स्वामी जी बैठे हुए थे। इसलिये उनके माथे पर तिलक लगाने के लिए कांता को उनकी ओर झुकना पड़ा और कांता जैसे ही उनकी तरफ झुकी उसका आंचल लुधक गया और उसके दो बड़े संतारे स्वामी जी के सामने खुल गए। स्वामी जी की आंखों में चमक सी आ गई।
कांता ने स्वामी जी के माथे पर तिलक किया, फिर स्वामी जी ने उस्से कहा:
स्वामी जी: बेटी तुम्हारे मेरे दोनो बजाओ पर भी रोड़ी लगानी है। और अपनी बाह कांता के समान कर दी। कांता ने अपने तीनो उनगली में रोली लगा कर स्वामी जी की बाह पर आदि रेखा खीच दी, और उसके बाद दसरी बाह पर।
फिर स्वामी जी ने कहा:
स्वामी जी: बेटी अब ऐसा ही निशान अब मेरे पीठ पर ही बना दो।
कांता ने बिना कुछ कहे उनके पीठ पर भी निशान बना दिया। पीठ पर निशान लगान के बाद स्वामी जी ने कांता से कहा:
स्वामी जी: बेटी अब एक तिलक तुम मेरी नाभि पर भी लगानी है... लेकिन याद रहा की जहां-जहां तुमने टीका लगा है मुझे भी वहा वहा तुम टीका लगान मिलेगा। अगर तुम अपनी नाभी में टीका लगवा शक्ति हो तो ही मेरे नाभि में टीका लगाना। और अगर तुम इस से एतराज हो तो फिर रहने देना।
कांता स्वामी जी की चालकी भरी बात समाज रही थी। स्वामी जी ने गेंद को कांता के पाले में ही रखा था। अब जो भी करना था कांता को ही करना था। आगर काँटा मना कर्ता तो हवन में रुकावत की बात स्वामी जी कहते हैं। और अगर कांता हा भी कार्ति है तो स्वामी जी को और आगे बढ़ने का मौका मिल जाएगा। कांता इसी उधेड़ बन में थी की क्या जाए। तबी कांता के कानो में स्वामी जी की आवाज पड़ी:
स्वामी जी: क्या हुआ बेटी...... मैंने तो पहले ही कहा था की ये हवन थोड़ा सा अलग होगा। फिर भी अगर तुम ये ठीक नहीं लग रहा है तो कोई बात नहीं हम विधि को नहीं करेंगे। तुम्हारी मर्जी है।
कांता: नहीं स्वामी जी नहीं..... ऐसी कोई बात नहीं है। लाए मैं आपके नाभी में टीका लगा देता हूं।
इतना कह के कांता चुप हो गई। स्वामी जी ये सुकर अपने स्थान पर खड़े हो गए और उन अपना अंगोछा उतर कर बगल में रख दिया जो की उनके पेट तक लटक रहा था।
अब स्वामी जी अपनी जगह पर खड़े थे। कांता को उनकी नाभी में टीका लगान के लिए घुटनो के बाल स्वामी जी के सामने बैठना पड़ा। उसने अपनी उनगी में रोली लगाय्या और स्वामी जी के नाभि में अपने लंबू मिलायम उनगली को दाल दिया। uffffffffffffffffffffffffffff ...... नाभी के छेद में उनगली की चुवां का एहसास होते ही स्वामी जी का नीचला अंग जो की अभी तक सोया था वो नींद में ही करवात बदलने लगा। और है करावत बदलते में उनकी धोती हिलती हुई लगी जिसे कांता ने भी महसूस किया। अब कांता को भी अलग टाइप के हवन में रुचि आने लगा था। उनके नाभि में टीका लगाने के बाद कांता उठ गई। अब स्वामी जी ने रोली वाली थाली उठा ली। और अब वो कांटे से बोले:
स्वामी जी: कांता बेटी ..... अब तुम बैठ जाओ अब लगाने की मेरी बारी है
अब स्वामी जी ने अपने उनगलियो में रोली लगी और कुछ मंत्र बुदबुदाने के साथ ही कांता के मत पर टीका लगा दिया। माथे पर टीका लगान के बाद स्वजी ने कांता से अपनी बाह ऊपर उठने के लिए कहा। कांता ने जैसे ही अपनी बाह उठाई कांता का पल्लू सरक कर उसके बाह पर आ गए, जिस से उसे धक गई। ये देख स्वामी जी बोले:
स्वामी जी: बेटी....... अगर बुरा ना मानो तो एक आगा है?
कांता: जी स्वामी जी....... आप आ गए दिजिये।
स्वामी जी: बेटी ये सारी बार बार परशान कर रही है। याद तुम्हें कोई ऐतराज ना हो तो क्या तुम उसे निकल सकती हूं... वैसा भी हम भगवान की पूजा कर रहे हैं इसमे किसी परकार की झिझक नहीं होनी चाहिए... अगर तुम आती न हो तो ये सारे उतर दो.
स्वामी जी की ये बात सुन ने के बाद कांता ने एक पल के लिए कुछ सोचा। फिर वो खादी हो गई। लेकिन फिर उसे एक देखा नजरो से स्वामी जी को देखा.. मानो वो कह रही हो की आपके सामने कैसे मैं सारे उतारू? स्वामी जी उसके मनोभावो को समझ गए और बोले:
स्वामी जी: हैं बेटी... मैं तो वैसे भी एक संत आदमी हूं। मेरे लिए स्त्री का हिस्सा कोई मैंने नहीं रखा। और मैं वैसे भी तुम्हारी पिताजी की उमरा का हूं। एक बात और हम दो यह भगवान की पूजा कर रोगे है। हम दो बिलकुल पवित्र है और शुद्ध और वासना से पार हैं। क्या स्थिति तुम्हारी झिझक हवन में रुकावत का काम कर रही है।
काँटा: (स्वामी जी तार देख अपनी नज़र नीचे कर लेति है और फिर अपनी सारी अपने हाथ से नीचे गिरा देती है। उसे आंचल गिरते ही कांता के दोनो पापीते अपने नोक के उठाये स्वामी जी को घोरने स्वामी जी अपनी नज़र से को नापते है, जी उनकी नजरो में भी नहीं समा पा रहे थे। फिर स्वामी कांता के पीछे आ गए और कांता से बोले:
स्वामी जी: बेटी अपने हाथ थोड़ा सा उठावों तकी मैं तुम्हारे हाथो पर ये पवित्र टीका लगा सकु (कांटा ने अंपे किया हाथो को हवा में 45 डिग्री के कोन तक उठा दिया। अब स्वामी जी अनपे दोनो हाथो में अच्छी तरह रोली लगाकर कांगे के के) कोहनी के ऊपर वाले गुडाज बाह पर दोनो हाथो में एक साथ रोली लगाने लगे रोली क्या लगा रहे थे वो धीरे-धीरे अपने हाथों से उसकी बाह को सेहला रहे थे। थोड़ी ही दूर पर थी, काँटा का ब्लाउज़ पीछे की तरफ से ऐसा था जिस्म से उसकी चिकनी पीठ पूरी तरह नंगी थी। कांता को अपने दो हाथो को नीचे करने के लिया कहा, जैसे ही कांता ने हाथ नीचे किया स्वामी जी ने कांता से कहा:
स्वामी जी: बेटी अब मैं अपनी आख बंद कर रहा हूं और कुछ मंत्र बोल रहा हूं जैसे ही ये मंत्र खतम हो तुम मेरी उंगली को अपनी नाबी की पर रख देना, और मैं तुम्हारी नाभि पर टीका लगा दूंगा, क्योकी ये विधि आंख खोल के नहीं की जाति है।
कांता : जी स्वामी जी
दरसल कांता को भी अपने विशेष हवन में मजा आ रहा था। तबी स्वामी जी ने आपने आखे बंद की और कुछ मंतर बुबुदाने लगे। क्यों उन्हें मुह कांता के सर के पास था इसलिय वो उनकी सांसों की उष्मा को अपने बगीचे पे महसूस कर रही थी। हमें समय स्वामी जी की सास भाप के तार निकल रही थी। कुछ डेर बाद स्वामी जी ने मंत्र पढ़ना बंद कर दिया। अब कांता समाज गए के उनके हाथ को अपनी नाभि की या ले जाना जय। कांता ने स्वामी जी की कलाई पकड़ी और अपने कभी के ऊपर रख दिया का उपयोग करें। कांता स्वामी जी को चालकी को समाज रही थी और मन ही मन उनकी अकाल को दाद दे रही थी की क्या इंसान है। कैसे मेरे नाभि पर अपने हाथ मेरे हाथी से रखवा लिया। नाभि पर हाथ रखे के बाद कांता ने स्वामी जी की कलाई छोड़ दी। तब स्वामी जी ने कहा:
स्वामी जी: हैं बेटी मेरी उंगली को अपने नभी के छेद पर रखो या तुम्हारा छेड मैं खुद ही ढूंढू।
अब कांता को भी द्विर्थी शब्द में बड़ा माजा आने लगा था। तब कांता ने हिम्मत कर के कहा:
कांता : स्वामी जी ....... अब छेड तो खुद ही धुंधना पडेगा ना ..... अगर आपको अपनी ऐसी डालनी है भी।
स्वामी जी: ठीक है बेटी... तुम कहती हो तो मैं खुदा तुम्हारा छेड़ धुंध लाता हूं।
और ये कह कर अपनी पूरी हाथी कांता के पेट पर फेलाया दिया और धीरे-धीरे उसके पेड़ को सहलाने लगे।
स्वामी जी कांटे के पेट पर अपने दोनो हाथेलियो को घुमा रहे थे और उसके सपने चिकने पेट को माजे के साथ सेहला रहे थे। स्वामी जी अब काँटा से बिलकुल चिपक के खड़े थे, काँटा की गाँड की छूवां उनके हाथियार पर पद रही थी। जब दो मिनट तक स्वामी जी कांता के पेट को सहलाते रहे तो कांता ने उने छेड़ते हुए कहा।
कांता: क्या हुआ स्वामी जी आपको तो मेरा छेड ही नहीं मिल पा रहा है तो उसमें आप अपने कैसे डालेंगे।
स्वामी जी कांता की लाजवाब प्रशन शंकर निरुत्तर हो गए और अगले ही पल उन लोगों अपनी उनगली की नाभि के छेद पर रख दिया और बोले:
स्वामी जी: अरे भाईइइइइइइइ आगर किसी सपात चिकने मैदान पर एक छोटा से छेद धुंधा पडेगा तो शुद्ध मैदान का जायजा लेना पदा है। ना ........ (ये कह कर उन्होन धीरे से अपनी उनगली कांता की नाभी में घुसने का प्रयास किया। लेकिन स्वामी जी की उनगली मोरी होने के करन उसमे नहीं घुस साकी तो स्वामी जी ने दोबारा प्रयास करते हुए कहा:
स्वामी जी:….. बेटी छेड बहुत छोटा है और मेरी उनगली मोती है इसलिय तुम्हारे छेड़ में आराम से नहीं घुस पा रही है। थोडा सा जोर लगान मिलेगा घुसने के लिए। मैं डर रहा था की कहीं तुम्हें दर्द न हो जाए।
स्वामी जी की इस्स डबल मीनिंग बातो ने कांता को एक मीठे से नशे से भर दिया था। अब धीरे धीरे वो भी खुल रही थी।
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कांता: छेद जितना ज्यादा टाइट होता है घुसने वाले को उतना ही मजा आता है। लेकिन टाइट छेड़ मुझे हर कोई नहीं पता है। क्योकी हमें में काफ़ी जोर लगता है। शायद आप से टाइट छेड में नहीं घुस पाता होगा अब।
कांता के ये शब्द स्वामी जी के लिए हरि झंडी थी जिस्ने स्वामी जी को अस्वास्त कर दिया की अब में हवा में कोई रुकावत नहीं आने वाली है। कांता भी इसके लिए धीरे-धीरे तयार हो रही थी। काँता के ये शब्द सुनाने के बाद स्वामी जी ने काँटा पर अपनी पकाड़ को और मजबूर करते हुए अपने उनगली का दाबाव उसकी नाभि पर बढ़ा दिया जिससे उनी कांता की नाभि में घुस गई... और स्वामी जी ने घमंद भरे स्वर में कांता से पक्का..
स्वामी जी : क्यूउ बेटी कांता गया ना अंद्राअर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र...
कांता: (स्वामी जी की बातो का मतलब समझ रही थी, हल्की से मुस्कान के साथ बोली) हह्ह्ह्ह्हा स्वामी जी आखिर आप ने दाआआआआआआलल्लल ही दीया।
स्वामी जी : दर्द तो नहीं हुआ न बेटी.........
कांता: दर्द तो हुआ पर हवा के लिए तो दर्द सहना ही मिलेगा।
स्वामी जी: हा बेटी बिलकुल सही के राही हो... एक बात कहु बेटी अगर बुरा ना मानो तो स्वामी जी ने अपने उनगली कांता के नाभी में घुमाते हुए कहा (स्वामी जी ने यू ही उसकी राय मान ली)
कांता: हा स्वामी जी कहिए ना क्या कह रहे हैं...
स्वामी जी: तुम्हारी सुंडी (नाभी) तो बहुत उंधी (गहरी है)
कांता: गेहराई में ही तो मजा है स्वामी जी... तबी तो मैं भी इस हवा के गहरे में जा रही हूं।
फिर कोई दो मिनट तक स्वामी जी ने उसके नाभि में अपनी उनगली को आगे पीछे करते रहे। फिर उन कांता को छोड दिया और अपने स्थान पर बैठे हुए कांता को अभी अपने स्थान पर बैठने के लिए बोले। स्वामी जी ने अपने हाथ मु कुछ जल लिया और मंतर पढ़कर हमें हाल में चारो तरह से दिया। और फिर काँटा से बोले:
स्वामी जी: बेटी अब हम पार्वती की पूजा करेंगे, क्यों की शंकर भगवान सबसे ज्यादा प्रेम पार्वती से ही करते हैं।
ये कहकर स्वामी नी ने कुछ चावल (अक्षत) लेकर कांता के दो हाथो में रख दिया, और कुछ मंतर पढते हुए उनके हाथो पर कुछ जल चिड़का। और फिर कुछ और मन्त्र बुदबुदाये। फिर वहा राखे फलो में से एक केला निकला और कांता के हाथ में रख दिया। कुछ डेर और मंतर बोले के बाद उन्होनें इस्तेमाल करें सामने रखे हुए वेदी पर रखने का इशारा किया। ततपाशात उन्होन कुछ जल लेकर कांता हो अपना हाथ साफ करने के लिए कहाहा।
फिर स्वामी जी काँटा की या देखते हुए बोले:
स्वामी जी: पार्वती की पूजा तो हो गई है अब हम शिवलिंग की पूजा करेंगे। ये कह कर स्वामी जी ने वहा पद पूजा की समग्री के बीच पाए हुए एक पुतली को निकाह और उसमे लगी गाथ खोलने लगे। जैस ही गाथ खुली से एक विचित्र किस्म का पत्थर जो की शिवलिंग जैसा भी लग रहा था, वेदी के पास रख दिया का प्रयोग करें। कांता ने हमें वास्तु को ध्यान से देखा। कांता ने पाया के ये कुछ इस प्रसार का था जिसे दो तार से देखा जा सकता था। एक तारा तो वो शिवलिंग लंग रहा था लेकिन उसकी लंबी जयादा होने के करन वो शिव का लिंग जैसा पार्टीत हो रहा था।
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